उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद से अचानक जो बहुजन समाज के
चिंतक एकाएक पैदा हुए हैं मुझे तो सबसे ज्यादा वही ढोंगी लग रहे हैं। सब
मुफ्त में रायचंद बनते जा रहे हैं कि मायावती जी को ऐसा करना था, वैसा करना
था आदि।
मैं इन सब मुफ्त के फोकटिये रायचंदो से पूछना चाहता हूँ कि चुनाव परिणाम के बाद सबमें एक ही साथ रविश कुमार की आत्मा कहाँ से जाग उठी है?
क्योंकि जब बसपा कार्यकर्ता गाँव गाँव, गलियों गलियों में जब समर्थन, नए सदस्य बनाने, बैठकों के लिए प्रेरित करने जाते हैं तो यही रायचंद लोग अपना दरवाजा सबसे पहले बंद करते हैं। सदस्यता के लिये इनकी जेब से 50 रु तक नही निकलते और आज मायावती को समझाने चल पड़े हैं। और राय ऐसी ऐसी दे रहे हैं जैसे मोदी ने इनको मंत्रिमंडल में बिठा रखा हो!!
पढ़े लिखे फ़ोकट के रायचंदो से कुछ सवाल है-
1) मायावती के भाषण पर आज सवाल उठा रहे हो, लेकिन संसद में आरक्षण का सवाल हो, तब आवाज मायावती उठाती है या आरक्षित सीटों से चुने हुए कांग्रेस-बीजेपी के तुम्हारे काकाजी?
2) ऊना में जब दलितों के पिछवाड़े सुजा दिए थे तब रोने मायावती जी गयी थी या कांग्रेस-बीजेपी की लुगाइयाँ?
3) आंबेडकर जयंती, संविधान दिवस, महापरिनिर्वाण दिवस मनाने तुम सब ग़ुलाम लोग अयोध्या के मंदिर में जाते हो या मायावती सरकार के द्वारा बनाये हुए पार्कों और स्मारकों में?
4) पहली दबंग मुख्यमंत्री जिसके आगे सब के सर झुके रहते थे वो मायावती थी या तुम्हारे घर की घूंघट में रहने वाली कांग्रेस बीजेपी वालियां?
और इन सबसे ज्यादा टेढ़ा सवाल अगर दिमाग की जगह दिमाग हो तो सोचना जरूर-
बहुजन समाज को मायावती की जरुरत है या मायावती को बहुजन समाज की??
क्योंकि मायावती को अब खुद की जेब तो भरनी नहीं है, न खुद को साबित करना है। वो चाहे तो राजनीति से संन्यास ले ले। और तुम सब चमार जाटव दलित महादलित वापस नालियां साफ़ करने में मजबूर हो जाओ।
मायावती को उसकी गणित ने नहीं बल्कि तुम जैसे निठल्ले नकारा रायचंदो और मनुवादियों के षड्यंत्रों ने हराया है। खुद कभी बसपा की बैठकों में आये नही, बसपा का साहित्य कभी पढ़ा नही, रामायण और गीता का पाठ करने वाले आज मायावती को सिखाने आ गए हैं!! वो वैसे ही विजेता है क्योंकि वह दलित और शाषक वर्ग से है। और तुम सब आज भी ग़ुलाम हो और ग़ुलाम ही रहोगे जब तक अपने ही लोगों और पार्टी की कब्र खोदोगे।
और जब तुम्हारी औलादों को लोग कुटेंगे तब शायद तुम्हारे लिए मोदी, राजनाथ, अमित शाह, तोगड़िया रोने आएगा। क्या यही असली औकात है बहुजन समाज की ?
