भारत का लोकतंत्र अब संख्या की भागीदारी के अाधार पर नही बल्कि हिंदू-
मुस्लिम के आधार पर चल रहा है,जिससे संवैधानिक अधिकारो की चर्चा के बजाय
धर्मो पर अधिक चर्चा हो रही है जिससे ओबीसी,एससी,एसटी का वास्तविक
संवैधानिक प्रतिनिधित्व खतरे मे होता जा रहा है|
इस भारत देश के मूलनिवासियों को हिंदू- मुस्लिम मामले से आज तक क्या मिला है?????सिवाय नफरत के|
हमे अपने संवैधानिक अधिकारो के लिये एक मंच पर आना होगा|
अगर ओबीसी,एससी,एसटी एक नही होते है तो भविष्य मे भारत के दो समुदायों मे ग्रहयुद्ध से इंकार नही किया जा सकता|
भारत मे दो संगठन ऐसे है जो लोगो को एक करने के लिये मंच प्रदान कर रहा है|
१-बामसेफ
२-आरएसएस
बामसेफ ओबीसी,एससी,एसटी व माइनारिटी को संवैधानिक अधिकार दिलाने का पक्षधर है
वही आरएसएस केवल हिंदुत्व के एजेडें पर काम करने वाला संगठन है|
बामसेफ मे जुडेगे तो लोकतंत्र के चारों स्तंभो मे संख्या के हिसाब से भागीदारी मिलेगी जिससे नौकरी आदि के 100% अवसर मिलेगे और यदि आरएसएस से जुडेगे तो हिंदुत्व के नाम पर एक विशेष समुदाय से नफरत करने की सीख मिलेगी व आरक्षण(प्रतिनिधित्व) को खत्म करने की प्रेरणा|
फैसला आप लोगो को करना है कि किससे जुडे????? Fb copy past
[9:58 AM, 3/23/2017] +91 99055 55064: जापान ,जर्मनी, नीदरलैंड ,इंग्लैंड ,फ़्रांस जैसे developed देश बैलेट पेपर पर चुनाव कराते और भारत जहा 80 करोड़ गरीब भूखे नंगे लोग रहते है वो देश EVM मशीन से चुनाव क्यों कराता है ,
जानते हो क्यों ?
EVM के पीछे की कहानी!
11 मार्च 2017 को टीवी पर चुनावी नतीजे देख रहा था तो आचनक न्यूज़रूम से एंकर मायावती की प्रेस कांफ्रेंस की तरफ ले गया और उन्होंने अपनी हार के लिए EVM मशीन को जिम्मेदार बता दिया. लाइव प्रसारण बीच में काटते हुए एंकर ने एक एक्सपर्ट को सवाल पूछा तो जसने जवाब दिया 'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे.' मगर मुझे बहन मायावती के बयान से पहले 2014 में जब बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम साहब ने जब देश भर में EVM विरोधी प्रबोधन शुरू किया था तब से यह जानकारी थी. तब से मैं यह जानकारी जुटाने के लिए प्रयासरत था.इसी साल मैं डेल्ही गया तो संयोग से मेश्राम साहब भी डेल्ही थे मैं उनसे मिलने के लिए गया. मैंने उनसे पहला ही सवाल पूछा 'सर इस बार बहनजी का क्या होगा?' उन्होंने मुझे कहा अब EVM का जमाना है बहन जी का कुछ नही होना है. मैंने उसी दिन उनकी बात पर यकीन कर लिया इसलिए चुनाव परिणाम के दौरान जब मायावती प्रेस कांफ्रेंस के लिए जैसे ही माइक पर आई तो मेरे पास में बैठे साथी को मैंने तपाक से कहा कि बहन जी EVM के खिलाफ बोलेगी.
अब सवाल यह है कि आखिर भारत में EVM इतने विवादों के बावजूद चुनाव कंडक्ट करवाने का साधन क्यों है? यह मौलिक सवाल जिसका जवाब ढूंढना ही होगा. इस सवाल के जवाब में सारे उत्तर छिपे है. जब पूरा यूरोप इन मशीनस को उपयोग करने से इंकार कर रहा था..उस समय भारत में पिछड़े वर्ग में बड़े पैमाने पर राजनीतिक चेतना का निर्माण हो रहा था. हम सभी जानते है कि भारत में आपातकाल का कारण जेपी आंदोलन नही था वरन् उस आंदोलन के कारण जो हाशिये पर स्थिति सामाजिक समूहों में सत्ता की लालसा पैदा हुई. यह 1975 का दौर था. आपातकाल के बाद जो सरकार बनी उसने कालेलकर कमीशन की अनुशंषाए लागू करने का वादा किया था जिसकी वजह भी हंगामा शुरू हुआ था. जब यह कमीशन बना था तब इस कमीशन को समझने वाला भी कोई पिछड़े वर्ग का नेता नही था. केवल बाबासाहब अम्बेडकर के कारण ही यह कमीशन बना था.मगर जेपी आंदोलन के बाद पिछड़े समुदाय में आए राजनीतिक चेतन्य ने बड़े पैमाने पर राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करना शुरू किया.और परिस्तिथियां ऐसी आई कि जनता पार्टी को अपने मैनिफेस्टो में इस बात को रखना पड़ा. बाद में जनता पार्टी की सरकार बनती है और मण्डल आयोग का गठन होता है.
