Tuesday 25 July 2017

कण-कण में बसा ब्राह्मणवाद

 कण-कण में बसा ब्राह्मणवाद 🌹

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चारों तरफ ब्राह्मणवाद शब्द सुनाई दे रहा है, क्या है ब्राह्मणवाद ? यह बात सबको समझ लेनी चाहिए कि ब्राह्मणवाद के विरोध का मतलब ब्राह्मण का विरोध नहीं है। ब्राह्मण वाद का विरोध मतलब उस व्यवस्था का विरोध है जो असमानता व भेदभाव पर है।
     यह बात सही है कि ब्राह्मणवाद का जन्म ब्राह्मण से हुआ है लेकिन अब ब्राह्मणवाद हर जाति में अंदर तक बैठ चुका है। जब ध्यान से देखेंगे तो ब्राह्मणवाद का सीधा संबंध श्रेष्ठता से है। खुद को श्रेष्ठ समझना और गर्व करना ब्राह्मणवाद है। खुद पर गर्व करने में कोई बुराई नहीं बशर्ते उसमें आपका अपना कोई योगदान हो, नाकि जन्म के आधार पर श्रेष्ठ होना। जो श्रेष्ठता आप बिना किसी योगदान के पा लेना चाहते हैं, जन्म, क्षेत्र, रंग या लिंग के आधार पर, उस हर भाव की मान्यता विकृत है, अमानवीय है और शुद्ध ब्राह्मणवाद भी। हर जाति क्रमानुसार खुद को ऊंचा और दूसरी जाति को नीचा मानती है, हम सब इस व्यवस्था का हिस्सा हैं। हजारों सालों से ये चला आ रहा है जो हमारे अंदर तक बैठ चुका है। सब इस बात में खुश हैं कि मैं नीचा हुआ तो क्या मेरे से भी नीच कोई और जाति है। हो सकता है आप लोगों का मत अलग हो लेकिन मैं अपनी बात लिख रही हूं। जिनको नीचा बनाया गया या समझ लीजिए कहा गया वो अब खुद की जाति पर गर्व करने लगे हैं। जाति कोई शर्म की चीज नहीं है क्योंकि जाति कोई खुद नहीं चुनता लेकिन जाति गर्व की चीज भी नहीं हो सकती। अगर आप जाति पर गर्व कर रहे हैं तो जाने-अनजाने आप ब्राह्मणवाद को ही मजबूत कर रहे हैं। अगर आपको ब्रहमणवाद से लड़ना है तो जातियों को समझकर एकजुट होकर लड़ना पड़ेगा। जाति पर गर्व करने की बीमारी आजकल चमारों में बहुत तेजी से बढ़ रही है सबको चमार होने पर गर्व हो रहा है। मुझे समझ नहीं आ रहा जब आप चमार होने पर गर्व कर रहे हैं तो आप ब्राह्मणवाद के विरोधी और अम्बेडकरवादी कैसे हुए। बाबा साहेब ने तो जातिविहीन समाज का सपना देखा था लेकिन आप तो जाति पर ही गर्व करने लगे और जातियों को मजबूत करने लगे। इसको खत्म करने के लिए संवैधानिक पहचान को अपनाकर एकजुट होना चाहिए।

     अब शब्दों को ही ले लीजिए, बहुत सारे शब्द ऐसे हैं जो हम नहीं चाहते हुए भी इस्तेमाल करते हैं। हम ध्यान नहीं देते कि जिस ब्राह्मणवाद का हम विरोध कर रहे हैं हम उसी को मजबूत किए जा रहे हैं। जैसे कुछ शब्द हैं शुभ नाम, अपर कास्ट, लॉवर कास्ट, ऊंची जाति, नीची जाति, दबंग, आशीर्वाद, पंडित और सबसे खतरनाक 'परम पूज्य' जो बाबा साहेब और महात्मा, जो ज्योतिबा फुले और बुद्ध के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। ऐसे अनेक शब्द हैं जो हम दिन- रात बिना सोचे समझे बोलते हैं।
     आपने सुना होगा लोग बोलते हैं आपका शुभ नाम क्या है ? ये सवाल कितनी ही बार आपने सुना होगा और हो सकता है किसी ना किसी से आपने पूछा भी होगा। लेकिन आपने कभी सोचा नहीं होगा कि नाम कैसे शुभ या अशुभ हो सकता है, नाम तो नाम होता है। क्या सही में किसी का नाम अशुभ हो सकता है ? हमें इन बातों को सोचना चाहिए गौर करना चाहिए।
     जाति के सवाल पर बड़े-२ संवेदनशील लोगों को अपर कास्ट, लॉअर कास्ट बोलते देखा और सुना है। जब आप अपर कास्ट बोलते हैं यानि कि ऊंची जाति इसका मतलब कि आप किसी को नीची जाति समझ रहे हैं और ऊंच- नीच में भरोसा कर रहें हैं। इस बात को समझना बहुत जरूरी है कि नीची जाति कोई नहीं है नीची जाति बनाई गई है और बार-बार बोलकर, प्रचार करके उसको स्थापित कर दिया गया है कि कोई जाति नीची है। इस तरह के प्रचार के कारण ही एससी की जातियों ने खुद को नीचा समझना शुरू कर दिया और भगवान की इच्छा और किस्मत से जोड़ दिया। जिसका नतीजा है कि बहुत सारे लोग जातिसूचक शब्दों, भेदभाव और छुआछूत का विरोध नहीं कर पाते। लेकिन ये शब्द हमारे अंदर तक समाए हुए हैं कि हम बोलते भी जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता।

