Tuesday, 2 October 2018

Indian Constitution Articles

 सारे अनुच्छेद एक साथ 
Indian Constitution Articles:-
***************
*अनुच्छेद 1* :- संघ कानाम और राज्य क्षेत्र
*अनुच्छेद 2* :- नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
*अनुच्छेद 3* :- राज्य का निर्माण तथा सीमाओं या नामों मे
परिवर्तन
*अनुच्छेद 4* :- पहली अनुसूचित व चौथी अनुसूची के संशोधन तथा दो और तीन के अधीन बनाई गई विधियां
*अच्नुछेद 5* :- संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
*अनुच्छेद 6* :- भारत आने वाले व्यक्तियों को नागरिकता
*अनुच्छेद 7* :-पाकिस्तान जाने वालों को नागरिकता
*अनुच्छेद 8* :- भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों का नागरिकता
*अनुच्छेद 9* :- विदेशी राज्य की नागरिकता लेने पर नागरिकता का ना होना
*अनुच्छेद 10* :- नागरिकता के अधिकारों का बना रहना
*अनुच्छेद 11* :- संसद द्वारा नागरिकता के लिए कानून का विनियमन
*अनुच्छेद 12* :- राज्य की परिभाषा
*अनुच्छेद 13* :- मूल अधिकारों को असंगत या अल्पीकरण करने वाली विधियां
*अनुच्छेद 14* :- विधि के समक्ष समानता
*अनुच्छेद 15* :- धर्म जाति लिंग पर भेद का प्रतिशेध
*अनुच्छेद 16* :- लोक नियोजन में अवसर की समानता
*अनुच्छेद 17* :- अस्पृश्यता का अंत
*अनुच्छेद 18* :- उपाधीयों का अंत
*अनुच्छेद 19* :- वाक् की स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 20* :- अपराधों के दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण
**
*अनुच्छेद 21* :-प्राण और दैहिक स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 21 क* :- 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अधिकार
*अनुच्छेद 22* :- कुछ दशाओं में गिरफ्तारी से सरंक्षण
*अनुच्छेद 23* :- मानव के दुर्व्यापार और बाल आश्रम
*अनुच्छेद 24* :- कारखानों में बालक का नियोजन का प्रतिशत
*अनुच्छेद 25* :- धर्म का आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता
**
*अनुच्छेद 26* :-धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 29* :- अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
*अनुच्छेद 30* :- शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार
*अनुच्छेद 32* :- अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
*अनुच्छेद 36* :- परिभाषा
*अनुच्छेद 40* :- ग्राम पंचायतों का संगठन
*अनुच्छेद 48* :- कृषि और पशुपालन संगठन
*अनुच्छेद 48क* :- पर्यावरण वन तथा वन्य जीवों की रक्षा
*अनुच्छेद 49:-* राष्ट्रीय स्मारक स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण
*अनुछेद. 50* :- कार्यपालिका से न्यायपालिका का प्रथक्करण
*अनुच्छेद 51* :- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
*अनुच्छेद 51क* :- मूल कर्तव्य
*अनुच्छेद 52* :- भारत का राष्ट्रपति
*अनुच्छेद 53* :- संघ की कार्यपालिका शक्ति
*अनुच्छेद 54* :- राष्ट्रपति का निर्वाचन
*अनुच्छेद 55* :- राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीती
*अनुच्छेद 56* :- राष्ट्रपति की पदावधि
*अनुच्छेद 57* :- पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
*अनुच्छेद 58* :- राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए आहर्ताए
*अनुच्छेद 59* :- राष्ट्रपति पद के लिए शर्ते
*अनुच्छेद 60* :- राष्ट्रपति की शपथ
*अनुच्छेद 61* :- राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
*अनुच्छेद 62* :- राष्ट्रपति पद पर व्यक्ति को भरने के लिए निर्वाचन का समय और रीतियां
*अनुच्छेद 63* :- भारत का उपराष्ट्रपति
*अनुच्छेद 64* :- उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
*अनुच्छेद 65* :- राष्ट्रपति के पद की रिक्त पर उप राष्ट्रपति के कार्य
*अनुच्छेद 66* :- उप-राष्ट्रपति का निर्वाचन
*अनुच्छेद 67* :- उपराष्ट्रपति की पदावधि
*अनुच्छेद 68* :- उप राष्ट्रपति के पद की रिक्त पद भरने के लिए निर्वाचन
*अनुच्छेद69* :- उप राष्ट्रपति द्वारा शपथ
**
*अनुच्छेद 70* :- अन्य आकस्मिकता में राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन
*अनुच्छेद 71*. :- राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधित
विषय
*अनुच्छेद 72* :-क्षमादान की शक्ति
*अनुच्छेद 73* :- संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
*अनुच्छेद 74* :- राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद
*अनुच्छेद 75* :- मंत्रियों के बारे में उपबंध
*अनुच्छेद 76* :- भारत का महान्यायवादी
*अनुच्छेद 77* :- भारत सरकार के कार्य का संचालन
*अनुच्छेद 78* :- राष्ट्रपति को जानकारी देने के प्रधानमंत्री के
कर्तव्य
*अनुच्छेद 79* :- संसद का गठन
*अनुच्छेद 80* :- राज्य सभा की सरंचना
**
*अनुच्छेद 81* :- लोकसभा की संरचना
*अनुच्छेद 83* :- संसद के सदनो की अवधि
*अनुच्छेद 84* :-संसद के सदस्यों के लिए अहर्ता
*अनुच्छेद 85* :- संसद का सत्र सत्रावसान और विघटन
*अनुच्छेद 87* :- राष्ट्रपति का विशेष अभी भाषण
*अनुच्छेद 88* :- सदनों के बारे में मंत्रियों और महानयायवादी
अधिकार
*अनुच्छेद
89* :-राज्यसभा का सभापति और उपसभापति
*अनुच्छेद 90* :- उपसभापति का पद रिक्त होना या पद हटाया
जाना
*अनुच्छेद 91* :-सभापति के कर्तव्यों का पालन और शक्ति
*अनुच्छेद 92* :- सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का
संकल्प विचाराधीन हो तब उसका पीठासीन ना होना
*अनुच्छेद 93* :- लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
*अनुचित 94* :- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना
*अनुच्छेद 95* :- अध्यक्ष में कर्तव्य एवं शक्तियां
*अनुच्छेद 96* :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प हो तब
उसका पीठासीन ना होना
*अनुच्छेद 97* :- सभापति उपसभापति तथा अध्यक्ष,उपाध्यक्ष के
वेतन और भत्ते
*अनुच्छेद 98* :- संसद का सविचालय
*अनुच्छेद 99* :- सदस्य द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
*अनुच्छेद 100* - संसाधनों में मतदान रिक्तियां के होते हुए भी
सदनों के कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
*अनुच्छेद 108* :- कुछ दशाओं में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक
*अनुत्छेद 109* :- धन विधेयक के संबंध में विशेष प्रक्रिया
*अनुच्छेद 110* :- धन विधायक की परिभाषा
*अनुच्छेद 111* :- विधेयकों पर अनुमति
*अनुच्छेद 112* :- वार्षिक वित्तीय विवरण
*अनुच्छेद 118* :- प्रक्रिया के नियम
*अनुच्छेद 120* :- संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा
*अनुच्छेद 123* :- संसद विश्रांति काल में राष्ट्रपति की अध्यादेश शक्ति
*अनुच्छेद 124* :- उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन
*अनुच्छेद 125* :- न्यायाधीशों का वेतन
*अनुच्छेद 126* :- कार्य कार्य मुख्य न्याय मूर्ति की नियुक्ति
*अनुच्छेद 127* :- तदर्थ न्यायमूर्तियों की नियुक्ति
*अनुच्छेद 128* :- सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति
*अनुच्छेद 129* :- उच्चतम न्यायालय का अभिलेख नयायालय होना
*अनुच्छेद 130* :- उच्चतम न्यायालय का स्थान
**
*अनुच्छेद 131* :- उच्चतम न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता
*अनुच्छेद 137* :- निर्णय एवं आदेशों का पुनर्विलोकन
*अनुच्छेद 143* :- उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की
राष्ट्रपति की शक्ति
*अनुच्छेद144* :-सिविल एवं न्यायिक पदाधिकारियों द्वारा
उच्चतम न्यायालय की सहायता
*अनुच्छेद 148* :- भारत का नियंत्रक महालेखा परीक्षक
*अनुच्छेद 149* :- नियंत्रक महालेखा परीक्षक के कर्तव्य शक्तिया
*अनुच्छेद 150* :- संघ के राज्यों के लेखन का प्रारूप
*अनुच्छेद 153* :- राज्यों के राज्यपाल
*अनुच्छेद 154* :- राज्य की कार्यपालिका शक्ति
*अनुच्छेद 155* :- राज्यपाल की नियुक्ति
*अनुच्छेद 156* :- राज्यपाल की पदावधि
*अनुच्छेद 157* :- राज्यपाल नियुक्त होने की अर्हताएँ
*अनुच्छेद 158* :- राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
*अनुच्छेद 159* :- राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
*अनुच्छेद 163* :- राज्यपाल को सलाह देने के लिए मंत्री परिषद
*अनुच्छेद 164* :- मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
*अनुच्छेद 165* :- राज्य का महाधिवक्ता
*अनुच्छेद 166* :- राज्य सरकार का संचालन
*अनुच्छेद 167* :- राज्यपाल को जानकारी देने के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य
*अनुच्छेद 168* :- राज्य के विधान मंडल का गठन
*अनुच्छेद 170* :- विधानसभाओं की संरचना
*अनुच्छेद 171* :- विधान परिषद की संरचना
*अनुच्छेद 172* :- राज्यों के विधानमंडल कि अवधी
*अनुच्छेद 176* :- राज्यपाल का विशेष अभिभाषण
*अनुच्छेद 177* सदनों के बारे में मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार
*अनुच्छेद 178* :- विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
*अनुच्छेद 179* :- अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना या
पद से हटाया जाना
*अनुच्छेद 180* :- अध्यक्ष के पदों के कार्य व शक्ति
**
*अनुच्छेद 181* :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का कोई
संकल्प पारित होने पर उसका पिठासिन ना होना
*अनुच्छेद 182* :- विधान परिषद का सभापति और उपसभापति
*अनुच्छेद 183* :- सभापति और उपासभापति का पद रिक्त होना
पद त्याग या पद से हटाया जाना
*अनुच्छेद 184* :- सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन व शक्ति
*अनुच्छेद 185* :- संभापति उपसभापति को पद से हटाए जाने का
संकल्प विचाराधीन होने पर उसका पीठासीन ना होना
*अनुच्छेद 186* :- अध्यक्ष उपाध्यक्ष सभापति और उपसभापति
के वेतन और भत्ते
*अनुच्छेद 187* :- राज्य के विधान मंडल का सविचाल.
*अनुच्छेद 188* :- सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
*अनुच्छेद 189* :- सदनों में मतदान रिक्तियां होते हुए भी साधनों का कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
*अनुच्छेद 199* :- धन विदेश की परिभाषा
*अनुच्छेद 200* :- विधायकों पर अनुमति
*अनुच्छेद 202* :- वार्षिक वित्तीय विवरण
*अनुच्छेद 213* :- विध
ानमंडल में अध्यादेश सत्यापित करने के
राज्यपाल की शक्ति
*अनुच्छेद 214* :- राज्यों के लिए उच्च न्यायालय
*अनुच्छेद 215* :- उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना
*अनुच्छेद 216* :- उच्च न्यायालय का गठन
*अनुच्छेद 217* :- उच्च न्यायालय न्यायाधीश की नियुक्ति
पद्धति शर्तें
*अनुच्छेद 221* :- न्यायाधीशों का वेतन
**
*अनुच्छेद 222* :- एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में
न्यायाधीशों का अंतरण
*अनुच्छेद 223* :- कार्यकारी मुख्य न्याय मूर्ति के नियुक्ति
*अनुच्छेद 224* :- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति
*अनुच्छेद 226* :- कुछ रिट निकालने के लिए उच्च न्यायालय की शक्ति
*अनुच्छेद 231* :- दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना
*अनुच्छेद 233* :- जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति
*अनुच्छेद 241* :- संघ राज्य क्षेत्र के लिए उच्च-न्यायालय
**
*अनुच्छेद 243* :- पंचायत नगर पालिकाएं एवं सहकारी समितियां
*अनुच्छेद 244* :- अनुसूचित क्षेत्रो व जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन
*अनुच्छेद 248* :- अवशिष्ट विधाई शक्तियां
*अनुच्छेद 252* :- दो या अधिक राज्य के लिए सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति
*अनुच्छेद 254* :- संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधान मंडल द्वारा बनाए गए विधियों में असंगति
*अनुच्छेद 256* :- राज्यों की और संघ की बाध्यता
*अनुच्छेद 257* :- कुछ दशाओं में राज्यों पर संघ का नियंत्रण
*अनुच्छेद 262* :- अंतर्राज्यक नदियों या नदी दूनों के जल संबंधी
विवादों का न्याय निर्णय
*अनुच्छेद 263* :- अंतर्राज्यीय विकास परिषद का गठन
*अनुच्छेद 266* :- संचित निधी
*अनुच्छेद 267* :- आकस्मिकता निधि
*अनुच्छेद 269* :- संघ द्वारा उद्ग्रहित और संग्रहित किंतु राज्यों
को सौपे जाने वाले कर
*अनुच्छेद 270* :- संघ द्वारा इकट्ठे किए कर संघ और राज्यों के
बीच वितरित किए जाने वाले कर
*अनुच्छेद 280* :- वित्त आयोग
*अनुच्छेद 281* :- वित्त आयोग की सिफारिशे
*अनुच्छेद 292* :- भारत सरकार द्वारा उधार लेना
*अनुच्छेद 293* :- राज्य द्वारा उधार लेना
&अनुच्छेद 300 क* :- संपत्ति का अधिकार
*अनुच्छेद 301* :- व्यापार वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
*अनुच्छेद 309* :- राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तों
*अनुच्छेद 310* :- संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की पदावधि
*अनुच्छेद 313* :- संक्रमण कालीन उपबंध
*अनुच्छेद 315* :- संघ राज्य के लिए लोक सेवा आयोग
*अनुच्छेद 316* :- सदस्यों की नियुक्ति एवं पदावधि
*अनुच्छेद 317* :- लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को हटाया
जाना या निलंबित किया जाना
*अनुच्छेद 320* :- लोकसेवा आयोग के कृत्य
*अनुच्छेद 323 क* :- प्रशासनिक अधिकरण
*अनुच्छेद 323 ख* :- अन्य विषयों के लिए अधिकरण
*अनुच्छेद 324* :- निर्वाचनो के अधिक्षण निर्देशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना
*अनुच्छेद 329* :- निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालय के
हस्तक्षेप का वर्णन
*अनुछेद 330* :- लोक सभा में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये स्थानो का आरणण
*अनुच्छेद 331* :- लोक सभा में आंग्ल भारतीय समुदाय का
प्रतिनिधित्व
*अनुच्छेद 332* :- राज्य के विधान सभा में अनुसूचित जाति और
अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण
*अनुच्छेद 333* :- राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय
समुदाय का प्रतिनिधित्व
*अनुच्छेद 343* :- संघ की परिभाषा
*अनुच्छेद 344* :- राजभाषा के संबंध में आयोग और संसद की समिति
*अनुच्छेद 350 क* :- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की
सुविधाएं
*अनुच्छेद 351* :- हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश
*अनुच्छेद 352* :- आपात की उदघोषणा का प्रभाव
*अनुछेद 356* :- राज्य में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की
दशा में उपबंध
*अनुच्छेद 360* :- वित्तीय आपात के बारे में उपबंध
*अनुच्छेद 368* :- सविधान का संशोधन करने की संसद की
शक्ति और उसकी प्रक्रिया
*अनुच्छेद 377* :- भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के बारे में
*उपबंध*
*अनुच्छेद 378* :- लोक सेवा आयोग के बारे
 https://hindi.sabrangindia.in/article/regar-youth-sabha-oppose-shambhu-bhavani