यहीं से EVM का खेल शुरू होता है. क्योंकि शासक वर्ग को लग रहा था अगर पिछड़े वर्गो में चेतना का निर्माण इसी गति से होता रहा तो एक दिन हमारी शासन सत्ता का अंत निश्चित है. इतना ही नहीं 1972 में कांशीराम जी ने बामसेफ बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी और यह तो समस्त दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक जनता को एक समाज कायम करने का अभियान था इसलिए उनके लिए यह और भय पैदा करने वाली बात थी.
इसी परिपेक्ष्य में आप अगर देखे तो 1982 में केरल विधानसभा के चुनावों में EVM मशीन को प्रयोग किया गया. शासक वर्ग ने अपनी शासन सत्ता को बचाने के लिए हजारों सडयंत्र किये उसमे सबसे बड़ा सडयंत्र EVM प्रयोग का था. इसी दौर में EVM के ऊपर आयरलैंड में विवाद चल रहा था.इसी समय ब्रिटेन की संसद ने इसे नकार रही थी. मगर भारत का चुनाव आयोग इसे भारत में लाता है. यह वाकई कमाल की बात थी.
1984 में जब बसपा का उदय हुआ तो शासक वर्ग को लगा कि अग़र लोग 'बहुजन' कांसेप्ट को स्वीकार करते है तो वह दिन दूर नही जब हमारी सत्ता समाप्त हो जाएगी. तब 1989 में उन्होंने 'People representative act 1951 में अमेंडमेंट करके EVM को बैलट पेपर का विकल्प बनाने की बात कही गयी.
आप यह टाइमिंग देखिये. अगर आप भारत की राजनीति के 'साम दाम दण्ड भेद' के सिद्धान्त को समझते है तो आप तुरन्त समझ जाएंगे कि EVM क्यों लाया जा रहा था..जबकि ठीक इसी समय दुनिया के कई देश इसको प्रयोग करने से इनकार कर रहे थे.
यह बहुत ही रोचक तथ्य है. जैसे उनको लगा है कि EVM का उपयोग उनके लिए बहुत उपयुक्त है तो पहली बार 2004 के आम चुनावों में इसे पूरे भारत में इंट्रोड्यूस किया गया. चुनाव हुए. कांग्रेस गठबंधन जीत गया. फिर EVM से चुनाव हुए 2009 में..फिर बहुत ज्यादा अलोकप्रिय हो चुकी यूपीए सरकार चुनकर आ गयी.इस बार उसे 207 सीट्स मिली..यह आश्चर्य का विषय था. इसी समय भाजपा के द्वारा इसका खुलकर विरोध किया गया. स्वामी इस मुद्दे को कोर्ट ले गए. देश के शीर्ष कोर्ट द्वारा 8 ऑक्टेबर 2013 को निर्णय दिया कि EVM से सही, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सम्भव नहीं है. देश की शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब यह विवाद का मुद्दा ही नहीं रहा कि EVM टेम्पर या हैक हो सकती है या नहीं.
अब हमें जिन सवालों के उत्तर चाहिए वह निम्न है।
1. जब शीर्ष अदालत ने मान लिया कि EVM से फ्री फेयर एन्ड ट्रांसपेरेंट चुनाव सम्भव नहीं है तो ECI ने चुनाव 2014 EVM से क्यों करवाए?
2.जब बीजेपी के नेताओ द्वारा लगाए गए केस पर शीर्ष अदालत ने यह फैसला दिया. परन्तु जब 2014 में फिर से चुनाव EVM से होने वाले थे तो भाजपा ने विरोध क्यों नहीं किया?
3. दुनिया के सुपर तकनीकी देश या तो EVM उपयोग नही करते. अगर करते है तो VVPAT मशीन के साथ. यह अधिकांशत विकासशील देशों द्वारा उपयोग में लाया जाता है..मेरी यह भी शंका है कि क्या कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय गिरोह है जो अपनी मनचाही सरकारें EVM के माध्यम से बनवाने में लगा है?
यह सवाल मौलिक है. पूछे जाने योग्य है.
