Sunday 26 November 2017

पद्मावती और फूलन देवी

*पद्मावती और फूलन देवी*

जो भारत के सभ्य समाज के लोग रानी पद्मावती के अपमान पर भंसाली को पीट रहे थे, कभी वही समाज थियेटर मे फूलन देवी को नग्न देखकर ताली बजा रहा था।
जी हाँ जब शेखर कपूर ने फूलन देवी पर बैंडिट क्वीन (Bandit queen) फिल्म बनायी थी तो उसमे फूलन को कई बार नग्न दिखाया गया था। तब कोई सेना नही आई थी इसका बिरोध करने!!! क्या फूलन देवी महिला नही थी या किसी की बेटी नही थी।
पद्मावती ने अगर अपनी लाज बचाने के लिए जौहर (जलती आग मे कूद जाना) का साहस दिखाया था तो फूलन ने चण्डी का रूप धारण करके अपने आबरू के लुटेरो को मौत के घाट उतारा था। तब तो इन्ही के जाति मे से एक ने जाकर उसी वीरांगना की हत्या कर दी थी।
क्या सवर्ण समाज की नारियो का बस सम्मान ही सम्मान है। अगर अलाउद्दीन खिलजी नीच था तो वे लोग क्या थे जिन्होने फूलन देवी को बेआबरू किया था।
भारत का सवर्ण समाज अपने आपको कितना सभ्य संस्कारी एवं नारी का सम्मान करने वाला होने का दिखावा करता है। पर अंदर से कितना खोखला है। इनके लिए मान-मर्यादा इतिहास मे दर्ज हर वर्ग की महिला के लिए नही बल्कि एक वर्ग विशेष के महिला के लिए है

*राजपूतों को लेकर दिलीप मंडल की खतरनाक पोस्ट*

*क्ष* से *क्षत्रिय*.
यानी ब्राह्मण से नीचे की कटेगरी का वर्ण. ब्रह्मा के कंधे से उत्पत्ति.
जाति का कर्म- शस्त्र संचालन, युद्ध करना, और रक्षा करना.
हे क्षत्रियों,
इस देश में सब तरह के हमलावर आए. शक आए, हूण आए, मंगोल आए, गुलाम वंश वाले आए, तुर्क आए, अफगान आए, मुगल आए, फ्रांसिसी आए, पुर्तगीज आए, अंग्रेज आए.
तुम किससे लड़े भाई?
देश की रक्षा के लिए तुमने किया क्या? तुम्हारी तलवारें कर क्या रही थीं?
हथियार तो शास्त्रसम्मत तरीके से सिर्फ क्षत्रियों के पास थे. वे अपने काम में निकम्मे साबित हुए. हर हमलावर भारत में जीता.
क्षत्रियों ने किसी हमलावर को ज्यादा परेशान नहीं किया.
एक बात मान लो.
तुम्हारे पास एक ही काम था. ब्राह्मणों की लठैती का. उनके लिए तुम नीचे की जातियों को कंट्रोल करते थे. तुम्हारे हथियार इसी काम आए. तुम्हारी तलवारें कमजोरों के खिलाफ चलीं.
तुम्हारे लिए शौर्य का यही मतलब था.
देश की रक्षा जैसा कोई गौरव तुम्हारे पास कभी नहीं था. क्योंकि वह काम तुमने कभी किया ही नहीं.
ब्राह्मण ज्ञान के क्षेत्र में निकम्मे साबित हुए क्योकि एक बड़ी आबादी को हमेशा षड़यंत्रकारी ढंग से दूर रखा और इनका खुद का काम रहा काल्पनिक कथाओ और गप्पबाजी करके अनपढ़ो को आस्था और डर दिखाकर उल्लू बनाये रखना ताकि इनकी धर्म की दूकान चलती रहे और इनकी परजीवी पीढ़ियो का पेट यूं ही पलता रहे
और क्षत्रिय रक्षा के क्षेत्र में हजारों सालो की गुलामी का रिकॉर्ड बनाते रहे...
मैं ब्राह्मणों को ज्यादा दोषी इसलिए मानता हूं क्योंकि जाति बनाई ब्राह्मणों ने है.
भारत को ब्राह्मणों ने बीमार बनाया है....और बीमारी फैलाने का सारा श्रेय इन्ही आन बान शान वालो को समर्पित
जिसके कारण अब भारत में सब बीमार हैं...हर जाति को अपने नीचे जातियां दिखती हैं, वे उस पर जुल्म करते हैं. नीचे की जातियां भी बराबर बीमार हैं...
***

