Tuesday 25 July 2017

दलितों के प्रति घृणा क्यों

दलितों के प्रति घृणा क्यों कारण और निवारण

🔹यह मनुवादियों के शास्त्रों में लिखा हुआ है कि शूद्र जाति सेवा के लिए होती है, उनको धन नहीं रखना चाहिए, उनको अच्छे कपड़े नहीं पहनना चाहिए, वे हीन होते हैं, वे बिना पीटे सही काम नही करते।


🔹शूद्र जाति के लोग गंदे, अनपढ़, गवार, असभ्य, अछूत होते हैं, ये गंदा खाते हैं,  इनके शरीर से बदबू आती है; इन सब मान्यताओं के कारण इनसे घृणा की जाती है। शूद्रों में दो तरह के लोग होते हैं- शूद्र और अति-शूद्र। दलित अति शूद्रों में आते हैं।


🔹डॉ आंबेडकर ने कहा था कि मनुष्य के विकास के लिए धर्म अति आवश्यक है। इसलिए दलित को भी एक धर्म चाहिए। पहले वह वर्ण व्यवस्था से भी बाहर था। लेकिन फिल्मों, टीवी सीरियलों, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से, त्यौहारों के माध्यम से उसको हिंदू धर्म ही परोसा गया। बौद्ध धर्म की किसी भी शिक्षाओं का कोई प्रचार नहीं हुआ, इसी कारण वह अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिए हिंदू धर्म का ही सहारा लेता है। हालांकि शास्त्रों द्वारा उसका मंदिरों में प्रवेश वर्जित है भले ही वह मंदिरों में जाता हो क्योंकि मंदिरों में अच्छी वेशभूषा पहन कर जाने पर जाति नही पूछी जाती। हो सकता है कि एक समय आए कि इंट्री रजिस्टर में जाति भरी जाए। तब लोग झूठी जाति लिखकर ही मंदिर के अंदर जा पाएंगे।


🔹सरकारी स्कूलों में पढ़ने के कारण दलित समाज के लोग बहुत अधिक अच्छी शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते हैं जिसके कारण प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले दूसरी जाति के लोग उनसे आगे निकल जाते हैं।


🔹गांवों में जब दलित लोग उन्नति करने लगते हैं, अच्छा पहने लगते हैं तो भी उनसे ईर्ष्या के कारण घृणा पैदा होने लगती है। यह घृणा राजनीतिक स्तर पर भी आ चुकी है। भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं को यह सुनते हुए पाया गया है कि जो लोग हमारे जूते साफ करते थे वे आज हमारे सिर पर आकर बैठ गए हैं।


🔹हमारे समाज के कई लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है। वे क्रिश्चन मिशनरी स्कूलों में फादर, ब्रदर या प्रिंसिपल के पद पर तैनात हो गए हैं। उनसे कोई नहीं कहता कि ये कल हमारे जूते साफ करते थे आज प्रिंसिपल बन गए हैं।


🔹मुसलमानों के साथ भी यही हुआ। कोई नहीं कहता ये हमारी गंदगी साफ करते थे और आज अच्छी-अच्छी दुकानों के मालिक हैं, बिजनेसमैन है।


🔹धर्म परिवर्तन कर बने हुए सिखों को कोई नहीं कहता कि कल जो हमारे झाड़ू लगाते थे, अब गुरुद्वारों के संत बने बैठे हैं या विदेशों में जाकर अच्छा बिजनेस कर रहे हैं।


🔹धर्म बदलने का यही फायदा होता है कि एक पीढ़ी के बाद गाली या अपमान मिलना बन्द हो जाता है। आगे की पीढ़ियां सुख से रहती हैं।


🔹यह बात अलग है कि किन्ही धर्मों में कुछ आपसी भेदभाव रहता है जोकि तथाकथित उच्च वर्णों से धर्म परिवर्तन करके आने वालो की कोशिश के कारण है पर उनका धर्म ये भेदभाव नहीं मानता।