1993 में बैलेट पेपर से हुए चुनाव से जब सपा बसपा ने यूपी से ब्राह्मणों की दो बडी पार्टी "कांग्रेस बीजेपी" दोनों को ख़त्म कर दिया था तब ब्राह्मण घबरा गए की अगर लोग सपा बसपा से जुड़ गए और इसी तरह बैलेट पेपर से चुनाव होते रहे तो कांग्रेस बीजेपी पूरे देश से ख़त्म हो जायेगी ,इसलिए ब्राह्मणों ने EVM मशीन से चुनाव कराने का षड्यंत्र रचा और उसी समय जिस EVM मशीन को यूरोप में गड़बड़ी के चलते बंद किया जा रहा था उसी मशीन को ब्राह्मण 1999 में भारत ले आये ताकि EVM मशीन में गड़बड़ी कर धीरे धीरे सपा बसपा को यूपी से भी ख़त्म किया जा सके और दुबारा ब्राह्मणों की पार्टियों मतलब कांग्रेस बीजेपी का राज लाया जा सके । ब्राह्मणों ने मकसद 2017 में पूरा किया ,जानबूझकर धीरे धीरे किया ताकि किसी को शक न हो ।
1. Netherlands banned it for lack of transparency.
2. Ireland, after three years of research worth 51 million pounds, decided to junk EVMs.
3. Germany declared EVMs unconstitutional and banned it.
4. Italy also dropped e-voting since its results could be easily managed.
5. In the United States, California and many other states banned EVMs if they did not have a paper trail.
6. According to a CIA security expert, Venezuela, Macedonia and Ukraine stopped using EVMs after massive rigging was found.
7. England and France have never used EVMs.
In USA an activist named Web haris revealed truth about the alteration and tampering in EVMs. After this 64% of world countries put a termination on the usage of EVMs. In countries like Ireland, Germany EVMs were rolled down and dumped into dustbins. All this tends to takes place because if at all there has been attempts of tampering also then it does not leave even minute evidence
जिन developed देशों ने EVM में गड़बड़ी के चलते EVM से चुनाव बंद किया उन देशों से बंद करने के कारणों की लिस्ट मंगाई जाए और कुछ developed देश आज भी बैलेट पेपर से क्यों चुनाव करवा रहे है उन कारणों की लिस्ट बना ,और पक्के सबूत इकठ्ठा कर सुप्रीम कोर्ट में जाया जाए तो #EVM_SCAM को एक्सपोज़ किया जा सकता है ।
यह अंतर्राष्ट्रीय SCAM है इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर EXPOSE किया जाना चाहिए ।
UNO में भी इस मुद्दे को उठाना चाहिए ।
साथ साथ भारत की न्यायपालिका मीडिया कार्यपालिका विधायिका पर कबज्जा जमाये 3% ब्राह्मणों के खिलाफ 3 करोड़ से लेकर 15 करोड़ OBC SC ST को साथ आकर जनआंदोलन करना चाहिए ।
अगर "मायावती ,मुलायम, लालू ,ओवैसी, नितीश, देवीगौड़ा ,चंद्रबाबू नायडू " सबलोगो ने मिलकर तुरंत EVM मशीन बंद कर बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए मिलकर प्रयास नहीं किया तो मैं इस सबको #EVM_SCAM के ₹5000लाख करोड़ से भी बड़े घोटाले का हिस्सेदार मानूंगा ।
1984 में कांशीराम ने बसपा की स्थापना की और तुरंत सोच समझकर 1988 में भारतीय संसद में बहुमत के बल पर RSS (CONGRESS BJP COMMUNIST) ने संसद में Representation of people ACT 1951 में 61A जोड़ बैलेट पेपर द्वारा ही चुनाव कराये जाने के नियम को बदलकर EVM मशीन से चुनाव कराने का नियम बना डाला ,इसप्रकार #EVM_SCAM की नींव कांग्रेस बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी के ब्राह्मणों द्वारा रख्खी गयी ।
उस एक्ट में बदलाव कर ही बैलेट पेपर को वापस लाया जा सकता है , केंद्र में बहुमत में ब्राह्मणों की सत्ता है इसलिए ब्राह्मण इस एक्ट में बदलाव करेंगे नहीं
निष्कर्ष - बैलेट पेपर की वापसी केवल जनआंदोलन से ही हो सकती है ।
!!जनआंदोलन एकमात्र विकल्प !!
सुनी सुनाई!