मंडल कमिशन और ब्राह्मण

मंडल कमिशन और ब्राह्मण

1977 मेँ जनता पार्टी की सरकार बनी जिसमें मोरारजी देसाई ब्राह्मण थे जिनको जयप्रकाश नारायण द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिऐ नामांकित किया था।

चुनाव मेँ जाते समय जनता पार्टी ने अभिवचन दिया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे काका कालेलकर कमीशन लागू करेंगे। जब उनकी सरकार बनी तो OBC का एक प्रतिनिधिमंडल मोरारजी को मिला और काका कालेलकर कमीशन लागू करने के लिऐ मांग की मगर मोरारजी ने कहा कि कालेलकर कमीशन की रिपोर्ट पुरानी हो चुकी है, इसलिए अब बदली हुई परिस्थिति मेँ नयी रिपोर्ट की आवश्यकता है। यह एक शातिर बाह्मण की OBC को ठगने की एक चाल थी।

प्रतिनिधिमडंल इस पर सहमत हो गया और B.P. Mandal जो बिहार के यादव थे, उनकी अध्यक्षता मेँ मंडल कमीशन बनाया गया।.

बी पी मंडल और उनके कमीशन ने पूरे देश में घूम-घूमकर 3743 जातियोँ को OBC के तौर पर पहचान किया जो 1931 की जाति आधारित गिनती के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 52% थे। मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट मोरारजी सरकार को सौपते ही, पूरे देश मेँ बवाल खङा हो गया। जनसंघ के 98 MPs के समर्थन से बनी जनता पार्टी की सरकार के लिए मुश्किल खङी हो गयी।

उधर अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व मेँ जनसंघ के MPs ने दबाव बनाया कि अगर मंडल कमीशन लागू करने की कोशिश की गयी तो वे सरकार गिरा देंगे। दूसरी तरफ OBC के नेताओँ ने दबाव बनाया। फलस्वरूप अटल बिहारी बाजपेयी ने मोरारजी की सहमति से जनता पार्टी की सरकार गिरा दी।

इसी दौरान भारत की राजनीति मेँ एक Silent revolution की भूमिका तैयार हो रही थी जिसका नेतृत्व आधुनिक भारत के महानतम् राजनीतिज्ञ कांशीराम जी कर रहे थे। कांशीराम साहब और डी के खापर्डे ने 6 दिसंबर 1978 में अपनी बौद्धिक बैँक बामसेफ की स्थापना की जिसके माध्यम से पूरे देश मेँ OBC को मंडल कमीशन पर जागरण का कार्यक्रम चलाया। कांशीराम जी के जागरण अभियान के फलस्वरूप देश के OBC को मालुम पड़ा कि उनकी संख्या देश मेँ 52% हैं मगर शासन प्रशासन में उनकी संख्या मात्र 2% है। जबकि 15% तथाकथित सवर्ण प्रशासन में 80% है। इस प्रकार सारे आंकङे मण्डल की रिपोर्ट मेँ थे जिसको जनता के बीच ले जाने का काम कांशीराम जी ने किया।

अब OBC जागृत हो रहा था। उधर अटल बिहारी ने जनसंघ समाप्त करके BJP बना दी। 1980 के चुनाव मेँ संघ ने इंदिरा गांधी का समर्थन किया और इंन्दिरा जो 3 महीने पहले स्वयं हार गयी थी 370 सीट जीतकर आयी।

इसी दौरान गुजरात में आरक्षण के विरोध में प्रचंड आन्दोलन चला। मजे की बात यह थी कि इस आन्दोलन में बङी संख्या OBC स्वयँ सहभागी था, क्योँकि ब्राह्मण-बनिया "मीडीया" ने प्रचार किया कि जो आरक्षण SC, ST को पहले से मिल रहा है वह बढ़ने वाला है। गुजरात में SC, ST के लोगों के घर जलाये गये। नरेन्द्र मोदी इसी आन्दोलन के नेतृत्वकर्ता थे।

कांशीराम जी अपने मिशन को दिन-दूनी रात-चौगुनी गति से बढा रहे थे। ब्राह्मण अपनी रणनीति बनाते पर उनकी हर रणनीति की काट कांशीराम जी के पास थी। कांशीराम ने वर्ष 1981 में DS4 ( DSSSS) नाम की "आन्दोलन करने वाली विंग" को बनाया। जिसका नारा था 'ब्राह्मण बनिया ठाकुर छोङ बाकी सब हैं DS4!'