राजपूतों की बहादुरी का कोई जवाब नहीं था साहेब. अंग्रेजों ने देखते ही पहचान लिया था. तो साहेब हुआ यह कि जब अंग्रेजों को लगा कि इतने बड़े भारत पर सिर्फ गोरे सिपाहियों के बूते राज करना नहीं हो पाएगा. तो उन्होंने देश पर नजर दौड़ाई. सबसे बहादुर और सबसे वफादार और अंग्रेजों की सेवा करने के लिए उपलब्ध बिरादरियों की तलाश शुरू हुई.
जाहिर है राजपूतों पर अंग्रेज साहेबों की नजर सबसे पहले इनायत हुई.
मतलब आप समझ रहे हैं कि कितने बहादुर होंगे राजपूत.
1778 में राजपूतों की पहली बटालियन अंग्रजों की फौज में शामिल हो गई और देश भर में अंग्रेजों का राज स्थापित करने में लग गई. उस समय इन टुकड़ियों में हिंदू जातियों में से सिर्फ राजपूतों को रखा जाता था.
1778 तक मुख्य रूप से सिर्फ बंगाल ही अंग्रेजों के कब्जे में था. बाकी देश को कब्जे में लेने के लिए अंग्रेज फौज सजा रहे थे और राजपूत इस फौज में शामिल होने वालों में सबसे आगे थे.
राजपूतों ने अपने खूब जलवे दिखाए. सबसे पहले उन्होंने टीपू सुल्तान के बाप हैदर अली के खिलाफ तमिलनाडु के कड्डलोर में लड़ाई लड़ी. इन बहादुरों ने हैजरी अली से कड्डलोर छीनकर उसे अंग्रेजों के हवाले कर दिया.
1803 में उन्होंने दिल्ली पर धावा बोला और मराठों को दिल्ली से भगाकर दिल्ली अंग्रेजों के हवाले कर दी.
फिर 1805 में वे जाट राजा के होश ठिकाने लगाने भरतपुर पहुंचे और अंग्रेजों की ओर से जाटों को सबक सिखाया.
फिर वे एंग्लो सिख युद्धों में सिखों के खिलाफ लड़े और आखिरकार सिखों को भी हराया.

1857 की लड़ाई में सिख टुकड़ियों ने बागियों के होश ठिकाने लगा दिए. दिल्ली और अवध की लड़ाई इन्होंने ही अंग्रेजों के लिए जीतीं.
उसके बाद भी…मतलब क्या बताएं किस्से इनकी बहादुरी के. पूरा गौरवशाली अध्याय है.
अंग्रेजों ने भी इनकी झोली खाली नहीं रहने दी.
बहादुरों का अंग्रेज बहुत सम्मान करते थे. दिल्ली में तमाम राजपूत राजाओं के शानदार महल यूं ही नहीं बने.
**
दिल्ली में इंडिया गेट के आसपास आपने ढेर सारे भवन और हाउस देखे होंगे. उनमें सबसे ज्यादा हाउस आन-बान और शान वालों के हैं. जैसे धौलपुर हाउस, बीकानेर हाउस, जयपुर हाउस, कोटा हाउस, जोधपुर हाउस, अलवर हाउस, बाड़मेर हाउस, जैसलमेर हाउस वगैरह, वगैरह. मतलब कि जितने राजा उतने हाउस..
अंग्रेजों ने अपनी राजधानी में ये हाउस बनवाए थे. जो भी अंग्रेजों की गुलामी करने को तैयार हुआ उसके हाउस हैं. जो लड़े उनके हाउस नहीं हैं.
टीपू के वंशजों का हाउस नहीं है. झांसी हाउस भी नहीं है. अवध हाउस नहीं है.
जिनके हाउस बने, उनके लिए जरूरी था कि वे दिल्ली बुलाए जाने पर आएं. वहां ठहरें और परिवार को वहां रखें. बाकी कुछ बताने की जरूरत नहीं है.
तो इतनी ज्यादा आन-बान और शान थी ठाकुर साहबों की...
*d c mandal