गांव में प्रधानी का चुनाव था। पंडित जी उस पद के पुश्तों से खानदानी दावेदार रहे थे। आखिर उनके पूर्वजों की सीट थी! लेकिन ये क्या? आग लगे ऐसे सामाजिक बराबरी के आंदोलन को!!!! अबकी बार गांव की सीट दलित वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। विद्रोही स्वभाव का ननकू चमार चुनाव में खड़ा हो गया। दलित वोट सबसे ज़्यादा थे, दलित अगडों की ज़्यादती और शोषण से नाराजगी के चलते एकजुट भी थे। लेकिन पंडित जी ने भी अपनी चाणक्य बुद्धि घुमाई और दलितों की प्रत्येक बिरादरी से गैर जाटव के नाम पर कैंडिडेट खड़ा करवा दिया! अब रज्जन नाई, जीतन खटीक भी पर्चा भर मैदान में आ गए। पंडित जी दोनों को चुनाव हेतु वित्त भी उपलब्ध करा रहे थे। चुनाव त्रिकोणीय हो गया था। लेकिन फिर भी जीतना तो कोई दलित ही था। ननकू, रज्जन और जीतन तीनों आपस में ज़रूर लड़ रहे थे लेकिन दलित हितों के लिए प्रतिबद्ध थे। उनकी बिरादरियां उनके पीछे खड़ी थीं।
उधर गांव के ठाकुर और वैश्य बड़े धर्म संकट में थे कि आखिर किसे वोट दें? क्या अब दलितों के दरवाजे पर जुहार करना पड़ेगा? कलियुग आ गया लगता है! सत्यनाश हो इस पिरजातंत्र और संबिधान का! ऊंच नीच सबको एक घाट पानी पिला दिया। सब अगड़ों के बड़े बूढे पंडित जी की ड्योढ़ी में हाजिरी बजाने पहुंचे और धर्म संकट से उबारने का उपाय पूंछने लगे। पंडित जी भी अभी बिचार ही रहे थे कि आंगन में झाड़ू लगाते रमुआ पर नज़र जा पड़ी! पंडित जी की चाणक्य वाली खोपड़ी में बिजली सी कौंधी! रमुआ का पूरा नाम रामनाथ मेहतर था। तीन पीढ़ियों से रमुआ का परिवार पंडित जी के यहां बंधुआ था। तीन पीढ़ियों से रमुआ के पूर्वज पंडित जी के पूर्वजों के पोतड़े धोते, गंदगी साफ करते, खेतों में काम करते और ड्योढ़ी पर सलाम बजाते रहे थे। रमुआ भी अपने पिता की टी बी से हुई मौत के बाद बचपन से ही पंडित जी की सेवा में था और उन्हें ही अपना अभिभावक मानता था। लेकिन कर्ज़ था कि साफ ही नहीं हो पा रहा था। ब्याज पर ब्याज जुड़ता ही जाता था।
खैर नामांकन के आखिरी दिन तीनों उम्मीदवार एक झटका और खाये। अब चौथा उम्मीदवार रमुआ भी था। नामांकन पत्र पर पंडित जी उसके प्रस्तावक थे, ठाकुर राजा और लाला जी उसके समर्थक थे, सारी सफाई कर्मियों की बिरादरी उसके पीछे थी, पंडिज्जी, ठाकुर राजा और लाला जी का वित्त, शराब, आटा, मुफ्त खाना, नौटंकी और उनकी बिरादरी के समर्थन भी उनके साथ था।
नतीजा बिल्कुल वैसा ही आया जैसा पंडित जी ने आंका था। दलित और पिछड़े वोट आपस में कट और बंट गए। रमुआ की बिरादरी के वोट के साथ बामन, ठाकुर और वैश्य वोट आ जुड़े। मुसलमान क्या करते भई, वो एक द्वार से दूसरे द्वार दौड़ते ही रह गए!
अब पंडिज्जी के अहाते के बाहर ही प्रधान का बोर्ड लगा है। बस नाम रमुआ का है। सारे कागज, विकास, ठेके और काम काज पंडिज्जी ही देखते हैं। रमुआ बस अंगूठा टेक रबर स्टाम्प लगा फिर से झाड़ू लगाने में व्यस्त हो जाता है। हाँ अब उसे खैनी रगड़ होंठ के नीचे दबाने और काम से रुक जाने पर गाली नहीं दी जाती। गांव के लोग उसे प्रधान कहने लगे हैं। और हाँ उसे रोज़ देसी शराब का एक पौव्वा बख्शीश में मिल ही जाता है। रमुआ अपने इस ऐश इशरत भरी ज़िन्दगी से खुश है।
(सुनी सुनाई कहानी जो गांव के एक बुज़ुर्ग ने मुझे सुनाई!)
आँखन देखी!
ऐसा कुछ अभी हाल फ़िलहाल में हुआ, उन्हें अपना पद मुबारक ...
नहीं सिर्फ एक काम तो करदो... भारत को #स्वच्छ_भारत बना दो तो हमारा 0.5% जो टेक्स लगता है वो तो बच जाएगा।
बस सिर्फ इतना काम करदो...
बाकी तुम लोग सीर्फ भारत मे ही क्यों आते हो ?