DS4 के माध्यम से ही कांशीराम जी ने एक और प्रसिद्ध नारा दिया "मंडल कमीशन लागु करो वरना सिँहासन खाली करो।' इस प्रकार के नारो से पूरा भारत गूँजने लगा। 1981 में ही मान्यवर कांशीराम ने हरियाणा का विधानसभा चुनाव लङा, 1982 मेँ ही उन्होने जम्मू काश्मीर का विधान सभा का चुनाव लङा। अब कांशीराम जी की लोकप्रियता अत्यधिक बढ गयी।

ब्राह्मण-बनिया "मीडिया" ने उनको बदनाम करना शुरू कर दिया। उनकी बढती लोकप्रियता से इंन्दिरा गांधी घबरा गयीं।
इंन्दिरा को लगा कि अभी-अभी जेपी के जिन्नसे पीछा छूटा कि अब ये कांशीराम तैयार हो गये। इंन्दिरा जानती थी कांशीराम जी का उभार जेपी से कहीँ ज्यादा बङा खतरा ब्राह्मणोँ के लिये था। उसने संघ के साथ मिलने की योजना बनाई। अशोक सिंघल की एकता यात्रा जब दिल्ली के सीमा पर पहुँची, तब इंन्दिरा गांधी स्वयं माला लेकर उनका स्वागत करने पहुंची।

इस दौरान भारत में एक और बङी घटना घटी। भिंडरावाला जो खालिस्तान आंदोलन का नेता था, जिसको कांग्रेस ने अकाल तख्त का विरोध करने के लिए खङा किया था, उसने स्वर्णमंदिर पर कब्जा कर लिया।

RSS और कांग्रेस ने योजना बनाई अब मण्डल कमीशन आन्दोलन को भटकाने के लिऐ हिन्दुस्थान vs खालिस्थान का मामला खङा किया जाय। इंन्दिरा गांधी आर्मी प्रमुख जनरल सिन्हा को हटा दिया और एक साऊथ के ब्राह्मण को आर्मी प्रमुख बनाया। जनरल सिन्हा ने इस्तीफा दे दिया।आर्मी में भूचाल आ गया।

नये आर्मी प्रमुख इंन्दिरा गांधी के कहने पर OPERATION BLUE STAR की योजना बनाई और स्वर्ण मंदिर के अन्दर टैँक घुसा दिया। पूरी आर्मी हिल गयी। पूरे सिक्ख समुदाय ने इसे अपना अपमान समझा और 31 Oct. 1984 को इंन्दिरा गांधी को उनके दो Personal guards बेअन्तसिह और सतवन्त सिँह, जो दोनो SC समुदाय के थे, ने इंन्दिरा गांधी को गोलियों से छलनी कर दिया।

माओ अपनी किताब 'ON CONTRADICTION' में लिखते हैं कि शासक वर्ग किसी एक षडयंत्र को छुपाने के लिऐ दुसरा षडयंत्र करता है, पर वह नहीँ जानता कि इससे वह अपने स्वयँ के लिए कोई और संकट खङा कर देता है।' माओकी यह बात भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य मेँ सटीक साबित होती है।

मंडल कमीशन को दबाने वाले षडयंत्र का बदला शासक वर्ग ने 'इंन्दिरा गांधी' की जान देकर चुकाया।

इंन्दिरा गांधी की हत्या के तुरन्त बाद राजीव गांधी को नया प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया गया। जो आदमी 3 साल पहले पायलटी छोङकर आया था, वो देश का 'मुगले आजम' बन गया। इंन्दिरा गांधी की अचानक हत्या से सारे देश मेँ सिक्खोँ के विरूद्ध माहौल तैयार किया गया। दंगे हुऐ। अकेले दिल्ली में 3000 सिक्खो का कत्लेआम हुआ जिसमें तत्कालीन मंत्री भी थे। उस दौरान राष्ट्रपति श्री ज्ञानी जैल सिँह का फोन तक प्रधनमंत्री राजीव गांधीने रिसीव नहीँ किये। उधर कांशीराम जी अपना अभियान जारी रखे हुऐ थे। उन्होनेँ अपनी राजनीतिक पार्टी BSP की स्थापना की और सारे देश में साईकिल यात्रा निकाली। कांशीराम जी ने एक नया नारा दिया "जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी ऊतनी हिस्सेदारी।"

कांशीराम जी मंडल कमीशन का मुद्दा बङी जोर शोर से प्रचारित किया, जिससे उत्तर भारत के OBC वर्ग मेँ एक नयी तरह की सामाजिक, राजनीतिक चेतना जागृत हुई। इसी जागृति का परिणाम था कि OBC वर्ग का नया नेतृत्व जैसे कर्पुरी ठाकुर, लालु, मुलायम का उभार हुआ।

अब कांशीराम शोषित वंचित समाज के सबसे बङे नेता बनकर उभरे। वही 1984 का चुनाव हुआ पर इस चुनाव मे कांशीराम ने सक्रियता नहीँ दिखाई। पर राजीव गांधी को सहानुभुति लहर का इतना फायदा हुआ कि राजीव गांधी 413 MPs चुनवा कर लाये। जो राजीव जी के नाना ना कर सके वह उन्होने कर दिखाया।

सरकार बनने के बाद फिर मण्डल का जिन्न जाग गया। OBC के MPs संसद मेँ हंगामे शुरू कर दिये। शासक वर्ग ब्राह्मण ने फिर नयी व्युह रचना बनाने की सोची।

अब कांशीराम जी के अभियानो के कारण OBC जागृत हो चुका था। अब शासक वर्ग के लिऐ मंडल कमीशन का विरोध करना संभव नहीँ था। 2000 साल के इतिहास मेँ शायद ब्राह्मणोँ ने पहली बार कांशीराम जी के सामने असहाय महसूस किया।

कोई भी राजनीतिक उदेश्य इन तीन साधनोँ से प्राप्त किया जा सकता है वह है-

1) शक्ति संगठन की,
2) समर्थन जनता का और
3) दांवपेच नेता का।

कांशीराम जी के पास तीनो कौशल थे और दांवपेच के मामले मेँ वे ब्राह्मणोँ से इक्कीस थे। अब यह समय था जब कांग्रेस और संघ की सम्पूर्ण राजनीति केवल कांशीराम जी पर ही केन्द्रित हो गयी।

1984 के चुनावोँ में बनवारी लाल पुरोहित ने मध्यस्थता कर राजीव गांधी और संघ का समझौता करवाया एवं इस चुनाव मेँ संघ ने राजीव गांधी का समर्थन किया। गुप्त समझौता यह था कि राजीव गांधी राम मंदिर आन्दोलन का समर्थन करेगेँ और हम मिलकर रामभक्त OBC को मुर्ख बनाते है। राजीव गांधी ने ही बाबरी मस्जिद के ताले खुलवाये, उसके अन्दर राम के बाल्यकाल की मूर्ति भी रखवाईं ।

अब ब्राह्मण जानते थे अगर मण्डल कमीशन का विरोध करते है तो "राजनीतिक शक्ति" जायेगी, क्योकि 52% OBC के बल पर ही तो वे बार बार देश के राजा बन जाते थे, और समर्थन करते हैं तो कार्यपालिका में जो उन्होने स्थायी सरकार बना रखी थी वो छिन जाने खा खतरा था।

विरोध करें तो खतरा, समर्थन करें तो खतरा। करें तो क्या करें? तब कांग्रेस और संघ मिलकर OBC पर विहंगम दृष्टि डाली तो उनको पता चला कि पूरा OBC रामभक्त है। उन्होँने मंडल के आन्दोलन को कमंडल की तरफ मोङने का फैसला किया। सारे देश में राम मंदिर अभियान छेङ दिया। बजरंग दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया जो OBC था।
https://videoindirdur.com/video/%E0%A4%AE-%E0%A4%A1%E0%A4%B2-%E0%A4%B5-%E0%A4%B2-%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A4%AE-%E0%A4%A1%E0%A4%B2-%E0%A4%95-%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%B5-%E0%A4%AC-jayanti-on-vp-mandal-hd-16w4n4e3t5o47406n474n3.html

कल्याण सिंह, रितंभरा, ऊमा भारती, गोविन्दाचार्य आदि वो मुर्ख OBC थे जिनको संघ ने सेनापति बनाया। जिस प्रकार ये लोग हजारोँ सालो से ये पिछङो में विभीषण पैदा करते रहे इस बार भी इन्होंने ऐसा ही किया।

वहीँ दूसरी तरफ अनियंत्रित राजीव गांधी ने खुद को अन्तर्राष्ट्रीय नेता बनाने एवं मंडल कमीशन का मुद्दा दबाने के लिऐ प्रभाकरण से समझौता किया तथा प्रभाकरण को वादा किया कि जिस प्रकार उसकी माँ (इंदिरागांधी) ने पाकिस्तान का विभाजन कर देश-दुनिया की राजनीति में अपनी धाक पैदा की वैसे वह भी श्रीलंका का विभाजन करवाकर प्रभाकरण को तमिल राष्ट्र बनवाकर देगा।