👺 घृणा को कैसे समाप्त किया जाए-

🥞🥙कुछ लोग कहते हैं कि खान-पान से यह घृणा समाप्त हो सकती है। ऐसा पाया गया है कि खानपान अपनी मर्जी से नहीं किया जाता। जब कोई दलितों का समूह अपमान के कारण धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो उसको रोकने के लिए एक सामूहिक भोज रख दिया जाता है ताकि धर्म परिवर्तन को रोका जा सके।

👫यह भी कहा जाता है अंतर्जातीय विवाह से जाति पाति को खत्म किया जा सकता है। इस तरह के विवाहों के बाद ये भी यह पाया गया है कि तथाकथित उच्च जाति के लड़के या लड़की वाले अपना संबंध तोड़ लेते हैं तो इस प्रकार से संबंध जुड़ने की बजाए टूट जाता है और कटुता पैदा हो जाती है। इसी चक्कर में कई लोगों को मौत के घाट भी उतार दिया जाता है।


☠ सबसे पहले हमें जाति की निरर्थकता को साबित करना होगा, उसकी अवैज्ञानिकता को साबित करना होगा और जनता को इस बारे में सही जानकारी देनी होगी।


✊🏻 हमें अपने स्टैंडर्ड को बढ़ाना होगा, रहने, खाने पीने का एक उच्च स्तर बनाना होगा और ज्ञान में इन तथाकथित मेरिट वाले लोगों को भी पछाड़ देना होगा।


🐝साथ ही साथ अपनी आत्मशक्ति और साहस को बढ़ाना होगा। अपनी आत्मरक्षा के लिए अपने आप को तैयार करना होगा। अपने समाज को जोड़ना होगा। समय पड़ने पर एक दूसरे की मदद करनी होगी। कानून की जानकारी रखनी होगी।


❌अपनी मेहनत से कमाई हुई दौलत को शराब, बीड़ी, तमाखू, सिगरेट, मंदिरों में दान करके नहीं गवाना चाहिए। इससे अपने जीवन स्तर को सुधारने और बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने में इस्तेमाल करना चाहिए।


👻हमें समझना चाहिए कि जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था काल्पनिक है। जाति व्यवस्था परिवारवाद का एक बड़ा रूप है। उदाहरण के तौर पर हम कह सकते हैं कि जैसे नेहरु का परिवारवाद पूरे देश में छाया रहा। अभी भी उनके परिवार के राजकुमार को क्षमता ना होने के बावजूद भी प्रधानमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है। ठीक इसी प्रकार मध्य एशिया से आए कुछ ब्राह्मणों ने अपने बढ़े हुए परिवार को जाति का नाम दे दिया। आज उसकी जाति में योग्यता हो या ना हो वह अपने आप को सभी जातियों से सर्वोपरि मानते हैं जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। मूलनिवासियों को हीन बनाये रखने के लिए उन्होंने नीचे के वर्णों और जातियों में डाल दिया। लोग समझते हैं ये भगवान के बनाए वर्ण हैं और उनको छोड़ना नहीं चाहते भले ही योग्यता में वे कितने ही बड़े और श्रेष्ठ क्यों ना हो। इसलिए ब्राह्मणों की बनाई हुई जातियों पर विश्वास करके उसी जगह बने रहना नासमझी और डर को दिखलाता है।


👹 लोगों ने बाबा साहब को तो माना लेकिन उनकी धर्म परिवर्तन की बात नहीं मानी। इसका एक मात्र कारण उनके मन में बैठा हुआ देवी देवताओं का डर है। उनको लगता है कि अगर वे देवी देवताओं को छोड़ देंगे तो उनका कोई नुकसान हो जाएगा।


👺कुछ लोगों ने अपनी जाति को ही कई प्रकार के गौरवशाली रूपों में बताना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि चमार सूर्यवंशी राजा की संतान है। मुझे अपनी जाति नहीं छुपानी चाहिए जो छिपाते हैं वे कायर हैं। मुझे चमार होने पर गर्व है आदि।