     अब इसे भी देखिए 'दबंग', खूब सुना होगा 'दबंग' शब्द आपने। ये शब्द ज्यादातर तभी बोला जाता है जब कोई जाति की बीमारी से ग्रसित आदमी दूसरे को नीच और कमजोर समझकर उसको पीटता है या उसका घर जला देता है। लेकिन उस आदमी को टीवी और अखबार दबंग कहता है। पिटने वाले की जाति बताई जाती है लेकिन पीटने वाले की जाति छिपा ली जाती है उसे दबंग कहकर महिमामंडित किया जाता है।
      अब आते हैं 'आशीर्वाद' पर। अंबेडकर वाद का दम्भ भरने वाले लोगों को भी 'आशीर्वाद' मांगते और देते देखा है मैंने। क्या सही में आशीर्वाद जैसी कोई चीज होती है ? क्या जो आशीर्वाद दिया या लिया जाता है वो पूरा होता है ? अगर ऐसा होता तो फिर सबकी सब ईच्छाएं पूरी हो जाती। कुछ अम्बेडकरवादी कहते मिल जाएंगे कि बाबा साहेब और बुद्ध के आशीर्वाद हमारे साथ है। अब उनको क्या कहोगे आप। वो लोग उस बात को भी जस्टिफाई करने में लग जाएंगे। खैर छोड़िए मैं उनको दोष नहीं दे रही क्योंकि ये उनकी गलती नहीं है हजारों सालों की व्यवस्था है।
      अब आते हैं पंडित पर, पंडित कोई जाति नहीं है उपाधि है। पंडित का भाषाई मतलब होता है ज्ञानी, पढ़ा- लिखा। लेकिन ब्राह्मण जाति के लिए लोग पंडित शब्द बोलते हैं, चाहे वो अनपढ़ ही क्यों ना हो। ऐसा इसलिए क्योंकि ब्राह्मण स्वघोषित पंडित है, और इतना उसने इसका प्रचार और प्रसार किया है कि वो हमें एक दम सामान्य लगता है। इतना सामान्य कि अगर हम किसी पढ़े- लिखे आदमी को पंडित कहें तो लोग उसको जाति से जोड़कर देखते हैं। इसलिए शब्दों की मान्यता ऐसी बना दी गई है कि हम उनका मतलब जानते हुए भी अनदेखा कर देते हैं और उस व्यवस्था को मजबूत बनाते हैं।

