क्या है राम राम ?
कुछ नहीं है केवल मूल निवासियों को गुलाम बनाये रखने के लिए मनुवादियों का एक हथियार है।
जब से होश संभाला है तभी से राम राम सुनते आ रहे हैं आखिर क्या है ये राम राम,इसके बारे में गहराई से जानना जरूरी है।
एक कहावत है कि एक झूठ को सच साबित करने के लिए 100 अन्य झूठ बोलनी पड़ती हैं और यही इस रामराम के पीछे छुपा हुआ राज है।
भारत में बाबा साहब द्वारा लिखित संविधान लागू होने से पहले शूद्रों के लिए अपने नाम के आगे या पीछे भी राम लगाना एक प्रकार से जरूरी समझा जाता था और जहां शिक्षा का अभाव है वहाँ आज भी यह परम्परा लगातार जारी है।
जब बात नाम पर चल रही है तो कुछ नाम उदाहरण के लिए लिखना भी जरूरी है,
सबसे पहले ध्यान देने वाली बात यह है कि मनुवादियों का कहना था कि शूद्रों के लिए घृणित नाम रखना जरूरी है जिससें उनकी पहचान हो सके, पहचान इसलिये की अनजान जगह पर भी उनके साथ भेदभाव करने में आसानी रहे।
हमारे पूर्वजों को नाम के लिए तीन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता था।
पहला यह कि नाम ब्राह्मण से ही निकलवाना होगा।
दूसरा यह कि नाम निकलवाने के लिए ब्राह्मण को पैसा देना जरूरी होता था।
तीसरा यह कि ब्राह्मण द्वारा निकाले गए नाम को स्वीकार करना पड़ता था।
ब्राह्मण की सोच होती थी कि शुद्र की औकात हमारे सामने घास फूस कचरा जैसी है इसी लिये नाम भी उसी सोच के अनुसार निकालता था,जैसे :-
घास से घासी राम
फूस से फूसा राम
कचरा से कचरा राम
तीनों को इक्कठा करने से कुरड़ाराम।
शुद्र की हैसियत बाल के बराबर
बाल से बाला राम या बलु राम या बालू राम
यदि बाल आपस में उलझ जायें तो झुनथरा राम या झुन्था राम।
बालों में ढेरा पड़ने पर ढेरू राम।
इसी प्रकार डेडा राम, धूड़ा राम, फूडा राम, सीटू राम, घसीटू राम, कालू राम, ध्यालू राम, ख्यालू राम।
माडू राम, बोदू राम इत्यादि।
राम था या नहीं कोई सबूत नहीं हैं और यदि था तो राम से मूल निवासियों के साथ कोई नाता नहीं था और नाता भी था तो वह शत्रु का था क्योंकि उसने हमारे महापुरुष शंबूक की हत्या की थी।
हमारे लोगों को सदा के लिए राम के नाम पर गुलाम बनाये रखने की रणनीति के तहत मूल निवासियों के नाम के साथ इसे जोड़ा गया लेकिन ब्राह्मण, राजपूत और बनिया के नाम के साथ बिलकुल भी नहीं जोड़ा गया ।
नाम के साथ तो केवल एक बार राम जोड़ा गया लेकिन बाद में आपसी अभिवादन के रूप में हमारे मुहं से 2 बार राम का नाम बुलवाया गया और तभी से राम राम बोलने लगे।
रिश्तेदारी में जाने पर 4 बार राम का नाम बुलवाया गया जिसमें 2 बार मेहमान और 2 बार मेजबान को बोलना पड़ता था।
एक कहावत है कि चोर की दाढ़ी में तिनका
यदि राम का नाम झूठ नहीं है तो शवयात्रा के समय यह क्यों बुलवाया जाता है कि राम नाम सत्य है, और राम का नाम इतना ही सत्य है और अच्छा है तो फिर शादी में फेरों के वक्त क्यों नहीं बोला जाता है कि राम नाम सत्य है।
वास्तविकता को जानने के लिए बाबा साहब अंबेडकर द्वारा लिखित साहित्य को पढ़ो और इस नाम के षड्यंत्र को समझने का प्रयास करो।
आज से ही इस गुलामी के प्रतीक को अपने जीवन भर के लिए बाहर निकालने का दृढ संकल्प करो।
जय भीम जय भारत
जय मूल निवासी नमो बुद्धाय।