मुग़ल-राजपूत वैवाहिक संबंधों पर एक नजर।                - 
जनवरी 1562- 
राजा भारमल की बेटी से अकबर की शादी (कछवाहा-अंबेर)
- 15 नवंबर 1570- 
राय कल्याण सिंह की भतीजी से अकबर की शादी (राठौर-बीकानेर)
- 1570- 
मालदेव की बेटी रुक्मावती का अकबर से विवाह (राठौर-जोधपुर)

- 1573 - 
नगरकोट के राजा जयचंद की बेटी से अकबर की शादी (नगरकोट)
- मार्च 1577- 
डूंगरपुर के रावल की बेटी से अकबर का विवाह (गहलोत-डूंगरपुर)
- 1581- 
केशवदास की बेटी की अकबर से शादी (राठौर-मोरता)

- 16 फरवरी, 1584- 
भगवंत दास की बेटी से राजकुमार सलीम (जहांगीर) की शादी (कछवाहा-आंबेर)
- 1587- 
जोधपुर के मोटा राजा की बेटी से जहांगीर का विवाह (राठौर-जोधपुर)
- 2 अक्टूबर 1595- 
रायमल की बेटी से अकबर के बेटे दानियाल का विवाह (राठौर-जोधपुर)

- 28 मई 1608- 
राजा जगत सिंह की बेटी से जहांगीर की शादी (कछवाहा-आंबेर)
- 1 फरवरी, 1609- 
रामचंद्र बुंदेला की बेटी से जहांगीर का विवाह (बुंदेला, ओरछा)
- अप्रैल 1624- 
राजा गजसिंह की बहन से जहांगीर के बेटे राजकुमार परवेज की शादी (राठौर-जोधपुर)


- 1654- 
राजा अमर सिंह की बेटी से दाराशिकोह के बेटे सुलेमान की शादी (राठौर-नागौर)
- 17 नवंबर 1661-
 किशनगढ़ के राजा रूपसिंह राठौर की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. मुअज़्ज़म की शादी (राठौर-किशनगढ़)
- 5 जुलाई 1678- 
राजा जयसिंह के बेटे कीरत सिंह की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. आज़म की शादी (कछवाहा-आंबेर)
- 30 जुलाई 1681- 
अमरचंद की बेटी औरंगज़ेब के बेटे कामबख्श की शादी (शेखावत-मनोहरपुर)

कई राजपूत बच्चों ने पाई गद्दी
1587 में 
जहांगीर और मोटा राजा की बेटी जगत गोसांई की शादी हुई, जिससे 5 जनवरी 1592 
को लाहौर में शाहजहां पैदा हुआ. अकबर ने जन्म के छठे दिन खुशी में उसका नाम खुर्रम (खुशी) रखा. जहांगीर की पत्नी नूरजहां का काफ़ी ज़िक्र होता है पर शेर के हमले से उन्हें असल में उनकी राजपूत बीवी जगत गोसांईं ने ही बचाया था. तुज़ुक-ए-जहांगीरी के मुताबिक़ उन्होंने पिस्तौल भरकर शेर पर चलाई, जिसके बाद जहांगीर की जान बची. नूरजहां ने इसके बाद ख़ुद शिकार करना सीखा.

यानी शाहजहां के बेटे औरंगज़ेब की दादी एक राजपूत थी. ग़ौरतलब यह भी है कि मुग़लों और राजपूतों के बीच शादियां औरंगज़ेब के समय भी जारी रहीं. ख़ुद औरंगज़ेब की दो पत्नियां हिंदू थीं. और उनसे पैदा हुए बच्चे कई बार बाक़ायदा उत्तराधिकार की जंग में जीते.