      सबसे खतरनाक वाला शब्द है जो आज के दौर में बाबा साहेब के लिए बोला जा रहा है वो है 'परम पूज्य बाबा साहेब अम्बेडकर'। मुझे नहीं पता मैं सही हूं या गलत कुछ लोगों को तो ये भी लगता है कि मुझे क्या उनसे ज्यादा पता है। लेकिन ये बात किसको कितना ज्ञान है इस बात पर निर्भर नहीं करती है। मुझे जहां तक पता है कि पूज्य का मतलब है जो पूजनीय है या जिसकी पूजा की जानी चाहिए। किसी और का मुझे नहीं पता लेकिन मुझे ये शब्द बहुत ही खतरनाक लगता है खासतौर से बाबा साहेब के संदर्भ में। क्योंकि बाबा साहेब खुद पूजा और कर्मकांड के विरोधी थे और आप उनको ही पूजने की बात करते हो। कमाल करते हो साहब, पहले ही आरएसएस और सवर्ण चाहते हैं कि आप बाबा साहेब को पढ़ना छोड़कर पूजने लग जाएं और आप तो शुरू ही हो गए। कहीं बाबा साहेब की फोटो पर अगरबत्ती लगा रहे हो तो कहीं उनको दूध से नहला में लगे हो। सवर्ण तो चाहते हैं कि आप उन्हें भगवान बना दो और पूजा करो उनका काम आप आसान कर रहे हो जो बाबा साहेब और उनके संघर्ष के साथ बहुत बड़ा धोखा है।
     महात्मा का मतलब महान आत्मा। कहा जाता है कि हर शरीर में आत्मा होती है जो अमर है। जब आदमी मर जाता है तो आत्मा शरीर से बाहर निकलकर दुसरे शरीर में चली जाती है। आत्मा को लेकर बहुत तरह की बातें कही जाती हैं। महात्मा फुले, महात्मा बुद्ध सोचने वाली बात है कि जो आदमी आत्मा- परमात्मा में भरोसा ही नहीं करते थे जो इस पूरी बहस को ही नकार देते हैं और उस पर बात करना भी सही नहीं समझते उनको ही आत्मा से जोड़ दिया गया है। जिनकी पूरी लड़ाई ब्राह्मणवाद के खिलाफ थी उनको भी उसी का हिस्सा बना दिया है जो बहुत ही ज्यादा खतरनाक है।

       ऐसे बहुत सारे शब्द हैं जिनपर हमें गौर करने की जरूरत है। जैसे 'शहीद', हमारे देश में 'शहीद' होना गर्व की निशानी समझी जाती है। और 'शहीद' शब्द का महिमा-मंडन भी बहुत किया जाता है। कुछ साल पहले मैं भी ऐसा ही सोचती थी और खुश होती थी लेकिन मैंने धीरे-धीरे इसको समझा। जब कोई सेना में जाता है तो वो मरने के लिए नहीं जाता उसका परिवार होता है, बच्चे होते हैं। अपना घर चलाने के लिए वो सेना में जाता है। देश में अगर कोई भी आदमी मरता है तो उसका जिम्मेदार कोई ना कोई होता है। मौत की जिम्मेदारी लेने से बचने के लिए ही उसका महिमा-मंडन किया जाता है ताकि सवाल ना उठे। लेकिन सोचने वाली बात है कि कोई मर रहा है तो उसकी मौत के लिए कोई जिम्मेदार है। ऐसा ही एक शब्द है 'हिंदुस्तान'। हमारे देश का संवैधानिक नाम भारत (इंडिया) है, लेकिन ज्यादातर लोग हिंदुस्तान ही बोलते हैं जो संविधान विरोधी है, मुझे ऐसा लगता है। अगर हम ब्राह्मणवाद का विरोध कर रहे हैं तो हमें ऐसे शब्दों पर भी ध्यान देना होगा जो उसी ब्राह्मणवाद का हिस्सा हैं और उसे मजबूत करते हैं।
      हम ब्राह्मणवाद का विरोध भी कर रहे हैं और साथ-साथ इसको ढो भी रहे हैं। ब्राह्मणवाद हमारी भाषा, हमारे व्यवहार, हमारी हर चीज में पूरी तरह से समाया हुआ है। हमें उसको गहराई से समझने और विचार करने की जरूरत है। अगर हम उसको ठीक से नहीं समझेंगे तो हम उससे नहीं लड़ पाएंगे। 
(लेखिका : रीतु सिहं - पत्रकार - नेशनल दस्तक) जय भीम 🙏  


विद्रोही को भगवान बना देना ब्राह्मणवाद का ब्रह्मास्त्र है।यही बुद्ध के साथ हुआ । अब आम्बेडकर के साथ हो रहा है। अगर दलितों और आम्बेडकरवादियों ने पूरी ताक़त से इसका विरोध नहीं किया तो बाबासाहेब की मूर्तियां ही उनकी गुलामी का ज़रिया बन जाएंगी। Bhanwar Meghwanshi का आंखें खोलता लेख पढ़िए।

अम्बेडकरवाद का भक्तिकाल :
दलित गुलामी के नए दौर का प्रारम्भ  !

जयपुर में आज 13 अप्रैल 2917 को अम्बेडकर के नाम पर "भक्ति संध्या" होगी। दो केंद्रीय मंत्री इस  अम्बेडकर विरोधी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि होंगे। अम्बेडकर जैसा तर्कवादी और भक्तिभाव जैसी मूर्खता ! इससे ज्यादा बेहूदा क्या बात होगी ?