वहीं राजीव गांधी की सरकार में वी.पी. सिंह रक्षा मंत्री थे।
बोफोर्स रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार राजीव गांधी की सहायता से किया गया जिसको उजागर किया गया। यह राजीव गांधी की साख पर बट्टा था। वीपी सिंह इसको मुद्दा बनाकर अलग जन मोर्चा बनाया। अब असली घमासान था। 1989 के चुनाव की लङाई दिलकश हो चली थी। पूरे उत्तर भारत में कांशीराम जी बहुजन समाज के नायक बनकर उभरे। उन्होने 13 जगहो पर चुनाव जीता जबकि 176 जगहोँ पर वे कांग्रेस का पत्ता साफ करने में सफल हो गये।

राजीव गांधी जो कल तक दिल्ली का मुगल था कांशीराम जी के कारण वह रोड मास्टर बन गया। कांग्रेस 413 से धङाम 196 पर आ गयी। वी पी सिंह के गठबनधन 144 सीटें मिली, जिसके कारण वी पी सिंह ने चुनाव में जाने की घोषणा की और कहा कि यदि उनकी सरकार बनी तो मंडल कमीशन लागू करेंगे।

चन्द्रशेखर व चौधरी देवीलाल के साथ मिलकर सरकार बनाने की योजना वी पी सिंह द्वारा बनायी गयी। चौधरी देवीलाल प्रधानमंत्री पद के सबसे बङे दावेदार थे पर योजना इस प्रकार से बनायी गयी थी कि संसदीय दल की बैठक में दल का नेता (प्रधानमंत्री) चुनने की माला चौ. देवीलाल के हाथ में दे दी जाए। चौ. देवीलाल (इस झूठे सम्मान से कि नेता चुनने का हक़ उनको दिया गया) माला वी पी सिंह के गले में डाल दिया। इस प्रकार वी पी सिंह नये प्रधानमंत्री बने।

प्रधानमंत्री बनते ही OBC नेताओं ने मंडल कमीशन लागू करवाने का दबाव डाला। वी पी सिँह ने बहानेबाजी की पर अन्त में निर्णय करने के लिए चौ. देवीलाल की अध्यक्षता मेँ एक कमेटी बनायी।

याद रहे कि मंडल कमीशन के चैयरमैन बी. पी. मंडल यादव थे, शायद इसीलिए मंडल कमीशन की लिस्ट में उन्होने यादवों को तो शामिल कर लिया मगर जाटों को शामिल नही किया। चौधरी देवीलाल ने कहा कि इसमे जाटों को शामिल करो फिर लागू करो मगर ठाकुर वी पी सिँह इनकार कर दिया।

चौधरी देवीलाल नाराज होकर कांशीराम जी के पास गये और पूरी कहानी सुनाकर बोले मुझे आपका साथ चाहिये। कांशीराम जी बोले कि 'ताऊ तुझे जनता ने "Leader" बनाया मगर ठाकुर ने "Ladder" (सीढी) बनाया। तुम्हारे साथ अत्याचार हुआ और दुनिया में जिसके साथ अत्याचार होता है कांशीराम उसका साथ देता है।

कांशीराम जी और देवीलाल ने वी पी सिंह के विरोध में एक विशाल रैली करने वाले थे। उसी दौरान शरद यादव और रामविलास पासवान ने वी पी सिंह से मुलाकात की। उन्होँने वी पी सिंह से कहा कि हमारे नेता आप नही बल्कि चौधरी देवीलाल है। अगर आप मंडल लागू कर दे तो हम आपके साथ रहेंगे अन्यथा हम भी देवीलाल और कांशीराम का साथ देंगे। ठाकुर वी पी सिँह की कुर्सी संकट से घिर गयी। कुर्सी बचाने के डर से वी पी सिंह ने मंडल कमीशन लागू करने की घोषणा कर दी।

सारे देश मेँ बवाल खङा हो गया। Mr. Clean से Mr. Corrupt बन चुके राजीव गांधी ने बिना पानी पिये संसद में 4 घंटे तक मंडल के विरोध में भाषण दिया। जो व्यक्ति 10 मिनिट तक संसद में ठीक से बोल नहीं सकता था, उसने OBC का विरोध अपनी पूरी ऊर्जा से पानी पी-पी कर किया और 4 घंटे तक बोला।

वी पी सिंह की सरकार गिरा दी गयी। चुनाव घोषणा की हुयी और एम नागराज नाम के ब्राह्मण ने उच्चतम न्यायालय में आरक्षण के विरोध में मुकदमा (केश) कर दिया।

इधर राजीव गांधी ने जो प्रभाकरण से वादा किया था वो पूरा नही कर सके थे बल्कि UNO के दबाव मे ऊन्होँने शांति सेना श्रीलंका भेज दी थी। राजीव गांधी के कहने पर प्रभाकरण के साथी काना शिवरामन को BOMB बनाने की ट्रेनिँग दी गयी थी। जब प्रभाकरण को लगा कि राजीव गाँधी ने धोखा किया। उसने काना शिवरामन को राजीव गांधी की हत्या कर देने का आदेश दिया और मई 1991 मे राजीव गांधी को मानव बम द्वारा ऊङा दिया गया। एक बार फिर माओ का कथन सत्य सिद्ध हुआ और मंडल के भूत ने राजीव गांधी की जान ले ली।

राजीव गांधी हत्या का फायदा कांग्रेस को हुआ। कांग्रेस के 271 सांसद चुनकर आये। शिबु सोरेन व एक अन्य को खरीदकर कांग्रेस ने सरकार बनायी। पी वी नरसिंम्हराव दक्षिण के ब्राह्मण प्रधानमंत्री बने।

दूसरी तरफ मंडल कमीशन के विरोध मे Supreme Court के 31 आला ब्राह्मण वकील सुप्रीम कोर्ट पहुँच गये।

लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री थे, पटना से दिल्ली आये। सारे ब्राह्मण-बनिया वकीलों से मिले। कोई भी वकील पैसा लेकर भी मंडल के समर्थन में लङने के लिऐ तैयार नही था।

लालू यादव ने रामजेठमलानी से निवेदन किया मगर जेठमलानी Criminal Lawyer थे जबकि यह संविधान का मामला था, फिर भी रामजेठमलानी ने यह केस लङा। मगर Supremes Court ने 4 बङे फैसले OBC के खिलाफ दिये।

1. केवल 1800 जातियों को OBC माना।
2. 52% OBC को 52% देने की बजाय संविधान के विरोध में जाकर 27% ही आरक्षण होगा।
3. OBC को आरक्षण होगा पर प्रमोशन मेँ आरक्षण नहीँ होगा।
4. क्रीमीलेयर होगा अर्थात् जिस OBC का Income 1 लाख होगा उसे आरक्षण नहीँ मिलेगा।

इसका एक आशय यह था कि जिस OBC का लङका महाविद्यालय मेँ पढ रहा है उसे आरक्षण नहीँ मिलेगा बल्कि जो OBC गांव मेँ ढोर ढाँगर चरा रहा है उसे आरक्षण मिलेगा।

यह तो वही बात हो गई कि दांत वाले से चना छीन लिया और बिना दांत वाले को चना देने कि बात करता है ताकि किसी को आरक्षण का लाभ न मिले।

ये चार बङे फैसले सुप्रीम कोर्ट के ब्राह्मण जज जी. ए. भट्टजी ने OBC के विरोध मेँ दिये। दुनिया की हर Court में न्याय मिलता है जबकि भारत की Supreme Court ने 52% OBC के हक और अधिकारों के विरोध का फैसला दिया। भारत के शासक वर्ग अपने हित के लिऐ सुप्रीम कोर्ट जैसी महान् न्यायिक संस्था का दुरूपयोग किया।

मंडल को रोकने के लिऐ कई हथकंडे अपनाऐ हुऐ थे जिसमें राम मंदिर आन्दोलन बहुत बङा हथकंडा था। उत्तर प्रदेश मेँ बीजेपी ने मजबूरी मेँ कल्याण सिंह जो कुर्मी थे उनको मुख्यमंत्री बनाया।

आपको बताता चलूं की कांशीराम जी के उदय के पश्चात् ब्राह्मणोँ ने लगभग हर राज्य में OBC मुख्यमंत्री बनाना शुरू किये ताकि OBC का जुङाव कांशीराम जी के साथ न हो। इसी वजह से एक कुर्मी को मुख्यमंत्री बनाया गया।

आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। नरेन्द्र मोदी आडवाणी के हनुमान बने। याद रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने मंडल विरोधी निर्णय 16 नवम्बर 1992 को दिया और शासक वर्ग ने 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी। बाबरी मस्जिद गिराने मे कांग्रेस ने बीजेपी का पूरा साथ दिया। इस प्रकार सुप्रिम कोर्ट के निर्णय के बारे में OBC जागृत न हो सके, इसीलिए बाबरी मस्जिद गिराई गयी।

शासक वर्ग ने तीर मुसलमानों पर चलाया पर निशाना OBC थे। जब भी उन पर संकट आता है वे हिन्दु और मुसलमान का मामला खङा करते हैं। बाबरी मस्जीद गिराने के बाद कल्याणसिंह सरकार बर्खास्त कर दी गयी।

दूसरी तरफ कांशीराम जी UP के गांव गांव जाकर षडयंत्र का पर्दाफाश कर रहे थे। उनका मुलायम सिंह से समझौता हुआ। विधानसभा चुनाव हुए कांशीराम जी की 67 सीट एवं मुलायम सिँह को 120 सीटें मिली। बसपा के सहयोग से मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने।