‘मुग़लों को मुसलमान कहना ही ग़लत’
क्लीनिकल इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. स्कंद शुक्ला कहते हैं कि मुग़ल बादशाहों और राजपूत रानियों से पैदा होने वाली संतानें दरअसल आधी राजपूत होंगी. उनका कहना है कि जेनेटिक्स के मुताबिक़ संतान में आधे गुण यानी 23 क्रोमोसोम पिता से और 23 क्रोमोसोम मां से आते हैं. चूंकि मुग़लों के परिवार पितृसत्तात्मक थे इसलिए उन्हें मुग़ल माना गया मगर जैविक तौर पर वो आधे भारतीय हो चुके थे. यही नहीं, डॉ स्कंद कहते हैं कि अगर इस तरह की शादियां लगातार जारी रहती हैं तो अगली पीढ़ियां पिछले गुणों को खो देती हैं. वह कहते हैं कि मेडिकल साइंस के नज़रिए से बाद की पीढ़ियों में राजपूती गुण ज़्यादा और विदेशी मूल के गुण कम हो गए होंगे.

राजपूतों की बेटियों का असर
राजपूतों की बेटियां सिर्फ हरम तक सीमित नहीं थीं. वो बादशाहों के फैसले प्रभावित करतीं थीं. बदायूंनी लिखता है कि अकबर ने अपनी हिंदू पत्नियों के कहने पर बीफ़, लहसुन-प्याज़ खाना छोड़ दिया था. 1604 में हमीदा बानो बेग़म की मौत के बाद अकबर ने सिर मुंडवाया था, क्योंकि यह हिंदू रानी की इच्छा थी. 
1627 में शाहजहां की राठौर पत्नी जोधपुर में 8 दिन सिर्फ़ इसलिए रुकी ताकि वह अपने पति शाहजहां के लिए ज़रूरी समर्थन जुटा सके. 
1605 में जहांगीर ने अपनी हिंदू पत्नी की मौत के ग़म में 4 दिन खाना नहीं खाया. तुज़ुक-ए-जहांगीरी में इसका तफ़सील से ज़िक्र है.

मुग़ल फ़ौज में सिर्फ़ मुसलमान नहीं थे

मुग़ल ताक़त को खड़ा करने वाले विदेशी मूल के नहीं बल्कि पूरी तरह भारतीय और अपनी बहादुरी के लिए मशहूर राजपूत, जाट और पठान थे. बर्नियर बताते हैं कि मुग़ल फ़ौज में राजपूत, पठान, ईरानी, तुर्क और उज़्बेक शामिल थे और इनमें जो गोरा यानी सफ़ेद रंग का होता था तो उसे मुग़ल मान लिया जाता था. मुग़ल सेना में पैदल, घुड़सवार और तोपखाना तीनों में कुल का 80 फ़ीसदी से ज़्यादा राजपूत, जाट और पठान होते थे और बाक़ी विदेशी मूल के सैनिक.

यही नहीं सेना में मनसबदारों को पैदल और सवार जाट, राजपूत या पठान मिलते थे. मिसाल के लिए बादशाह की ओर से इक हज़ारी की पदवी का मतलब था उस मनसबदार को 1000/1000 यानी एक हज़ार पैदल जाट और एक हज़ार घुड़सवार सेना रखने का हक़ था. अतहर अली ने अलग-अलग बादशाहों के दौर में मनसबदारों की स्थिति को बखूबी इसे बयान किया है-

Mansabdaar3
मुगलों की सेना मूलत: राजपूतों, जाटों और पठानों से मिलकर बनती थी.

इसे देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि चार बड़े मुग़ल बादशाहों के वक़्त राजपूत, दूसरे हिंदुओं और भारतीय मुस्लिम मनसबदारों की साझेदारी तक़रीबन आधी थी. ध्यान रहे कि ये सिर्फ़ ओहदेदार थे. इनकी सेना मूलत: राजपूतों, जाटों और पठानों से मिलकर बनती थी. चौंकाने वाली बात यह है कि औरंगज़ेब के समय न सिर्फ़ राजपूत मनसबदार बल्कि मराठा मनसबदारों की संख्या दूसरे मुग़ल बादशाहों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा थी. काबुल, कांधार, बर्मा और तिब्बत तक साम्राज्य के विस्तार के लिए अगर मुग़लों को किसी पर सबसे ज़्यादा यक़ीन था तो वो थे- राजपूत.

Mansabdaar2
औरंगजेब की फौज में सबसे ज्यादा मनसबदार थे.