भीलवाड़ा में बाबा साहब की जीवन भर विरोधी रही कांग्रेस पार्टी का एसी डिपार्टमेंट दूसरी मूर्खता करेगा। 126 किलो दूध से बाबा साहब की प्रतिमा का अभिषेक किया जायेगा। अभिषेक होगा तो पंडित भी आएंगे ,मंत्रोच्चार होगा,गाय के गोबर ,दूध ,दही ,मूत्र आदि का पंचामृत भी अभिषेक में काम में लिया ही जायेगा । अछूत अम्बेडकर कल भीलवाड़ा में पवित्र हो जायेंगे!


तीसरी वाहियात हरकत रायपुर में होगी 5100 कलश की यात्रा निकाली जाएगी। जिस औरत को अधिकार दिलाने के लिए बाबा साहब ने मंत्री पद खोया ,उस औरत के सर पर कलश,घर घर से एक एक नारियल लाया जाएगा। कलश का पानी और नारियल आंबेडकर की प्रतिमा पर चढ़ाये जायेंगे। हेलिकॉप्टर से फूल बरसाए जायेंगे। जिस अम्बेडकर के समाज को आज भी नरेगा ,आंगनवाड़ी और मिड डे मील का मटका छूने की आज़ादी नहीं है ,उनके नाम पर कलश यात्रा ! बेहद दुखद ! निंदनीय !


एक और जगह से बाबा साहब की जयंती की पूर्व संध्या पर भजन सत्संग किये जाने की खबर आयी है। एक शहर में लड्डुओं का भोग भगवान आंबेडकर को लगाया जायेगा।


बाबा साहब के अनुयायी जातियों के महाकुम्भ कर रहे है ,सामुहिक भोज कर रहे है,जिनके कार्डों पर गणेशाय नमः और जय भीम साथ साथ शोभायमान है।भक्तिकालीन अम्बेडकरवादियों के ललाट पर उन्नत किस्म के तिलक लगाएं जय भीम बोलने वाले मौसमी मेढकों की तो बहार ही आयी हुयी है।


बड़े बड़े अम्बेडकरवादी हाथों में तरह तरह की अंगूठियां फसाये हुए है,गले में पितर भैरू देवत भोमियाजी लटके पड़े है और हाथ कलवों के जलवों से गुलज़ार है,फिर भी ये सब अम्बेडकरवादी है।


राजस्थान में बाबा साहब की मूर्तियां दलित विरोधी बाबा रामदेव से चंदा ले के कर डोनेट की जा रही है।इन मूर्तियों को देख़ कर ही उबकाई आती है। कहीं डॉ आंबेडकर को किसी मारवाड़ी लाला की शक्ल दे दी गयी है ,कहीं हाथ नीचे लटका हुआ है तो कहीं अंगुली "सबका मालिक एक है " की भाव भंगिमा लिए हुए है।


 ये बाबा साहब है या साई बाबा ? मत लगाओ मूर्ति अगर पैसा नहीं है या समझ नही है तो।


 कहीं कहीं तो जमीन हड़पने के लिए सबसे गन्दी जगह पर बाबा साहब की घटिया सी मूर्ति रातों रात लगा दी जा रही है।


बाबा साहब की मूर्तियां बन रही है ,लग रही है ,जल्दी ही मंदिर बन जायेंगे ,पूजा होगी ,घंटे घड़ियाल बजेंगे,भक्तिभाव से अम्बेडकर के भजन गाये जायेंगे। भीम चालीसा रच दी गयी है,जपते रहियेगा।


गुलामी का नया दौर शुरू हो चुका है। जिन जिन चीजों के बाबा साहब सख्त खिलाफ थे ,वो सारे पाखण्ड किये जा रहे। बाबा साहब को अवतार कहा जा रहा है। भगवान बताया जा रहा है। यहाँ तक कि उन्हें ब्रह्मा विष्णु महेश कहा जा रहा है।


हम सब जानते है कि डॉ अम्बेडकर गौरी ,गणपति ,राम कृष्ण ,ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश ,भय ,भाग्य ,भगवान् तथा आत्मा व परमात्मा जैसी चीजों के सख्त खिलाफ थे।

वे व्यक्ति पूजा और भक्ति भाव के विरोधी थे। उन्होने इन कथित महात्माओं का भी विरोध किया ,उन्होंने कहा इन महात्माओं ने अछूतों की धूल ही उड़ाई है।

पर आज हम क्या कर रहे है बाबा साहब के नाम पर ? जो कर रहे है वह बेहद शर्मनाक है ,इससे डॉ अम्बेडकर और हमारे महापुरुषों एवम महस्त्रियों का कारवां हजार साल पीछे चला जायेगा। इसे रोकिये।