UP के OBC और SC के लोगों ने मिलकर नारा लगाया "मिले मुलायम कांशीराम हवा मेँ ऊङ गये जय श्री राम।"

शासक जाति को खासकर ब्राह्मणवादी सत्ता को इस गठबन्धन से और ज्यादा डर लगने लगा।

इंडिया टुडे ने कांशीराम भारत के अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं ऐसा ब्राह्मणोँ को सतर्क करने वाला लेख लिखा। इसके बाद शासक वर्ग अपनी राजनीतिक रणनीति में बदलाव किया। लगभग हर राज्य का मुख्यमंत्री ऊन्होनेँ शूद्र(OBC) बनाना शुरू कर दिये। साथ ही उन्होने दलीय अनुशासन को कठोरता से लागू किया ताकि निर्णय करते वक्त वे स्वतंत्र रहें।

1996 के चुनावों में कांग्रेस फिर हार गयी और दो तीन अल्पमत वाली सरकारें बनी। यह गठबन्धन की सरकारें थी। इन सरकारों में सबसे महत्वपुर्ण सरकार एच. डी. देवेगौङा (OBC) की सरकार थी जिनके कैबिनेट में एक भी ब्राह्मण मंत्री नही था। आजाद भारत के इतिहास मे पहली बार ऐसा हुआ जब किसी प्रधानमंत्री के केबिनेट मे एक भी ब्राह्मण मंत्री नही था। इस सरकार ने बहुत ही क्रांतिकारी फैसला लिया। वह फैसला था OBC की गिनती करने का फैसला जो मंडल का दूसरी योजना थी, क्योँकि 1931 के आंकङे बहुत पुराने हो चुके थे। OBC की गिनती अगर होती तो देश मे OBC की सामाजिक, आर्थिक स्थिति क्या है और उसके सारे आंकङे पता चल जाते। इतना ही नही 52% OBC अपनी संख्या का उपयोग राजनीतिक ऊद्देश्य के लिऐ करता तो आने वाली सारी सरकारेँ OBC की ही बनती। शासक वर्ग के समर्थन से बनी देवेगोङा की सरकार फिर गिरा दी गयी।

शासक वर्ग जानता है कि जब तक OBC धार्मिक रूप से जागृत रहेगा तब तक हमारे जाल मेँ फँसता रहेगा जैसे 2014 मेँ फंसा। शायद जाति आधारित गिनती OBC की करने का निर्णय देवेगौङा सरकार ने नहीं किया होता तो शायद उनकी सरकार नही गिरायी जाती।

ब्राह्मण अपनी सत्ता बचाने के लिये हरसंभव प्रयत्न में लगे रहे। वे जानते थे कि अगर यही हालात बने रहे थे तो ब्राह्मणों की राजनीतिक सत्ता छीन ली जायेगी।

जो लोग सोनिया को कांग्रेस का नेता नहीँ बनाना चाहते थे वे भी अब सोनिया को स्वीकार करने लगे। कांग्रेस वर्किग कमेटी मे जब शरद पवार ने सोनिया के विदेशी होने का मुद्दा उठाया तो आर.के. धवन नामक ब्राह्मण ने थप्पङ मारा। पी ऐ संगमा, शरद पवार, राजेश पायलट, शरद पवार, सीताराम केसरी सबको ठिकाने लगा दिया। शासक वर्ग ने गठबन्धन की राजनीति स्वीकार ली।

उधर अटल बिहारी कश्मीर पर गीत गाते गाते 1999 मे फिर प्रधानमंत्री हुऐ। अगर कारगिल नही हुआ होता तो अटल बिहारी फिर शायद चुनकर आते। सरकार बनाते ही अटल बिहारी ने संविधान समीक्षा आयोग बनाने का निर्णय लिया।

अरूण शौरी ने बाबासाहब अम्बेडकर को अपमानित करने वाली किताब 'Worship of false gods' लिखी। इसके विरोध मेँ सभी संगठनो ने विरोध किया। विशेषकर बामसेफ के नेतृत्व मेँ 1000 कार्यक्रम सारे देश में आयोजित किये गये। अटल सरकार ने अपना फैसला वापस (पीछे) ले लिया।
ये भी नया हथकंडा था वास्तविक मुद्दो को दबाने का। फिर 2011 में जनगणना होनी थी। मगर OBC की जनगणना नहीँ करने का फैसला किया गया।

इसलिए भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में संख्याबल के हिसाब से शासक बनने वाला OBC वर्ग सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणवादी /मनुवादी शासकों का पिछलग्गू बन कर रह

https://youtu.be/-oI0l5gc6ZU

अच्छे दिन

 अच्छे दिन:-

आपको लगता है कि 2014 में नरेन्द्र मोदी के द्वारा किया गया "अच्छे दिन" का वादा झूठा था तो अब आप स्पष्ट हो जाइए कि ऐसा नहीं था , वह वादा सच्चा था और "अच्छे दिन" आ गये हैं , उनके जिनके लिए मोदी जी ने यह वादा किया था।

दरअसल , यदि आप यह समझ रहे हैं कि यह वादा पूरे देश के लिए था तो आप अपना भ्रम दूर कर लीजिए। मोदी जी का किया यह वादा उनके हार्डकोर समर्थकों और भगवा आतंकवादियों के लिया ही था।

और यदि आपको अब भी उनके "अच्छे दिन" नहीं दिख रहे हैं तो आप फिर कुछ सोचने और समझने की कोशिश करिए , उनके "अच्छे दिन" दिखने लगेंगे।

भाजपा , संघ और उनके 38 नाजायज़ संगठनों के कार्यपद्धति पर अध्ययन कीजिए , यह आज के असली "रावण" हैं जिनके एक नहीं 38 मुख हैं।

इनका सबसे बड़ा ब्रान्ड "नरेन्द्र मोदी" देश को उलझाने के लिए प्रधानमंत्री के पद पर बैठ कर बैलेंसवादी बयान देंगे , इससे अधिक वह दे भी नहीं सकते क्युँकि देश का संविधान और विदेश के लोग इनका मानमर्दन कर देंगे।

मोदी क्या कहते हैं , यह देश को जताने के लिए होता है और पर्दे के पीछे संघ के 38 नाजायज़ संगठन जो संदेश अपने हार्डकोर संगठनों तक पहुँचाते हैं वह असल में मुख्य संदेश होता है जिसका पालन देश का प्रधानमंत्री और भगवा मुख्यमंत्री करता है।

यही है "भगवा आतंकवादियों" के लिए "अच्छे दिन"।

अच्छे दिन यूँ कि वह जिसे चाहे कोई भी इल्ज़ाम लगा कर मार दें , उनका कोई कुछ नहीं कर सकता , गाय के नाम पर 38 और लव जेहाद के नाम पर 1 खौफनाक हत्याएँ हों या दलितों पर अत्याचार , इनको देश में मौजूद सभी भगवा सरकारों से खुली छूट मिली हुई है , जो या तो इनपर इन घटनाओं के कारण कार्यवाही नहीं कर रहीं हैं या प्रशासन के द्वारा लीपापोती करके बचा रही है।

इनके लिए यही है "अच्छे दिन" और दरअसल मोदी ने अच्छे दिन का वादा यही किया था।

आप जो अच्छे दिन अपने लिए सोच रहे थे वह सबके लिए नहीं बल्कि इन भगवा आतंकवादियों के लिए ही था जिसका गोपनीय मैसेज इनके 38 नाजायज़ संगठनों द्वारा इनके हार्डकोर समर्थकों तक पहुँचाया जा चुका है।

इसीलिए इनकी देश और प्रदेश की सरकारों की अन्य तमाम विफलताओं और बर्बादी के बावजूद भगवा सरकारें पुनः चुन कर आती रहीं हैं।

दरअसल इनके "अच्छे दिन" में यही सब था जो अब हो रहा है।

मुसलमानों की गाय या लव जेहाद के नाम पर हत्या कर दो , उनका इतिहास , वर्तमान और भविष्य इस देश से मिटा दो , सत्ता प्राप्त करने के रास्ते में जो आए उसको ठिकाने लगा दो , संसद का सत्र हो , चुनाव आयोग की विश्वसनियता हो या उच्चतम न्यायलय और कार्यपालिका का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप सबकी हत्या कर दो , मीडिया और पत्रकारों को अपना पालतू कुत्ता बना दो।

और वही सब हो रहा है , यही उनके लिए "अच्छे दिन" हैं।

एक आतंकी और हत्यारे "शंभू रे
गर" के समर्थन में भगवा आतंकवादियों द्वारा जो नंगा नाच उदयपुर में किया जा रहा है वही दरअसल इनके लिए "अच्छे दिन" हैं।

उदयपुर सत्र न्यायालय पर तिरंगे की जगह भगवा झंडा फहराना ही उनके लिए "अच्छे दिन" हैं।

मुझे हैरत होती है देश के संविधान और धर्मनिरपेक्ष ढ़ाचें में विश्वास करने वाले बहुसंख्यक वर्ग के लोगों पर जो सब कुछ देख सुनकर भी उनका विरोध केवल सोशलमीडिया तक ही करते हैं।

मुसलमानों का विरोध इनकी खुराक है , बहुसंख्यक वर्ग का तिव्र ज़मीनी विरोध ही इनकी ऐसी गतिविधियों को रोक सकता है इनको कमज़ोर कर सकता है।

परन्तु शायद उनको इस "अच्छे दिन" से कुछ अधिक समस्या नहीं।

पैलेट गन सिर्फ़ काश्मीर के पत्थरबाजों पर चलेगी , क्युँकि वह तिरंगे को नहीं मानने वाले कुछ काश्मीरी मुसलमान हैं , और उदयपुर में तिरंगा ना मानकर भगवा झंडा फहराने वाले "राष्ट्रवादी" हैं।

यह है "अच्छे दिन"