औरंगजेब ने जब शिवाजी को रोकने को भेजा राजपूत रिश्तेदार
जब शिवाजी को रोकने की औरंगज़ेब की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं तो उस वक़्त के सबसे बड़े मनसबदार और अपने समधी मिर्ज़ा राजा जय सिंह को उसने दक्कन भेजा. जय सिंह ने एक के बाद एक क़िले जीतकर शिवाजी को पीछे हटने को मजबूर किया. जदुनाथ सरकार ‘शिवाजी एंड हिज़ टाइम्स’ में लिखते हैं कि कैसे जयसिंह ने 11 जून 1665 को पालकी में इंतज़ार कर रहे शिवाजी से सिर्फ इसी शर्त पर मिलना स्वीकार किया कि वह शिवाजी की कोई शर्त नहीं मानेंगे और उन्हें अपने सारे क़िले बिना शर्त मुग़लों को सौंपने होंगे. शिवाजी ने शर्त मानी और औरंगज़ेब के दरबार में आने को मजबूर हुए.

जय सिंह का ओहदा इतना बड़ा था कि उनके कहने पर औरंगज़ेब ने दाराशिकोह का पक्ष लेने वाले राजा जसवंत सिंह तक को माफ़ कर दिया था और उसकी मनसबदारी भी बरकरार रखी थी.

राजकुमार शाह शुजा जब आगरा के तख़्त के लिए बढ़ा, तो उसे रोकने के लिए शाहजहां ने राजकुमार सुलेमान शिकोह के साथ राजा जय सिंह और अनिरुद्ध गौड़ को भेजा. बड़ी ताताद में राजपूतों ने तख़्त की लड़ाई में औरंगज़ेब का साथ दिया. इनमें शुभ करन बुंदेला, भागवत सिंह हाड़ा, मनोहर दास हाड़ा, राजा सारंगम और रघुनाथ राठौर प्रमुख थे. ज़्यादातर राजपूत राजाओं ने तख्त की लड़ाई में शाहजहां और उसके बड़े बेटे दाराशिकोह का विरोध किया था.

मुग़ल शासन का हिस्सा रहे राजपूत राजाओं ने कई शहर बसाए और मंदिर बनवाए. मसलन, राजा मानसिंह ने बंगाल में राजमहल नगर, राव करन सिंह ने दक्कन में करनपुरा और रामदास कछवाहा और राम मनोहर ने पंजाब में बाग़ बनवाए. मान सिंह ने उड़ीसा में और बीर सिंह बुंदेला ने मथुरा में मंदिर बनवाया. राव करन सिंह ने नासिक के मंदिरों को भारी दान दिया. और ये सभी मुग़ल प्रशासन का हिस्सा थे.

ऐसे में अगर मुग़ल का मतलब सिर्फ़ विदेशी आक्रमणकारी मुसलमान है तो यह हास्यास्पद तो है ही, सही भी नहीं लगता. भारत में आक्रमणकारी के तौर पर वो आए तो थे मगर वो अगर टिके तो शायद इसलिए क्योंकि उन्होंने बग़ैर किसी हिचक के उस वक़्त यहां की ताक़तों से हाथ मिलाया, उनसे गहरे पारिवारिक रिश्ते निभाए. हालांकि इसके चलते वो अपनी पहचान खोकर यहीं घुलमिल गए.

14 comments:

  1. कहाँ से आई थीं पद्मावती?
    http://www.bbc.com/hindi/india-42080687

    ReplyDelete
  2. राजपूतों का खून अगर पानी नहीं हो गया है और उनमें एक ग्राम भी आन-बान और शान बाकी है तो 1970 में बनी इस फिल्म पर बैन लगवाकर दिखाएं. परशुराम ने बहुत गलत किया था. धरती पर एक भी क्षत्रिय को जिंदा नहीं छोड़ा. ऐसा 18 बार किया. कितनी गलत बात है.