बाबा साहब का केवल गुणगान और मूर्तिपूजा मत कीजिये। उनके विचारों को दरकिनार करके उन्हें भगवान मत बनाइये । बाबा साहब की हत्या मत कीजिये।


आप गुलाम रहना चाहते है ,बेशक रहिये ,भारत का संविधान आपको यह आज़ादी देता है ,पर डॉ अम्बेडकर को प्रदूषित मत कीजिये।


आपका रास्ता लोकतंत्र और संविधान को खा जायेगा। फिर भेदभाव हो ,जूते पड़े,आपकी महिलाएं बेइज्जत की जाये और आरक्षण खत्म हो जाये तो किसी को दोष मत दीजिये।


 इन बेहूदा मूर्तियों और अपने वाहियात अम्बेडकरवाद के समक्ष सर फोड़ते रहिये।रोते रहिये और हज़ारो साल की गुलामी के रास्ते पर जाने के लिए अपनी नस्लों को धकेल दीजिये।गुलामों से इसके अलावा कोई और अपेक्षा भी तो नहीं की जा सकती है।


 जो बाबा साहब के सच्चे मिशनरी साथी है और  इस साजिश और संभावित खतरे को समझते है ,वो बाबा साहब के दैवीकरण और ब्राह्मणीकरण का पुरजोर विरोध करे।मनुवाद के इस स्वरुप का खुल कर विरोध करे।


अम्बेडकरवाद में भक्तिभाव  के लिए कोई जगह नहीं है । 


मनुवाद के झुठ ओर पाखंड जिन पर हम आँख बंद करके  विशवास् कर लेते हैं।
आईये जानते है कुछ ऐसे ही झुठी कहानियों को।
1- जब हनुमान जी ने सूर्य को अपने मुह में दबा लिया था तब सिर्फ भारत में अंधेरा हुआ था या पूरे विश्व में।

2- कृष्ण जी की गेंद यमुना में कैसे डूब गई जबकि दुनिया की कोई गेंद पानी में नही डूब सकती।


3- कहा जाता है कि भारत में 33 करोड़ देवी देवता हैं जबकि उस समय भारत की कुल जनसंख्या भी 33 करोड़ नही थी।


4- भारत के अलावा और किसी देश में इन 33 करोड़ देवताओ में से सिर्फ भगवान बुद्ध के अलावा किसी देवताओ को नही पूजा जाता।


5- आरक्षण से पहले इनके बंदर भी उड़ते थे , ओर न जाने किस किस विधि से बच्चों का जन्म हो जाता था, परंतु जबसे आरक्षण लागू हुआ है इनके सारे आविष्कार बन्द हो गए।


6- जब एक व्यक्ति का खून दूसरे व्यक्ति को बिना ग्रुप मिलाये हुए नही दिया जा सकता क्योंकि अगर  A positive वाले व्यक्ति को सिर्फ आ positive वाले व्यक्ति का खून दिया जा सकता है अगर दूसरा खून दिया गया तो उस व्यक्ति की मौत हो सकती है। फिर इंसान के शरीर पर हाथी की गर्दन कैसे फिट हो गयी।


7- 33 करोड़ देवी देवताओं के होते हुए भी भारत हजारों साल कैसे गुलाम हो गया।


8- कोई भी *देवता किसी शुद्र के घर पर पैदा क्यों नही हुआ।


9- इतने सारे देवी देवताओं के होते हुए भी शुद्र का विकास क्यों नही हुआ। उनके साथ भेदभाव क्यो हुआ।


जागो  और जगाओ साथियों ।


पाखण्डवाद भगाओ




नया गोदान कथा


पशुओं के मेले के लिये विख्यात राजस्थान के नागौर जिले के परबतसर गाँव में पदमाराम नामक एक ग़रीब जाट रहता था



उसके पास दो-बीघा बंजर धरती का एक दर्रा था जिसमें वह बाजरा बो लिया करता था जिससे उसके परिवार-भर के खाने के लिये अनाज हो जाता था लेकिन उसके पास थारपारकर नस्ल की एक गाय थी जो चालीस सेर दूध देती थी यह गाय उसे उसके बाड़मेर के समधी दुलाराम ने बेटे के ब्याह में दहेज में दी थी



इस तरह पदमाराम को दूध दही घी छाछ की कोई कमी नहीं थी बचा हुआ दूध और छाछ वह गाँव में बाँट देता था उस समय तक इन तरल-पदार्थों को बेचने की प्रथा शुरू नहीं हुई थी