कुछ नहीं है केवल मूल निवासियों को गुलाम बनाये रखने के लिए मनुवादियों का एक हथियार है।
जब से होश संभाला है तभी से राम राम सुनते आ रहे हैं आखिर क्या है ये राम राम,इसके बारे में गहराई से जानना जरूरी है।
एक कहावत है कि एक झूठ को सच साबित करने के लिए 100 अन्य झूठ बोलनी पड़ती हैं और यही इस रामराम के पीछे छुपा हुआ राज है।
भारत में बाबा साहब द्वारा लिखित संविधान लागू होने से पहले शूद्रों के लिए अपने नाम के आगे या पीछे भी राम लगाना एक प्रकार से जरूरी समझा जाता था और जहां शिक्षा का अभाव है वहाँ आज भी यह परम्परा लगातार जारी है।
जब बात नाम पर चल रही है तो कुछ नाम उदाहरण के लिए लिखना भी जरूरी है,
सबसे पहले ध्यान देने वाली बात यह है कि मनुवादियों का कहना था कि शूद्रों के लिए घृणित नाम रखना जरूरी है जिससें उनकी पहचान हो सके, पहचान इसलिये की अनजान जगह पर भी उनके साथ भेदभाव करने में आसानी रहे।
हमारे पूर्वजों को नाम के लिए तीन बातों का ध्यान रखना जरूरी होता था।
पहला यह कि नाम ब्राह्मण से ही निकलवाना होगा।
दूसरा यह कि नाम निकलवाने के लिए ब्राह्मण को पैसा देना जरूरी होता था।
तीसरा यह कि ब्राह्मण द्वारा निकाले गए नाम को स्वीकार करना पड़ता था।
ब्राह्मण की सोच होती थी कि शुद्र की औकात हमारे सामने घास फूस कचरा जैसी है इसी लिये नाम भी उसी सोच के अनुसार निकालता था,जैसे :-
घास से घासी राम
फूस से फूसा राम
कचरा से कचरा राम
तीनों को इक्कठा करने से कुरड़ाराम।
शुद्र की हैसियत बाल के बराबर
बाल से बाला राम या बलु राम या बालू राम
यदि बाल आपस में उलझ जायें तो झुनथरा राम या झुन्था राम।
बालों में ढेरा पड़ने पर ढेरू राम।
इसी प्रकार डेडा राम, धूड़ा राम, फूडा राम, सीटू राम, घसीटू राम, कालू राम, ध्यालू राम, ख्यालू राम।
माडू राम, बोदू राम इत्यादि।
राम था या नहीं कोई सबूत नहीं हैं और यदि था तो राम से मूल निवासियों के साथ कोई नाता नहीं था और नाता भी था तो वह शत्रु का था क्योंकि उसने हमारे महापुरुष शंबूक की हत्या की थी।
हमारे लोगों को सदा के लिए राम के नाम पर गुलाम बनाये रखने की रणनीति के तहत मूल निवासियों के नाम के साथ इसे जोड़ा गया लेकिन ब्राह्मण, राजपूत और बनिया के नाम के साथ बिलकुल भी नहीं जोड़ा गया ।
नाम के साथ तो केवल एक बार राम जोड़ा गया लेकिन बाद में आपसी अभिवादन के रूप में हमारे मुहं से 2 बार राम का नाम बुलवाया गया और तभी से राम राम बोलने लगे।
रिश्तेदारी में जाने पर 4 बार राम का नाम बुलवाया गया जिसमें 2 बार मेहमान और 2 बार मेजबान को बोलना पड़ता था।
एक कहावत है कि चोर की दाढ़ी में तिनका
यदि राम का नाम झूठ नहीं है तो शवयात्रा के समय यह क्यों बुलवाया जाता है कि राम नाम सत्य है, और राम का नाम इतना ही सत्य है और अच्छा है तो फिर शादी में फेरों के वक्त क्यों नहीं बोला जाता है कि राम नाम सत्य है।
वास्तविकता को जानने के लिए बाबा साहब अंबेडकर द्वारा लिखित साहित्य को पढ़ो और इस नाम के षड्यंत्र को समझने का प्रयास करो।
आज से ही इस गुलामी के प्रतीक को अपने जीवन भर के लिए बाहर निकालने का दृढ संकल्प करो।
जय भीम जय भारत
जय मूल निवासी नमो बुद्धाय।
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