    राजपूतों की आन-बान और शान के लिए मैंने 21 बार में से तीन कम कर दिया है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. https://www.gofilms4u.net/tag/bhagwan-parshuram-1970-hindi-movie-online

      Delete
    2. 21 baar chutiye haihaya kshatriya ka sankhaar kiya hai sabhi kshatriya ka nahi

      Delete
    3. मूर्ख 18 बार ख़तम किया,, जाहिल जो चीज एक बार ख़तम हो जाए वो 18 बार कैसे ख़तम होगी।
      तुम चमार के चमार ही रहे ना।

      Delete
  3. राजपूतों को अरबों ने हराया,

    तुर्कों ने हराया,

    गुलाम वंश ने हराया,

    खिलजियों और तुगलकों ने हराया,

    लोदियों और मुगलों ने हराया,

    अफगानों ने हराया,

    अंग्रेजों ने हराया,पुर्तगालियों ने हराया यहाँ तक कि मराठों ने भी हराया।

    *इनकी सारी वीरता केवल शूद्रों पर अत्याचार करने में ही थी।*

    #Padmavati ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हारते वहीं हैं जो लड़ते हैं तुम्हारे पूर्वज तो औरतों कि सलवरों में छिपे रहे।

      जो खोटे सिक्के कभी चले ही नहीं बाजारों में वो गलतियां ढूंढ़ रहे हैं आज राजपूतों के किरदारों में

      Delete
  4. 16000 हजार औरते होने के बाद भी जो जल कर मर जाए वो घण्टा बहादुर हुई,
    अगर हथियार उठाती तो, हर रजपूतनी एक -एक को मारती
    तो 16000 कटुये मरते।

    बहादुर तो फूलन देवी थी ,,,,
    जिन 22

    राजपूतो ने उसके साथ बलात्कार किया उस सभी राजपूतो को लाइन मे खड़ा कर गोलियो से भून कर अपना बदला पूरा किया ।

    राजपूतो का इतिहास सिर्फ मुगलो और अंग्रेज़ो से समझोतो का इतिहास है ,,, राजपूत अगर सही मे बहादुर और संगठित होते तो भारत कभी गुलाम ही नही होता।

    ReplyDelete
    Replies
    1. तुम लोग तो आज तक क्या किया पूरे इतिहास में, हम जले हम मरे तब तुम बचे और आबादी बढाई. डरपोक

      Delete
    2. नीच एक अंगुली जला अपनी फिर कॉमेंट करना।

      Delete
  5. राजपूत मां के बेटे शाहजहां को सिर्फ मुस्लिम कैसे मान सकते हैं http://www.newsrepublic.net/detail/061415504110100001_in?pid=18&referrer=200111 via @News Republic

    ReplyDelete
  6. राजपूतों का खून अगर पानी नहीं हो गया है और उनमें एक ग्राम भी आन-बान और शान बाकी है तो 1970 में बनी इस फिल्म पर बैन लगवाकर दिखाएं. परशुराम ने बहुत गलत किया था. धरती पर एक भी क्षत्रिय को जिंदा नहीं छोड़ा. ऐसा 18 बार किया. कितनी गलत बात है.

    राजपूतों की आन-बान और शान के लिए मैंने 21 बार में से तीन कम कर दिया है.
    https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1565363966890922&id=100002520002974

    ReplyDelete
    Replies
    1. मूर्ख अत्याचारी राजाओं को मारा, कल ये मत कहना कि भारत को सोने की चिड़िया कहाँ जाता था, तो यहाँ सोने की चिड़िया उडती थी. क्योंकि तेरे पास शब्द का अर्थ करने और समझने का ज्ञान नहीं है. तथागत बुद्ध को पीपल वृक्ष के नीचे 6 साल की कठोर तपस्या बिना खाये पिये बिना ज्ञान प्राप्त हुआ तो अपने लडके को स्कूल की जगह पीपल वृक्ष के नीचे भेज देना और खाने पीने को भी न देना मूर्ख

      Delete
  7. ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, और समस्त क्रांतिकारी राजपूत जिन्हें एक पेड़ से फांसी दी गई थी वो कोन थे। 500 से ज्यादा रियासतें जिन्होंने देश में मिलाई वो को थे,,
    राजपूत योद्धा जिसने अंग्रेज का सर काट कर अपने दरबार पर एक हफ़्ता लटकाए रखा वो को था।

    राजपूतों से जलने वालो हजार लानत तुम्हारी जात पर।

    ReplyDelete