गाँव के एकमात्र मंदिर के एकमात्र पुजारी सांवरमल को भी पदमाराम हर रोज़ एक बड़ा पीतल का लोटा भरकर दूध भेजता था



हरी हरी चरी हुई थारपारकर गाय के दूध का स्वाद जिसने पिया है वही जान सकता है उसका वर्णन असम्भव है



वह धारोष्ण धवल धार



पुजारी सांवरमल के मन में खोट आ गया   उसने सोचा कि पदमाराम का बाप मरणासन्न है - जब मरेगा तो थारपारकर का गोदान करवा लूँगा



ईश्वर ने अपने पूरे कार्यकाल में सांवरमल की प्रथम बार प्रार्थना सुनी और पदमाराम का बाप काल-कवलित हो गया और उसको मूंज की खाट से उतारकर धरती पर सुला दिया गया



संस्कार के लिये पुजारी को बुलाया गया



-यजमान, अब तू अपने पिता के नाम से गोदान कर   पुजारी ने कहा



-मेरे पास यह अकेली गाय है नहीं दूंगा   यह कहकर पदमाराम ने पुजारी को कुछ चांदी का सिक्का देना चाहा । लेकिन पुजारी ने नही लिया और तर्क दिया कि



-क्या बाप रोज़-रोज़ मरता है ऐसी गाय दान करो जो दूध देती हो जवान हो हर तरह से उत्तम हो   पुजारी ने दबाव बनाया



पदमाराम ने फिर इंकार में सर हिलाया और कुछ और सिक्के पुजारी को बढ़ाया



-इस तरह वैतरणी पार नहीं होगी   पुजारी बोला



गाँव के तमाम लोग सारे कुटुम्बी इकट्ठा थे और धरती पर बाप मरा पड़ा था    आख़िरकार पदमाराम को दिल मसोसकर अपनी थारपारकर गाय और बछड़ा पुजारी के हवाले करने पड़े



तेरह दिन में ही बाजरे के सूखे रोट खाकर पदमाराम के बच्चों की हालत ख़राब हो गयी



जब बच्चों की रूखी-सूखी आँखें पदमाराम से नहीं देखीं गयीं तो चौदहवें दिन पदमाराम सांवरमल पुजारी के घर पहुंच गया देखा कि पण्डताइन उसकी थारपारकर को दुह रही थी और पुजारी दूध से भरी बटलोई रसोई में रखने जा रहा था



-पंडत, इधर आ   पदमाराम ने कहा



-दूध की बटलोई रख कर आता हूँ



-नहीं, उसके साथ ही आ



पुजारी ने बटलोई पदमाराम के सामने रखी और बोला - बोल पदमाराम कैसे आये



-तुमने गाय किसलिये ली थी   पदमाराम का सवाल था



-तुम्हारे बाप को वैतरणी पार कराने के लिये  सांवरमल ने जवाब दिया



-लेकिन गाय तो तेरे घर बंधी हुई है मेरा बाप तो वैतरणी में बह बह के डूब गया होगा और यह बता कि वैतरणी परबतसर से कितनी दूर है



-कोई तीस करोड़ कोस दूर है   पुजारी ने उत्तर दिया



-कोई पोस्टकार्ड आया हो तो दिखा के मेरे बापू ने वैतरणी आराम से पार करली   पदमाराम ने फिर पूछा



-हमारे पास गरुड़-पुराण है यही हमारा प्रमाण है हम पोस्टकार्ड को प्रमाण नहीं मानते



-और हम पोस्टकार्ड को प्रमाण मानते हैं जिस दिन पोस्टकार्ड आये बता देना उसी दिन थारपारकर को वापस इसी खूंटे से बाँध जाऊँगा    यह कहकर पदमाराम अपनी गाय और बछड़े को खोलकर घर ले गया और साथ में दूध की बटलोई भी



इन दिनों पुजारी सांवरमल हर रोज़ पोस्टमेन की प्रतीक्षा में बैठा रहता है और हर रोज़ उससे पूछता है -






कोई पोस्टकार्ड आया क्या ?