मायावती कल भी विजेता थी, आज भी है और कल भी रहेगी क्योंकि जिस महिला ने बडे बड़े ब्राह्मण, ठाकुरों को अपने घुटनों पर ला दिया वो ऐसी हार से परेशान होने वाली नही है। क्योंकि हारी वो नही, बल्कि हारा बहुजन समाज है। और अब हर गली मोहल्लों में यह बहुजन समाज ही मार खाता रहेगा, मायावती नहीं।
जय भीम🙏🏻🙏🏻
मैं इन सब मुफ्त के फोकटिये रायचंदो से पूछना चाहता हूँ कि चुनाव परिणाम के बाद सबमें एक ही साथ रविश कुमार की आत्मा कहाँ से जाग उठी है?
क्योंकि जब बसपा कार्यकर्ता गाँव गाँव, गलियों गलियों में जब समर्थन, नए सदस्य बनाने, बैठकों के लिए प्रेरित करने जाते हैं तो यही रायचंद लोग अपना दरवाजा सबसे पहले बंद करते हैं। सदस्यता के लिये इनकी जेब से 50 रु तक नही निकलते और आज मायावती को समझाने चल पड़े हैं। और राय ऐसी ऐसी दे रहे हैं जैसे मोदी ने इनको मंत्रिमंडल में बिठा रखा हो!!
पढ़े लिखे फ़ोकट के रायचंदो से कुछ सवाल है-
1) मायावती के भाषण पर आज सवाल उठा रहे हो, लेकिन संसद में आरक्षण का सवाल हो, तब आवाज मायावती उठाती है या आरक्षित सीटों से चुने हुए कांग्रेस-बीजेपी के तुम्हारे काकाजी?
2) ऊना में जब दलितों के पिछवाड़े सुजा दिए थे तब रोने मायावती जी गयी थी या कांग्रेस-बीजेपी की लुगाइयाँ?
3) आंबेडकर जयंती, संविधान दिवस, महापरिनिर्वाण दिवस मनाने तुम सब ग़ुलाम लोग अयोध्या के मंदिर में जाते हो या मायावती सरकार के द्वारा बनाये हुए पार्कों और स्मारकों में?
4) पहली दबंग मुख्यमंत्री जिसके आगे सब के सर झुके रहते थे वो मायावती थी या तुम्हारे घर की घूंघट में रहने वाली कांग्रेस बीजेपी वालियां?
और इन सबसे ज्यादा टेढ़ा सवाल अगर दिमाग की जगह दिमाग हो तो सोचना जरूर-
बहुजन समाज को मायावती की जरुरत है या मायावती को बहुजन समाज की??
क्योंकि मायावती को अब खुद की जेब तो भरनी नहीं है, न खुद को साबित करना है। वो चाहे तो राजनीति से संन्यास ले ले। और तुम सब चमार जाटव दलित महादलित वापस नालियां साफ़ करने में मजबूर हो जाओ।
मायावती को उसकी गणित ने नहीं बल्कि तुम जैसे निठल्ले नकारा रायचंदो और मनुवादियों के षड्यंत्रों ने हराया है। खुद कभी बसपा की बैठकों में आये नही, बसपा का साहित्य कभी पढ़ा नही, रामायण और गीता का पाठ करने वाले आज मायावती को सिखाने आ गए हैं!! वो वैसे ही विजेता है क्योंकि वह दलित और शाषक वर्ग से है। और तुम सब आज भी ग़ुलाम हो और ग़ुलाम ही रहोगे जब तक अपने ही लोगों और पार्टी की कब्र खोदोगे।
और जब तुम्हारी औलादों को लोग कुटेंगे तब शायद तुम्हारे लिए मोदी, राजनाथ, अमित शाह, तोगड़िया रोने आएगा। क्या यही असली औकात है बहुजन समाज की ?
मायावती कल भी विजेता थी, आज भी है और कल भी रहेगी क्योंकि जिस महिला ने बडे बड़े ब्राह्मण, ठाकुरों को अपने घुटनों पर ला दिया वो ऐसी हार से परेशान होने वाली नही है। क्योंकि हारी वो नही, बल्कि हारा बहुजन समाज है। और अब हर गली मोहल्लों में यह बहुजन समाज ही मार खाता रहेगा, मायावती नहीं।
जय भीम🙏🏻🙏🏻
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