*गुजरात के विकास पर प्रश्नों के जवाब में मोदी नाटक और मोदी की हर बात पर आंखें बंद करके विश्वास करने वाले अन्ध-भक्तों का मानसिक दिवालियापन*

22 साल का विकास पूछा तो 22 साल के लड़के की CD दिखा दी।।ट

▪22 साल का विकास पूछा तो राहुल के परनाना ने मन्दिर नहीं बनवाया, ये बता दिया।

▪22 साल का विकास पूछा तो जनसभा में रो दिया ।

▪22 साल का विकास पूछा तो आप मेरा साथ नहीं दोंगे तो कहा जाऊंगा कह दिया ।

▪22 साल का विकास पूछा तो कहा मैं गुजरात का बेटा हूँ।

▪22 साल का विकास पूछा तो बोला तुम साथ नहीं दोंगे तो 2019 प्रधानमन्त्री नहीं बन पाउँगा।

▪22 साल का हिसाब माँगा तो बोला मन्दिर चाहिए कि मस्जिद चाहिए।

▪22 साल का हिसाब माँगा तो बोला अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है काँग्रेस।

▪22 साल का हिसाब माँगा तो बोला पाकिस्तान प्रभावित कर रहा है चुनाव।

👆🏻
*पूरा देश (सिर्फ़ भक्तों को छोड़कर) गुजरात विकास का 22 साल का हिसाबनामा जानना चाहता है।*

*पूरा देश उस गुजरात मॉडल के बारे में सुनना चाहता है जिसके बारे में दलाला मीडिया की मदद से झूठ का तूफ़ान बाँधा गया। वो गुजरात मॉडल कौन सा था जिसका लोलीपोप पूरे देश को दिया।*

*अन्ध-भक्तों के तो सोचने की क्षमता ही समाप्त हो गयी है।*.

*इन भक्तों को विकास, बेरीज़गारी, महँगाई, नौकरी, इलाज, शिक्षा, उत्पीड़न, शोषण, सत्ता दमन जैसे विषयों से कोई सरोकार नहीं है।*

 *उन्हें तो राष्ट्रवाद की अफीम चटा कर मदहोश कर दिया जाता है और उनमें  मुसलमानों के प्रति नफ़रत भर कर पागलों से भी बदतर मानसिक स्थिति में धकेल दिया जा रहा है जहाँ वे मनुष्य के रूप में हिंसक पशु में परिवर्तित हो जाते हैं ।*

खौफनाक है राजस्थान के हालात, इन 7 घटनाओं को पढ़ कांप उठेगी रूह
 http://tz.ucweb.com/12_3aJ6w
*और पशुओं को मनुष्यों की समस्याओं से क्या सम्बन्ध !*


*जय मूलनिवासी*

वैचारिक आंदोलन

 "वैचारिक आंदोलन"

*समझिएं BJP-RSS का SC-ST-OBC के विरूद्ध षड़यंत्र*


1. BJP-RSS *राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा और समता मंच के माध्यम से आरक्षण खत्म करने का आंदोलन चला रहे हैं* ताकि SC-ST-OBC वर्ग के लोग सम्पन्न ना हो सकें

2. BJP-RSS *विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल के माध्यम से SC-ST-OBC के लोगों से मुसलमानों को मारने-पीटने का आंदोलन चला रहे हैं* ताकि SC-ST-OBC का युवा वर्ग मुकदमों में फंसकर बरबाद हो जाएं

3. BJP-RSS *रणवीर सेना और सिंह वाहिनी के माध्यम से SC-ST-OBC वर्ग के लोगों को मारने-पीटने व उनकी बस्तियों को जलाने का आंदोलन चला रहे हैं* ताकि SC-ST-OBC वर्ग के लोग हमेशा शारीरिक-मानसिक गुलाम बने रहें

4. BJP-RSS *हिन्दू धर्म सभा के माध्यम से SC-ST-OBC वर्ग के लोगों को धार्मिक गुलाम बनाने का आंदोलन चला रहे हैं* ताकि SC-ST-OBC वर्ग के लोग धर्म के नाम पर दान-अनुदान-मतदान करते रहें

5. BJP-RSS *राम जन्मभूमि न्यास के माध्यम से SC-ST-OBC वर्ग के लोगों को बाबरी मस्जिद विध्वंस कालादिवस 06 दिसंबर की याद में शौर्य दिवस मनाने में फंसा रहे हैं* ताकि SC-ST-OBC वर्ग के लोग महामानव बाबा साहब डॉ अंबेडकर साहब के महापरिनिर्वाण दिवस 06 दिसंबर पर उनके SC-ST-OBC वर्ग के प्रति बलिदान और आंदोलन को समझ नहीं सकें

*SC-ST-OBC वर्ग के क्रांतिकारी साथियों,*

*इन आंदोलनों के माध्यम से SC-ST-OBC वर्ग को असहाय, असमर्थ, अक्षम, अशिक्षित बनाने की खतरनाक योजना है*

*इस खतरनाक साज़िश को समझकर इसका मुंहतोड जवाब देने के लिए SC-ST-OBC वर्ग के लोगों को अपने महापुरुषों के आंदोलन को समझना चाहिए और आरक्षित समाज को धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक गुलामी से आजादी दिलवानी चाहिए*



मयंक सक्सेना जी ने लिखा है-----

प्रवीण तोगड़िया के बच्चे हैं, कभी उनको किसी उपद्रव में शामिल देखा? 
सुब्रमण्यन स्वामी के बच्चों को? 
कभी सुना कि आडवाणी के घर का कोई बच्चा भगवा झंडा अदालत में लहराता पकड़ा गया? 
नरेंद्र मोदी के घर के कितने लोग सड़क पर हिंदूवादी भीड़ में निकलते हैं? 
विनय कटियार का बेटा क्या किसी उन्मादी भीड़ में था? 
राजनाथ सिंह के बेटे ने बजरंग दल क्यों नहीं जॉइन किया? 
मुरली मनोहर जोशी की दोनों बेटियां क्या करती हैं? 
अमित शाह के बेटे को आप सब जानते ही हैं...

पागल हो जाने से पहले सोचिये कि राजस्थान की अदालत परिसर पर भगवा झंडा फहराने से लेकर, बाबरी के गुम्बद तक चढ़े और मर रहे, गिरफ्तार हो रहे, लाठी-गोली खा रहे नौजवानों में इनके परिवार से कौन था? 

और आप अपने बच्चों को इनके और इनकी विचारधारा के हाथों इस्तेमाल होने दे रहे हैं? 

थोड़ा दिमाग लगाइए, ये सिर्फ यूज़ एंड थ्रो की राजनीति है साहब...अपने बच्चों को इस ज़हर से बचाइये..
Subodh Mishra जी से साभार



चुनावी शोरगुल से बाहर की एक बात का मतलब समझिये..

1. राजस्थान में कोर्ट पर भगवा कोई Isolated घटना नही है..ये सोच समझ कर उठाया हुवा कदम है..

2. जहा जहा सँविधान है वहा वहा ये घटना घटेगी..आपके हमारे घरो मे भी घुसेंगे ये लोग..

3. जिस दिन बाबरी तोड़ी थी, कुछ लोग बहुत खुश थे..वो बस एक झलक थी संविधान हत्या की..

4. शायद हम ये इतिहास जानते ही नही की जितने यहूदियो को मारा गया था उससे ज्यादा जर्मन को मारा गया था...इसके मायने समझते है आप?

5. हेडगेवार, गोलवलकर और सावरकर सब Militant Society में विश्वास रखते थे..समाज मे हरदम एक भय को जिंदा रखना..

6. दुनिया मे ज्यादातर आतंकी संगठन अपने धर्म और समाज को तोड़ना चाहते है..बगदादी भी यही मानता है..सबसे ज्यादा मुस्लिम को ही मारा बगदादी ने..

7. हर बार धर्म के नाम पर हत्या, हर बार तिरंगे का अपमान आपको मुझे जिंदा जलाये जाने का एहसास दिलाता रहेगा..हम धर्म से डरते रहेंगे..

8. आप को अगर लगता है कि अल्पसंख्यको की हत्या आपको सुरक्षित बना रही है तो आप खुद को बेवकूफ बना रहे है..हर अल्पसंख्यक को जिंदा जलाया जाना आपको और मुझे भी जला कर मारने को कानूनी बना रहा है..

25 साल बाद शायद हम बददुवा के काबिल भी नही रहेंगे...बच्चो को सम्हाल कर रखिये..

बाबा साहब की केवल एक किताब पढ़ कर पागल हो गया

 मान्यवर कांशी राम जी कहते थे कि मैं बाबा साहब की केवल एक किताब पढ़ कर पागल हो गया और घर बार छोड़कर बाबा साहेब के मिशन को पूरा करने में लग गया पता नहीं यह कैसे अंबेडकरवादी हैं जो बाबा साहेब की इतनी किताबें पढ़कर और उनके विचारों को सुनकर भी टस से मस नहीं होते आज तो और भी बुरी स्थिति है रोज WhatsApp पर बाबा साहब से संबंधित खबरें उनके विचार डाले जाते हैं और लोग अनेक किताबें भी खरीद कर ला कर पढ़ते हैं फिर भी जो परिवर्तन की लहर दिखनी चाहिए वह नहीं दिखती है लगता है या तो लोग ध्यान से पढ़ते नहीं हैं या अपनी सुख सुविधाओं में व्यस्त हैं उन्हें बाबासाहेब से और उनके विचारों से कुछ लेना देना नहीं है वह बाबासाहेब के नाम पर केवल दलाली करते हैं और समाज को गुमराह करते हैं अगर एक गांव में एक सच्चा अंबेडकरवादी हो जाए तो उस गांव में परिवर्तन हो जाना चाहिए इसी प्रकार से यदि देश में सच्चे अंबेडकरवादी हो जाएं तो परिवर्तन हो जाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है इससे लगता है कि लोग केवल अंबेडकर के नाम पर अपनी रोटी सेक रहे हैं और राजनीति कर रहे है




" महार " नाम का अर्थ सबसे बेहतरीन तरीके से सिर्फ महत्मा फुले जी ने बताया है अपनी किताब " गुलामगिरी " में। ..... भारत में रहने वाले जो बौद्ध लोग थे  उनपर पुष्यमित्र शुंग ( परशुराम ) ने जब आक्रमण किया , तब बाकी के सब पुष्यमित्र शुंग ( परशुराम ) के सामने हार गए थे लेकिन बौद्ध लोगों में से कुछ लोग परशुराम के साथ २१ बार लडे थे। ... २१ बार लड़ने वाले वही शूरवीर लोगों को पुष्यमित्र शुंग ने नाम दिया था " महार " .....  " महा " मतलब बड़ा और " अरि " मतलब दुश्मन , महारी ( महार ) मतलब ब्राह्मणों का सबसे बड़ा दुश्मन। ....और महारों का मुख्य राज्य  " महार-रठ्ठा "  ( Now - महार-राष्ट्र  )  था ....... 
  इतना बड़ा इतिहास महात्मा फुले जी ने बताया है ..... 