ब्राह्मणवादी लोग अपना उद्देश्य कभी नहीं बदलते, केवल दाँवपेंच बदलते हैं। 
ब्राह्मणवादी लोग यदि हमें धर्म के नाम पर इकट्ठा करके संगठन बनाते है और नेतृत्व ब्राह्मण अपने पास ही रखता है। इस संबंध में मैं कार्यकर्ताओं को हमेशा एक मिसाल देता हूँ। वैसे तो यह एक विनोद लगता है मगर उस विनोद में भी एक गंभीर संदेश है। 

एक बार मुर्गियाँ खानेवाले लोगों ने मुर्गियों का एक सम्मेलन आयोजित किया। आयोजनकर्ताओं ने मुर्गियों को बतया कि इस सम्मेलन में आपको एक प्रस्ताव पारीत करना है। मुर्गियों ने पुछा, प्रस्ताव क्या है? तब सम्मेलन योजनकर्ताओं ने बताया कि आपको काँटने के पश्‍चात कौन से मसाले में भूना जाए इस संबंध में आपको एक प्रस्ताव पारीत करना है। इस पर कुछ होशियार मुर्गियों ने आयोजनकर्ताओं से सवाल किया कि मान्यवर, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हमें काँटा ही न जाए? तब आयोजनकर्ताओं ने बताया कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। क्योंकि आपको काँटने का फैसला पहले ही हो चुका है। आपको केवल भूनने के लिए मसाला तय करना है। इसका अर्थ यह है कि जब आपको संगठन का नेतृत्व किसी ब्राह्मण के पास होता है तब मूलनिवासी बहुजन समाज को मारने का फैसला पहले की हो चुका होता है। इस ब्राह्मणवादी षड्यंत्र को बामसेफ संगठन ने भलीभांति पहचाना और इसके खिलाफ मूलनिवासी बहुजन समाज को तैयार करने का कार्य स्विकार किया।