दुनिया के बहोत से देश है कभी किसी ओर देश की शेर करो... या फिर भारत के बहार आपको कोई बुलाता नहीं ? लगता है सभी देवी-देवताओं के लिए सिर्फ भारत ही पूरी सृष्टि है।
इस भारत देश के मूलनिवासियों को हिंदू- मुस्लिम मामले से आज तक क्या मिला है?????सिवाय नफरत के|
हमे अपने संवैधानिक अधिकारो के लिये एक मंच पर आना होगा|
अगर ओबीसी,एससी,एसटी एक नही होते है तो भविष्य मे भारत के दो समुदायों मे ग्रहयुद्ध से इंकार नही किया जा सकता|
भारत मे दो संगठन ऐसे है जो लोगो को एक करने के लिये मंच प्रदान कर रहा है|
१-बामसेफ
२-आरएसएस
बामसेफ ओबीसी,एससी,एसटी व माइनारिटी को संवैधानिक अधिकार दिलाने का पक्षधर है
वही आरएसएस केवल हिंदुत्व के एजेडें पर काम करने वाला संगठन है|
बामसेफ मे जुडेगे तो लोकतंत्र के चारों स्तंभो मे संख्या के हिसाब से भागीदारी मिलेगी जिससे नौकरी आदि के 100% अवसर मिलेगे और यदि आरएसएस से जुडेगे तो हिंदुत्व के नाम पर एक विशेष समुदाय से नफरत करने की सीख मिलेगी व आरक्षण(प्रतिनिधित्व) को खत्म करने की प्रेरणा|
फैसला आप लोगो को करना है कि किससे जुडे????? Fb copy past
[9:58 AM, 3/23/2017] +91 99055 55064: जापान ,जर्मनी, नीदरलैंड ,इंग्लैंड ,फ़्रांस जैसे developed देश बैलेट पेपर पर चुनाव कराते और भारत जहा 80 करोड़ गरीब भूखे नंगे लोग रहते है वो देश EVM मशीन से चुनाव क्यों कराता है ,
जानते हो क्यों ?
EVM के पीछे की कहानी!
11 मार्च 2017 को टीवी पर चुनावी नतीजे देख रहा था तो आचनक न्यूज़रूम से एंकर मायावती की प्रेस कांफ्रेंस की तरफ ले गया और उन्होंने अपनी हार के लिए EVM मशीन को जिम्मेदार बता दिया. लाइव प्रसारण बीच में काटते हुए एंकर ने एक एक्सपर्ट को सवाल पूछा तो जसने जवाब दिया 'खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे.' मगर मुझे बहन मायावती के बयान से पहले 2014 में जब बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम साहब ने जब देश भर में EVM विरोधी प्रबोधन शुरू किया था तब से यह जानकारी थी. तब से मैं यह जानकारी जुटाने के लिए प्रयासरत था.इसी साल मैं डेल्ही गया तो संयोग से मेश्राम साहब भी डेल्ही थे मैं उनसे मिलने के लिए गया. मैंने उनसे पहला ही सवाल पूछा 'सर इस बार बहनजी का क्या होगा?' उन्होंने मुझे कहा अब EVM का जमाना है बहन जी का कुछ नही होना है. मैंने उसी दिन उनकी बात पर यकीन कर लिया इसलिए चुनाव परिणाम के दौरान जब मायावती प्रेस कांफ्रेंस के लिए जैसे ही माइक पर आई तो मेरे पास में बैठे साथी को मैंने तपाक से कहा कि बहन जी EVM के खिलाफ बोलेगी.
अब सवाल यह है कि आखिर भारत में EVM इतने विवादों के बावजूद चुनाव कंडक्ट करवाने का साधन क्यों है? यह मौलिक सवाल जिसका जवाब ढूंढना ही होगा. इस सवाल के जवाब में सारे उत्तर छिपे है. जब पूरा यूरोप इन मशीनस को उपयोग करने से इंकार कर रहा था..उस समय भारत में पिछड़े वर्ग में बड़े पैमाने पर राजनीतिक चेतना का निर्माण हो रहा था. हम सभी जानते है कि भारत में आपातकाल का कारण जेपी आंदोलन नही था वरन् उस आंदोलन के कारण जो हाशिये पर स्थिति सामाजिक समूहों में सत्ता की लालसा पैदा हुई. यह 1975 का दौर था. आपातकाल के बाद जो सरकार बनी उसने कालेलकर कमीशन की अनुशंषाए लागू करने का वादा किया था जिसकी वजह भी हंगामा शुरू हुआ था. जब यह कमीशन बना था तब इस कमीशन को समझने वाला भी कोई पिछड़े वर्ग का नेता नही था. केवल बाबासाहब अम्बेडकर के कारण ही यह कमीशन बना था.मगर जेपी आंदोलन के बाद पिछड़े समुदाय में आए राजनीतिक चेतन्य ने बड़े पैमाने पर राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करना शुरू किया.और परिस्तिथियां ऐसी आई कि जनता पार्टी को अपने मैनिफेस्टो में इस बात को रखना पड़ा. बाद में जनता पार्टी की सरकार बनती है और मण्डल आयोग का गठन होता है.