महात्मा फुले जी को जब उनके पिता ने घर के बाहर निकाल दिया था , तब महात्मा फुले जी ने अपने पिता गोविंदराव से कहा था ,   " बाबा , इस देश का इतिहास अगर बदलने की हिम्मत किसी में है तो वो केवल  " महारों " में है। ... क्यों की वो एक ही समाज जागृत है ,  बाकी के सब सोये हुए है यहाँ। ... इसलिए भले ही आप मुझे घर के बाहर निकाल दे लेकिन मैं इन्हे पढ़ाऊंगा ही  "  
और जिस तरह से महत्मा फुले बोले थे , उसी तरह से इस देश का इतिहास एक महार ने ही बदला है  , जिनका नाम था बाबासाहब आंबेडकर। ..... 

" आरक्षण " मूवी में सैफ अली खान एक डायलॉग बोलता है , 
" हमारी quality क्या है आप अच्छी तरह से जानते है ,  हमे बस  एक chance चाहिए सर। ....  हमे एक chance अगर मिल जाए , तो हममे से एक देश का संविधान लिख देता है। .... "

singing के लिए अगर bollywood में chance मिल जाए तो हममे से एक सोनू निगम होता है ..... और अगर हीरो बनने के लिए chance मिल जाए , तो इन महारों में से एक सीधे " रजनीकांत " होता है , जो एक मूवी के लिए 140 करोड़ रुपये लेते है। .......
कहाँ रहे एक मूवी के 4.6 करोड़ लेने वाले अमिताभ बच्चन और कहाँ रहे एक मूवी के लिए 140 करोड़ रुपये लेने वाले रजनीकांत , 
 ये फरक है तुममे और हम में। .... ये है हमारी quality


 जो महार अपना मूल बौध्द धम्म और  उनका गौरव शाली इतिहास भूल गये थे ! जीन बौध्द राजा वों ने लगभग 1200 साल तक राज किया हो और चक्रवर्ती सम्राट अशोक जिसका राज ईरान, अफगानिस्तान,पाकिस्तान,नेपाल,बांग्लादेश और पूरा भारत( जम्बूद्वीप )पे रहा हो हम उनकी संतान है! 
बाबासाहाब ने १४ऑक्ट १९५६ को फिर से उन महारो को अपने मूल बौध्द धम्म मे ले आये जो अपना इतिहास भूल गये थे !

🙏🏻 🙏🏻

https://www.forwardpress.in/2016/07/periyar-ki-drishti-me-ramkatha_suresh-pandit/

*अब तक का ज्ञात सबसे बड़ा बुद्ध स्थल सिरपुर।*

राजधानी रायपुर से 85 किलोमीटर दूर दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी माना जाने वाला पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत में अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है। राजधानी रायपुर से 85 किलोमीटर दूर दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी माना जाने वाला पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत में अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है।

यहां अब तक 10 बौद्ध विहार और 10,000 बौद्ध भिक्षुकों को पढ़ाने के पुख्ता प्रमाण के अलावा बौद्ध स्तूप और बौद्ध विद्वान नागार्जुन के सिरपुर आने के प्रमाण मिले हैं।

छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक सलाहकार अरुण कुमार शर्मा ने व्हेनसांग के यात्रा वृतांत के आधार पर खुदाई करते हुए यात्रा वृतांत में उल्लिखित सभी विशेषताएं सिरपुर के उत्खनन में पाई हैं।

उल्लेखनीय है कि ईसा पश्चात छठवीं शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने दक्षिण कोसल की राजधानी का जिक्र करते हुए लिखा है कि वहां सौ संघाराम थे जहां भगवान तथागत बुद्ध के आने की बात कही जाती है इसी स्थान पर बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने एक गुफा में निवास किया था।

भारत के अधिकांश धार्मिक तीर्थ नदी के ईशान कोण पर मुड़ने के स्थान पर स्थापित किए गए हैं। जैसे बनारस में गंगा नदी 18 डिग्री पर, सरयू नदी पांच डिग्री और सिरपुर में भी महानदी 21 डिग्री के ईशान कोण पर मुड़ती है। सिरपुर की नगर संरचना एवं मंदिरों की बनावट मयामत के अनुसार पाई गई है।

शर्मा ने बताया कि नालंदा में चार बौद्ध विहार मिले हैं, जबकि सिरपुर में दस बौद्ध विहार पाए गए। इनमें छह-छह फिट की बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं। सिरपुर के बौद्ध विहार दो मंजिलें हैं जबकि नालंदा के विहार एक मंजिला ही हैं। सिरपुर के बौद्ध विहारों में जातक कथाओं का अंकन है और पंचतंत्र की चित्रकथाएं भी अंकित हैं। इसमें से कुछ चित्र तो बुद्ध की किस कथा से संबंधित हैं, इसकी भी जानकारी नहीं मिल पा रही है।

शर्मा ने बताया कि सिरपुर में भगवान तथागत बुद्ध के आने के प्रमाण मिले हैं। भगवान तथागत ने यहां चौमासा बिताया है। उनके सिरपुर आगमन की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए यहां ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया था। उस स्तूप के अधिष्ठान को बाद में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में बड़ा किया गया है।

इस अधिष्ठान के पत्थरों में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अक्षरों में बौद्ध भिक्षुकों के नाम तक खुदे प्राप्त हुए हैं। भगवान बुद्ध के समय गया से लाया गया वटवृक्ष अभी भी अपनी कायांतरित शाखा के साथ बाजार क्षेत्र में विद्यमान है।

सिरपुर में उत्खनन में विश्व का सबसे बड़ा सुव्यवस्थित बाजार भी मिला है, जहां से अष्टधातु की मूर्तियां बनाने के कारखाने के प्रमाण मिले हैं। इस कारखाने में धातुओं को गलाने की घरिया और मूर्तियों को बनाने में प्रयुक्त होने वाली धातुओं की ईंटें प्राप्त हुई हैं।

उनका दावा है कि छठी शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में जिस राजधानी का जिक्र किया है वह सिरपुर ही है। व्हेनसांग ने जिस गुफा का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत में किया था वह सिरपुर के नजदीक स्थित सिंहवाधुर्वा के पहाड़ की गुफा है। [ जहां वर्तमान में जनजातियों द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया है और उस स्थान में मेला भी लगता है। ]

शर्मा ने कहा कि छठी-सातवीं शताब्दी में सिरपुर एक अति विकसित राजधानी थी जहां देश विदेश से व्यापार होता था। इस प्राचीन राजधानी में धातु गलाने के उपकरण, सोने के गहने बनाने की डाई से लेकर अंडर ग्राउंड अन्नागार तक मिले हैं।

सिरपुर में विदेश के बंदरगाह की बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है जिससे पता चलता है कि सिरपुर से विदेशों में महानदी के माध्यम से व्यापार होता था। सिरपुर के पास ही महानदी पर नदी बंदरगाह आज भी विद्यमान है। पहले महानदी में पानी की मात्रा ज्यादा होती थी और उसमें जहाज आया जाया करते थे।

सिरपुर में ढाई हजार लोगों के लिए एक साथ भोजन पकाने की सौ कढ़ाई राजा द्वारा दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं। 
इसके अलावा आयुर्वेदिक दस बिस्तरों वाला अस्पताल, शल्य क्रिया के औजार और हड्डी में धातु की छड़ लगी प्राप्त हुई है। पिछले दस वर्षों से सिरपुर का उत्खनन करने वाले शर्मा ने बताया कि सिरपुर का पतन वहां आए भूकंप और बाढ़ के कारण हुआ था। सातवीं शताब्दी के पश्चात इस क्षेत्र में जबरदस्त भूकंप आया था जिसके कारण पूरा सिरपुर डोलने लगा था इसके साथ ही महानदी का पानी महीनों तक नगर में भरा रहा।

उन्होंने कहा कि यही भूकंप और बाढ़ सिरपुर के विनाश का कारण बना। यहां के पुरातात्विक उत्खनन में इस बाढ़ और भूकंप के प्रमाण के रूप में सुरंग टीले के मंदिरों में सीढ़ियों के टेढ़े होने और मंदिरों व भवनों की दीवालों पर पानी के रूकने के साथ बाढ़ के महीन रेत युक्त मिट्टी दीवारों के एक निश्चित दूरी पर जमने के निशान मिलते हैं।

हत्यारा हमारा आदर्श नही हो सकता!

रेगर युवाओं ने कहा- 'हत्यारा हमारा आदर्श नही हो सकता!'