रक्षाबंधन भाई बहन का त्योहार नहीं है. क्या हिंदुओं में ही भाई बहन होते हैं. सिक्ख, मुसलमानों, ईसाईयों, जैन पारसियों या बौद्धों में भाई बहन नहीं होते. यदि यह त्यौहार भाई बहनों का त्यौहार होता तो सिक्ख, मुसलमान, ईसाई, जैन पारसी या बौद्ध भाई बहन भी इसे मनाते, वर्ण व्यवस्था के अनुसार यह ब्राह्मणों का त्योहार है। इतिहास काल से अब तक ब्राह्मणों द्वारा क्षत्रियों को रक्षा सूत्र बांधा जाता रहा है उन्हे ब्राह्मणों की रक्षा की शपथ दिलाई जाती रही है। ”धर्मशास्त्र का इतिहास” नामक पुस्तक के चौथेखण्ड के पृष्ठ १२४ में भारत रत्न पी वी काणे (पांडुरंग वामनराव काणे) लिखते है “आज ब्राम्हण शूद्र के घरों मे जाकर उन्हें तथा कथित रक्षा सूत्र(जो वास्तव मे बंधक सूत्र है) बाँधते हुये देखे जा सकते हैं और वह रक्षा सूत्र बांधते है तो संस्कृत का श्लोक भी पढ़ते है।मन्त्र:-
“येन बध्दो ,दानेन्द्रो बलि राजा महाबल:।
तेन त्वाम प्रति बधनामिअहम रक्षे माचल ,माचल, माचल।।
अर्थात जिस प्रकार तुम्हारे दानवीर बलि राजा को हमारे पूर्वजो ने बंदी बनाया था उसी प्रकार हम तुम्हे भी मानसिक रूप से बंदी बना रहे है। हिलो मत, हिलो मत, हिलो मत, अर्थात जैसे हो वैसे ही रहो अपने मे सुधार ना करो।
अर्थात मैं तुझे ये धागा उस उद्देश्य से बंधता हूँ जिस उद्देश्य से तेरे सम्राट बलि राजा को बांधा गया था, आज से तू मेरा गुलाम है मेरी रक्षा करना तेरा कर्त्तव्य है, अपने समर्पण से हटना नहीं।
महाराज बलि मूलनिवासियों के सबसे ज्यादा शक्तिशाली राजा हुए थे जिन्होंने पूरे देश से ब्राह्मणों को खदेड़ दिया था और देश को ब्राह्मणमुक्त कर दिया था। जब ब्राह्मणों का महाराज बलि पर कोई वस नहीं चला तो ब्राह्मणों ने अपने धर्म के अनुसार यज्ञ करवाने के नाम से एक चल चली।महाराज बलि को ऋग्वेद के अनुसार यज्ञ करने के लिए मना लिया गया। यज्ञ के बाद ऋग्वेद के अनुसार दान देना और ब्राह्मणों को प्रसन्न करना जरुरी है। ब्राह्मण तभी प्रसन्न होता है जब उसको उसकी इच्छानुसार दान मिले। यज्ञ “वामन” नामक ब्राह्मण ने महाराज बलि द्वारा धोखे से तीन वचन लेकर पहले वचन में महाराज बलि से पूरी धरती अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का शासन था वो सारी भूमि मांग ली। दूसरे वचन में समुद्र मांग लिया अर्थात जहाँ जहाँ महाराज बलि का समुद्रों पर कब्ज़ा था और तीसरे वचन में महाराज बलि से उनका सिर मांग लिया था। ब्राह्मण धर्म के जाल में फंसे मूलनिवासियों की स्थित आज बिल्कुल महाराज बलि के जैसी बनी हुई है। ना तो महाराज बलि रक्षासूत्र के नाम पर बंधक सूत्र बंधवाते और न ही ब्राह्मण उनका सब कुछ जान समेत ठग लेते।ब्राह्मण धर्म के धोखे में फंसे मूलनिवासी आज अपना सब कुछ ब्राह्मणों को दे रहे है जबकि न तो यह धर्म मूलनिवासियों का है और न ही मुर्ख बनकर मूक बने लूटते रहना कोई धर्म है। अगर इतिहास में भी झांक कर देखा जाये तो आज तक किसी भी ब्राह्मणी त्यौहार से मूलनिवासियों का कोई फायदा नहीं हुआ है। मूलनिवासी बिना सोचे समझ हीे ब्राह्मणों रीतति रिवाजों और धार्मिक परम्पराओं को ढोते जा रहे है और यही रीति रिवाज और धार्मिक परम्पराए मूलनिवासियों की गुलामी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेवार है। विश्व के अन्य देशों में रक्षाबंधन जैसे पाखंड और अंधविश्वास पर आधारित त्यौहार नहीं मनाये जाते। जैसा की ब्राह्मण कहते है कि रक्षा बंधन ना बांधने से हानि होती है। आज तक विश्व के किसी भी देश में कोई हानि नहीं हुई। असल में हानि सिर्फ इंडिया में ही होती है। ब्राह्मण एक भी परम्परा को नहीं तोड़ना चाहता। अगर एक भी परम्परा टूट गई तो ब्राह्मणों का पाखंड, अन्धविश्वास और लोगों को लूटने का अवसर कम हो जायेगा। सच बात तो ये है कि रक्षाबंधन का भाई बहन के प्रेम से कोई लेना देना नहीं। रक्षाबंधन का मामला ही कुछ अलग है” रक्षाबंधन” इस शब्द का अर्थ है रक्षा का बंधन, अर्थात गुलामी का बंधन। सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी ने अपनी बहन नानकी से राखी बंधवाने से इंकार किया। क्यों? क्योकि गुरु नानक जी ने साफ़ साफ़ कहा की औरत मर्द पर सुरक्षा के लिए निर्भर न रहे। आज के काल में बुद्धिस्ट भिक्षुओ ने भी रक्षासूत्र बाँधना शुरू कर दिया है। यह बौद्ध भिक्षुओं के ब्राह्मणीकरण की नयी साज़िश है। इस आध्यात्मिक गुलामी का धिक्कार करे। महात्मा फुले ने खुद ही कहा था “आध्यात्मिक गुलामी के कारण मानसिक गुलामी आई,मानसिक गुलामी के कारण सोच विचार करना बंद कर दिया, सोच विचार बंद होने के कारण आर्थिक गुलामी आई और सारे मूलनिवासी ब्राह्मणों की गुलामी के शिकार बन गए।
आओ हम महात्मा फुले के पद चिन्हो पर चले “
नमो बुद्धाय।

जय भीम ।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

1 comment:

  1. जब इतिहास लिखा जाएगा तब
    इतिहासकारों को लिखना होगा कि

    21वीं सदी में जब
    कोरिया ,अमेरिका जैसे मुल्क
    हाइड्रोजन बम का परिक्षण कर रहे थे,
    चीन ,जापान ,तकनीक की दुनिया के ,
    सुपर पॉवर बन रहे थे,,
    1.25करोड़ नौकरियां हर साल
    अपने नागरिकों को चीन दे रहा था,

    तब

    भारत की मीडिया ,और सरकार ,
    भोले और सीधे सादे अपने नागरिको को,,

    #गाय #गोबर, गऊमूत्र, #बीफ ,#मंदिर ,मस्जिद,# मुसलमान ,तलाक,
    #आंसू द्वारा मोरनी को गर्भवती करने , #गाय के लिए कत्ल करने ,
    आदि में
    उलझा कर सत्ता की मौज ले रहे थे .....


    जय हिंद 🇮🇳

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