यहीं से EVM का खेल शुरू होता है. क्योंकि शासक वर्ग को लग रहा था अगर पिछड़े वर्गो में चेतना का निर्माण इसी गति से होता रहा तो एक दिन हमारी शासन सत्ता का अंत निश्चित है. इतना ही नहीं 1972 में कांशीराम जी ने बामसेफ बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी और यह तो समस्त दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक जनता को एक समाज कायम करने का अभियान था इसलिए उनके लिए यह और भय पैदा करने वाली बात थी.
इसी परिपेक्ष्य में आप अगर देखे तो 1982 में केरल विधानसभा के चुनावों में EVM मशीन को प्रयोग किया गया. शासक वर्ग ने अपनी शासन सत्ता को बचाने के लिए हजारों सडयंत्र किये उसमे सबसे बड़ा सडयंत्र EVM प्रयोग का था. इसी दौर में EVM के ऊपर आयरलैंड में विवाद चल रहा था.इसी समय ब्रिटेन की संसद ने इसे नकार रही थी. मगर भारत का चुनाव आयोग इसे भारत में लाता है. यह वाकई कमाल की बात थी.
1984 में जब बसपा का उदय हुआ तो शासक वर्ग को लगा कि अग़र लोग 'बहुजन' कांसेप्ट को स्वीकार करते है तो वह दिन दूर नही जब हमारी सत्ता समाप्त हो जाएगी. तब 1989 में उन्होंने 'People representative act 1951 में अमेंडमेंट करके EVM को बैलट पेपर का विकल्प बनाने की बात कही गयी.
आप यह टाइमिंग देखिये. अगर आप भारत की राजनीति के 'साम दाम दण्ड भेद' के सिद्धान्त को समझते है तो आप तुरन्त समझ जाएंगे कि EVM क्यों लाया जा रहा था..जबकि ठीक इसी समय दुनिया के कई देश इसको प्रयोग करने से इनकार कर रहे थे.
यह बहुत ही रोचक तथ्य है. जैसे उनको लगा है कि EVM का उपयोग उनके लिए बहुत उपयुक्त है तो पहली बार 2004 के आम चुनावों में इसे पूरे भारत में इंट्रोड्यूस किया गया. चुनाव हुए. कांग्रेस गठबंधन जीत गया. फिर EVM से चुनाव हुए 2009 में..फिर बहुत ज्यादा अलोकप्रिय हो चुकी यूपीए सरकार चुनकर आ गयी.इस बार उसे 207 सीट्स मिली..यह आश्चर्य का विषय था. इसी समय भाजपा के द्वारा इसका खुलकर विरोध किया गया. स्वामी इस मुद्दे को कोर्ट ले गए. देश के शीर्ष कोर्ट द्वारा 8 ऑक्टेबर 2013 को निर्णय दिया कि EVM से सही, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव सम्भव नहीं है. देश की शीर्ष अदालत के इस फैसले के बाद अब यह विवाद का मुद्दा ही नहीं रहा कि EVM टेम्पर या हैक हो सकती है या नहीं.
अब हमें जिन सवालों के उत्तर चाहिए वह निम्न है।
1. जब शीर्ष अदालत ने मान लिया कि EVM से फ्री फेयर एन्ड ट्रांसपेरेंट चुनाव सम्भव नहीं है तो ECI ने चुनाव 2014 EVM से क्यों करवाए?
2.जब बीजेपी के नेताओ द्वारा लगाए गए केस पर शीर्ष अदालत ने यह फैसला दिया. परन्तु जब 2014 में फिर से चुनाव EVM से होने वाले थे तो भाजपा ने विरोध क्यों नहीं किया?
3. दुनिया के सुपर तकनीकी देश या तो EVM उपयोग नही करते. अगर करते है तो VVPAT मशीन के साथ. यह अधिकांशत विकासशील देशों द्वारा उपयोग में लाया जाता है..मेरी यह भी शंका है कि क्या कोई ऐसा अंतरराष्ट्रीय गिरोह है जो अपनी मनचाही सरकारें EVM के माध्यम से बनवाने में लगा है?
यह सवाल मौलिक है. पूछे जाने योग्य है.