एक तरफ जहां प्रायोजित रेगर युवा महासभा ज्ञापन देकर अफराजुल के हत्यारे शम्भू लाल रेगर को निर्दोष बताते हुए उसके लाइव मर्डर वीडियो को फर्जी, एडिटेड बता रही है, वहीं दूसरी तरफ अम्बेडरवादी रेगर युवाओं में इस प्रकार की हरकत के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा देखा जा रहा है।


जहाजपुर के भवानी राम रेगर जो कि अम्बेडकर विचार मंच के अध्यक्ष रहे हैं, उन्होंने रेगर युवा महासभा चित्तौड़गढ़ के अस्तित्व पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि- 'ये कागजी संगठन है, इसके लोग एक विचारधारा विशेष के पालतू हैं, मैं ऐसे ज्ञापन का पुरजोर विरोध करता हूँ, यह ज्ञापन रेगर समुदाय को बदनाम करने के लिए दिलाया गया है, यह फासीवादी ताकतों का काम है' प्रखर अम्बेडरवादी भवानी राम रेगर ने अफराजुल की हत्या को शर्मशार करने वाली वारदात बताते हुए मृतक के परिवार से माफी मांगी है।


सोशल मीडिया के ज़रिए अपने गुस्से का इज़हार करते हुए महावीर प्रसाद रेगर लिखते हैं कि- सादे कागज पर टाईप किये गए ज्ञापन में जिस युवा रेगर महासभा का ज़िक्र है, वैसी कोई महासभा है ही नहीं, ये तो संघ के टुकड़ों पर पल रहे कुछ लोग है जो समाज के लिए शर्मिंदगी का कारण बन रहे है ।

एक अन्य फेसबुक यूजर अशोक चौहान रेगर लिखते हैं कि हिन्दू-हिन्दू चिल्लाने वाले अब शम्भू लाल को शम्भू हिन्दू नहीं लिख रहे हैं, वे जोर जोर से शम्भू रेगर रेगर चिल्ला रहे हैं, ताकि हमारा समाज बदनाम हो जाए। अम्बेडरवादी युवा दिनेश कुमार रेगर ने कहा कि मैंने बहुत लज्जित महसूस किया कि अपराधी मेरे समुदाय का है, मैं शम्भू जैसे भगवा गुंडे के कृत्य को अक्षम्य अपराध मानता हूं और उसके लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग करता हूँ। वहीं जितेंद्र बारोलिया ने फेसबुक पर लिखा है कि- 'हां आतंकवाद का कोई धर्म या जाति नहीं होती है, पर हम राजसमन्द की घटना पर माफी मांगने की हिम्मत रखते हैं, क्योंकि हमारी कम्युनिटी के आदमी ने ऐसा किया है, कानून से ऊपर कुछ भी नही है, जो गलत है, वो गलत है, उसे सजा मिलनी चाहिए।'

दौलतगढ़ के सी एम नुवाल का मानना है कि ये भगवा की आड़ में दलित समुदाय के लोगों से ऐसे अपराध करवा कर पूरे समाज को बदनाम करते हैं, शम्भू जैसे लोगों के लिए रेगर समाज मे कोई जगह नही है। ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के राज्य समन्वयक अधिवक्ता तारा चंद वर्मा रेगर समाज के इस तालिबानीकरण से बेहद चिंतित हैं, उनका मानना है कि समाज के आदर्श अम्बेडकर हैं, न कि ऐसे असामाजिक तत्व।

दलित, आदिवासी एवम घुमन्तू अभियान के प्रदेश महासचिव डाल चंद रेगर ने अपनी एक पोस्ट में लिखा है कि हम बहुजन नायकों से प्रेरित होते हैं, न कि शम्भू लाल जैसे किसी कातिल से, वह हमारा आदर्श नही हो सकता है। राजस्थान ईंट भट्टा मजदूर यूनियन से जुड़े शैतान रेगर तथा सामाजिक कार्यकर्ता महादेव रेगर का कहना है कि हत्यारे को नायक बनाने की सोच से रेगर समाज के युवाओं का कोई इत्तेफ़ाक़ नही है, यह कुछ लोगों की ओछी हरकत है, इससे समाज शर्मसार हो रहा है। हरमाड़ा की पूर्व सरपंच एवं लोकतंत्र शाला की सचिव नोरती देवी ने भी अफराजुल की निर्मम हत्या की कड़ी आलोचना की है।

कुल मिलाकर रेगर समाज के भीतर इस वक़्त तीखी बहस जारी है, जिसमें एक तरफ जातीय अस्मिता की धार को पैनी कर रहे लोग हैं जो ढकी छुपी जुबान से शम्भू लाल को भटका हुआ नौजवान बता रहे हैं। वहीं एक छोटा सा तबका संघ भाजपा का कैडर भी है, जो खुल कर शम्भू के कृत्य के पक्ष में नित नए कुतर्क गढ़ रहा है। लेकिन इन उग्रवादी तत्वों को आम रेगर समाज का समर्थन नही मिल पा रहा है, वहीं दूसरी ओर अम्बेडरवादी रेगर युवाओं का एक विशाल समूह उठ खड़ा हुआ है जो शम्भू लाल जैसे दुर्दांत हत्यारे को नायकत्व देने की किसी भी कोशिस को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है ।

राजस्थान के प्रगतिशील रेगर युवा इस भगवा आतंक के विरोध में खड़े हो रहे हैं, वे आरएसएस की विषकरण की प्रक्रिया से समाज को बचाना चाहते हैं, वे शम्भू भवानी सरीखे किसी अपराधी को समाज का आदर्श बनाने की संघी कोशिस को विफल करने में लगे हैं।

(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार हैं।)

भारत का बटवारे का जिम्मेदार कौन?

भारत का बटवारे का जिम्मेदार कौन??? 
ब्राह्मणी राज स्थापित करने वाला प्रधानमंत्री
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐
🔷सरदार पटेल कांग्रेस के शूद्र नेता थे लेकिन अपने आपको क्षत्रिय मानते थे।
🔷मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने गांधी को कहा कि मुस्लिम का सरकार में 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व 1947 में है। वह आजादी के बाद भी रहना चाहिए।
🔷🔷जिन्ना ने गांधी से कहा- हम भारत का विभाजन नही चाहते हैं।
🔷जिसे गांधी ने जवाहर से चर्चा करके, जिन्ना से कहा कि हम यह 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व मुस्लिमों को नही दे सकते।
🔷गांधी व जवाहर ने देश के लोगों के गणित का हिसाब लगाया। कि यदि आजादी के बाद दिल्ली की लोकसभा में 33 प्रतिशत मुस्लिम, 15 प्रतिशत दलित, 7.5 प्रतिशत आदिवासी ,= कुल 55.5 प्रतिशत sc st muslim।
🔷यदि यह sc st muslims 55.5 प्रतिशत एक गढ़जोड़ बना दें और फिर शेष सम्पूर्ण भारत में भी सारे वोट यदि ब्राह्मणों को मिल भी जाए तो भी ब्राह्मण भारत में राज कभी नही कर सकते और यदि मुस्लिम को अलग कर दे।
तो फिर 22.5 प्रतिशत दलित और आदिवासियों को हम आसानी से सयुक्त चुनाव प्रणाली थोप कर उस पर अपना राज कायम कर सकते है।
🔷आज वर्तमान में यही हो रहा है।
🔷यही कारण रहा कि जिन्ना को 33 प्रतिशत प्रतिनिधित्व देने से इनकार कर दिया। नतीजा यह रहा जिन्ना ने मुस्लिम प्रतिनिधित्व के लिये अंग्रेजों से माग की।
🔷क्योंकि जिन्ना को मालूम था कि गांधी बदमाश है और वह 1932 में भी आमरण अनशन करके डॉ अम्बेडकर द्वारा दलितों को दिलाये अधिकार छीन चुका है इसलिये जिन्ना ने अंग्रेजों से आजादी एक दिन पहले मुस्लिमों को अधिकार के रूप में पाकिस्तान देने की मांग की। जिसे अंग्रेजों ने मान लिया।
🔷जिस पर गांधी- जवाहर ने भारत का विभाजन की बात की और भारत का विभाजन हो गया और कांग्रेस ने सबसे पहले बंटवारे का प्रस्ताव गांधी की उपस्थिति में कॉंग्रेस कमेटी में पास किया।
🔷कांग्रेस कमेटी में यह कहा गया कि जिन्ना बंटवारा चाहते है जिसे कमेटी ने गांधी की अगुवाई बैठक में प्रस्ताव पारित/ स्वीकार कर लिया ।
🔷जबकि सरदार तो स्वयं कांग्रेस के सैकेण्ड पंक्ति के शुद्र नेता थे उन्हें यह सच्चाई समझ नही आई और उनकी इतनी हैसियत नही थी कि वह गांधी व जवाहर के खिलाफ जाए। नतीजतन उन्होंने भी बंटवारे का समर्थन किया।
🔷ध्यान रहे मुस्लिम , सिख, ईसाई , ऐंग्लो इंडियन के लिये पृथक निर्वाचन व्यवस्था 1912 से लागू था और बाबा साहेब ने भी कम्युनल अवार्ड के तहत यही पृथक निर्वाचन क्षेत्र दलितों को दिलाये जिसे गांधी ने आमरण अनशन करके छीन लिये।
🔷ध्यान रहे भारत का बंटवारा कॉंग्रेस गांधी ने किया और नाम मुस्लिम का लेते है और जोर जोर से पूरे देश में हल्ला करते है जिससे मुस्लिम भी मानते है शायद हमारे जिन्ना ने देश का बटवारा करवाया जबकि सच्चाई यह है कि देश का बटवारा गांधी और जवाहर ब्राह्मण व शुद्र होकर अपने को बडा समझने वाला पटेल ने करवाया।
ये वही पटेल है जो बाबा साहेब के लिये दरवाज़े और खिडकियां तक बन्द करने की बात किये थे !

https://makingindiaonline.in/online-news-in-hindi/2017/07/30/sycophant-historians-like-ramchandra-guha-painting-nehru-great/