1993 में बैलेट पेपर से हुए चुनाव से जब सपा बसपा ने यूपी से ब्राह्मणों की दो बडी पार्टी "कांग्रेस बीजेपी" दोनों को ख़त्म कर दिया था तब ब्राह्मण घबरा गए की अगर लोग सपा बसपा से जुड़ गए और इसी तरह बैलेट पेपर से चुनाव होते रहे तो कांग्रेस बीजेपी पूरे देश से ख़त्म हो जायेगी ,इसलिए ब्राह्मणों ने EVM मशीन से चुनाव कराने का षड्यंत्र रचा और उसी समय जिस EVM मशीन को यूरोप में गड़बड़ी के चलते बंद किया जा रहा था उसी मशीन को ब्राह्मण 1999 में भारत ले आये ताकि EVM मशीन में गड़बड़ी कर धीरे धीरे सपा बसपा को यूपी से भी ख़त्म किया जा सके और दुबारा ब्राह्मणों की पार्टियों मतलब कांग्रेस बीजेपी का राज लाया जा सके । ब्राह्मणों ने मकसद 2017 में पूरा किया ,जानबूझकर धीरे धीरे किया ताकि किसी को शक न हो ।
1. Netherlands banned it for lack of transparency.
2. Ireland, after three years of research worth 51 million pounds, decided to junk EVMs.
3. Germany declared EVMs unconstitutional and banned it.
4. Italy also dropped e-voting since its results could be easily managed.
5. In the United States, California and many other states banned EVMs if they did not have a paper trail.
6. According to a CIA security expert, Venezuela, Macedonia and Ukraine stopped using EVMs after massive rigging was found.
7. England and France have never used EVMs.
In USA an activist named Web haris revealed truth about the alteration and tampering in EVMs. After this 64% of world countries put a termination on the usage of EVMs. In countries like Ireland, Germany EVMs were rolled down and dumped into dustbins. All this tends to takes place because if at all there has been attempts of tampering also then it does not leave even minute evidence
जिन developed देशों ने EVM में गड़बड़ी के चलते EVM से चुनाव बंद किया उन देशों से बंद करने के कारणों की लिस्ट मंगाई जाए और कुछ developed देश आज भी बैलेट पेपर से क्यों चुनाव करवा रहे है उन कारणों की लिस्ट बना ,और पक्के सबूत इकठ्ठा कर सुप्रीम कोर्ट में जाया जाए तो #EVM_SCAM को एक्सपोज़ किया जा सकता है ।
यह अंतर्राष्ट्रीय SCAM है इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर EXPOSE किया जाना चाहिए ।
UNO में भी इस मुद्दे को उठाना चाहिए ।
साथ साथ भारत की न्यायपालिका मीडिया कार्यपालिका विधायिका पर कबज्जा जमाये 3% ब्राह्मणों के खिलाफ 3 करोड़ से लेकर 15 करोड़ OBC SC ST को साथ आकर जनआंदोलन करना चाहिए ।
अगर "मायावती ,मुलायम, लालू ,ओवैसी, नितीश, देवीगौड़ा ,चंद्रबाबू नायडू " सबलोगो ने मिलकर तुरंत EVM मशीन बंद कर बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए मिलकर प्रयास नहीं किया तो मैं इस सबको #EVM_SCAM के ₹5000लाख करोड़ से भी बड़े घोटाले का हिस्सेदार मानूंगा ।
1984 में कांशीराम ने बसपा की स्थापना की और तुरंत सोच समझकर 1988 में भारतीय संसद में बहुमत के बल पर RSS (CONGRESS BJP COMMUNIST) ने संसद में Representation of people ACT 1951 में 61A जोड़ बैलेट पेपर द्वारा ही चुनाव कराये जाने के नियम को बदलकर EVM मशीन से चुनाव कराने का नियम बना डाला ,इसप्रकार #EVM_SCAM की नींव कांग्रेस बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी के ब्राह्मणों द्वारा रख्खी गयी ।
उस एक्ट में बदलाव कर ही बैलेट पेपर को वापस लाया जा सकता है , केंद्र में बहुमत में ब्राह्मणों की सत्ता है इसलिए ब्राह्मण इस एक्ट में बदलाव करेंगे नहीं
निष्कर्ष - बैलेट पेपर की वापसी केवल जनआंदोलन से ही हो सकती है ।
!!जनआंदोलन एकमात्र विकल्प !!
सुनी सुनाई!
गांव में प्रधानी का चुनाव था। पंडित जी उस पद के पुश्तों से खानदानी दावेदार रहे थे। आखिर उनके पूर्वजों की सीट थी! लेकिन ये क्या? आग लगे ऐसे सामाजिक बराबरी के आंदोलन को!!!! अबकी बार गांव की सीट दलित वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। विद्रोही स्वभाव का ननकू चमार चुनाव में खड़ा हो गया। दलित वोट सबसे ज़्यादा थे, दलित अगडों की ज़्यादती और शोषण से नाराजगी के चलते एकजुट भी थे। लेकिन पंडित जी ने भी अपनी चाणक्य बुद्धि घुमाई और दलितों की प्रत्येक बिरादरी से गैर जाटव के नाम पर कैंडिडेट खड़ा करवा दिया! अब रज्जन नाई, जीतन खटीक भी पर्चा भर मैदान में आ गए। पंडित जी दोनों को चुनाव हेतु वित्त भी उपलब्ध करा रहे थे। चुनाव त्रिकोणीय हो गया था। लेकिन फिर भी जीतना तो कोई दलित ही था। ननकू, रज्जन और जीतन तीनों आपस में ज़रूर लड़ रहे थे लेकिन दलित हितों के लिए प्रतिबद्ध थे। उनकी बिरादरियां उनके पीछे खड़ी थीं।
उधर गांव के ठाकुर और वैश्य बड़े धर्म संकट में थे कि आखिर किसे वोट दें? क्या अब दलितों के दरवाजे पर जुहार करना पड़ेगा? कलियुग आ गया लगता है! सत्यनाश हो इस पिरजातंत्र और संबिधान का! ऊंच नीच सबको एक घाट पानी पिला दिया। सब अगड़ों के बड़े बूढे पंडित जी की ड्योढ़ी में हाजिरी बजाने पहुंचे और धर्म संकट से उबारने का उपाय पूंछने लगे। पंडित जी भी अभी बिचार ही रहे थे कि आंगन में झाड़ू लगाते रमुआ पर नज़र जा पड़ी! पंडित जी की चाणक्य वाली खोपड़ी में बिजली सी कौंधी! रमुआ का पूरा नाम रामनाथ मेहतर था। तीन पीढ़ियों से रमुआ का परिवार पंडित जी के यहां बंधुआ था। तीन पीढ़ियों से रमुआ के पूर्वज पंडित जी के पूर्वजों के पोतड़े धोते, गंदगी साफ करते, खेतों में काम करते और ड्योढ़ी पर सलाम बजाते रहे थे। रमुआ भी अपने पिता की टी बी से हुई मौत के बाद बचपन से ही पंडित जी की सेवा में था और उन्हें ही अपना अभिभावक मानता था। लेकिन कर्ज़ था कि साफ ही नहीं हो पा रहा था। ब्याज पर ब्याज जुड़ता ही जाता था।
खैर नामांकन के आखिरी दिन तीनों उम्मीदवार एक झटका और खाये। अब चौथा उम्मीदवार रमुआ भी था। नामांकन पत्र पर पंडित जी उसके प्रस्तावक थे, ठाकुर राजा और लाला जी उसके समर्थक थे, सारी सफाई कर्मियों की बिरादरी उसके पीछे थी, पंडिज्जी, ठाकुर राजा और लाला जी का वित्त, शराब, आटा, मुफ्त खाना, नौटंकी और उनकी बिरादरी के समर्थन भी उनके साथ था।
नतीजा बिल्कुल वैसा ही आया जैसा पंडित जी ने आंका था। दलित और पिछड़े वोट आपस में कट और बंट गए। रमुआ की बिरादरी के वोट के साथ बामन, ठाकुर और वैश्य वोट आ जुड़े। मुसलमान क्या करते भई, वो एक द्वार से दूसरे द्वार दौड़ते ही रह गए!
अब पंडिज्जी के अहाते के बाहर ही प्रधान का बोर्ड लगा है। बस नाम रमुआ का है। सारे कागज, विकास, ठेके और काम काज पंडिज्जी ही देखते हैं। रमुआ बस अंगूठा टेक रबर स्टाम्प लगा फिर से झाड़ू लगाने में व्यस्त हो जाता है। हाँ अब उसे खैनी रगड़ होंठ के नीचे दबाने और काम से रुक जाने पर गाली नहीं दी जाती। गांव के लोग उसे प्रधान कहने लगे हैं। और हाँ उसे रोज़ देसी शराब का एक पौव्वा बख्शीश में मिल ही जाता है। रमुआ अपने इस ऐश इशरत भरी ज़िन्दगी से खुश है।
(सुनी सुनाई कहानी जो गांव के एक बुज़ुर्ग ने मुझे सुनाई!)
आँखन देखी!
ऐसा कुछ अभी हाल फ़िलहाल में हुआ, उन्हें अपना पद मुबारक ...
नहीं सिर्फ एक काम तो करदो... भारत को #स्वच्छ_भारत बना दो तो हमारा 0.5% जो टेक्स लगता है वो तो बच जाएगा।
बस सिर्फ इतना काम करदो...
बाकी तुम लोग सीर्फ भारत मे ही क्यों आते हो ?
दुनिया के बहोत से देश है कभी किसी ओर देश की शेर करो... या फिर भारत के बहार आपको कोई बुलाता नहीं ? लगता है सभी देवी-देवताओं के लिए सिर्फ भारत ही पूरी सृष्टि है।
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