😡 इन चमारों को अगर कोई तथाकथित सवर्ण, चमार कह देता है तब वे नहीं कहते की कोई बात नहीं मुझे चमार होने पर गर्व है और मैं सूर्यवंशी हूं। उल्टा वे पुलिस स्टेशन की तरफ भागते हैं और एट्रोसिटी एक्ट में अपना मुकदमा करवाने की सिफारिश करते हैं। अगर चमार होने पर गर्व है तो चमार कहने पर अपमान क्यों महसूस करते हो। वास्तव में चमार शब्द और जाति इतनी बदनाम हो चुकी है कि इसके साथ जुड़ा रहना उचित नहीं है। चमार वास्तव में वे पहले बौद्ध ही थे। चमार / शूद्र थोपी हुई जाति / वर्ण हैं।


😐➡😊➡😀अगर सभी दलित बौद्ध हो जाते हैं तो दो तीन पीढ़ियों के बाद ब्राह्मणों को दलित कहने के लिए कोई आदमी नहीं मिलेगा। हमें बार-बार समझना पड़ेगा कि सभी मनुष्य बराबर हैं, उनकी बुद्धि बराबर है तो वे किसी दूसरे इंसान से नीचे क्यों रहे।


👻❌दलितों द्वारा इसाई धर्म में परिवर्तन होने से किसी देवी-देवताओं ने उनका घर नहीं जला दिया। सिखों द्वारा धर्म परिवर्तन करने से किसी भी देवी देवता ने उनको विकलांग नहीं बना दिया। देवी देवताओं का डर जब था जब मेडिकल साइंस एडवांस नहीं थी। मिर्गी जैसी बीमारी को लोग समझते थे उसके ऊपर देवी सवार हो गई है। इसलिए देवी देवताओं को त्यागकर बिना डरे, उच्च धर्म को अपनाना चाहिए जो कि बौद्ध धर्म है।


👉 धर्म की शिक्षा

धर्म की कोई शिक्षा होनी चाहिए।
हिंदू धर्म में ब्रह्मा के क्या उपदेश हैं?
रामचंद्र जी ने क्या शिक्षा दी?
शिव जी ने क्या शिक्षा दी?
गणेश जी के उपदेशों का वर्णन करो!
अगर सोचा जाए तो कुछ भी दिमाग में नहीं आता कि उन्होंने क्या शिक्षा दी।

🖐 पर अगर कोई कहे कि भगवान बुद्ध ने क्या शिक्षा दी तो हम तुरंत पंचशील के उपदेशों को बता सकते हैं, अष्ट मार्ग को बता सकते हैं। जीवन में होने वाले दुखों के कारण और निवारण को भी बता सकते हैं।


☺ वास्तव में बौद्ध धर्म में वे उपदेश हैं जो कि हमें एक अच्छा जीवन जीने के लिए शिक्षा देते हैं। अब साफ है कि हमें किस धर्म को अपनाना चाहिए जो हमें समानता दे या जो हमें नीच बताये।


🏠🏬यह माना जाता है कि शहरों में जातिवाद कम है, भेदभाव और छुआछूत काम है। वास्तव में शहरों में हम अच्छे नाम और टाइटल रखकर किराए का मकान  ढूंढते हैं या प्राइवेट सेक्टर में नौकरी पाते हैं। तो कोई हमारी अच्छी वेशभूषा या शक्ल देख कर शक नहीं करता है। लेकिन जैसे ही उसको हमारी जाति पता चलती है तो हमारे अच्छे काम क्षण भर में भुला दिए जाते हैं और हम नीच बना दिए जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है हम अपने कर्म और शक्ल व वेशभूषा से नीच नहीं है। उस जाति को अपनाए रखने के कारण ही हम नीच हैं। जब तक हम उस जाति को जोकि उन ब्राह्मणों की बनाई हुई है, मानते रहेंगे, तब तक हम ब्राह्मणवाद को जिंदा रखेंगे।


👞👟अगर हम चमार शब्द को चमड़े की चीज यानि कि  जूता बनाने से जोड़ लें तो यह आपके ऊपर हमेशा नहीं इस्तेमाल किया जा सकता। अगर आप पढ़ लिख कर डॉक्टर बन गए हैं और इंजीनियर बन गए हैं। तो फिर आप डॉक्टर या इंजीनियर की जाति के हो गए ना कि चमार जाति के।


😇 कभी-कभी हम मल्होत्रा, अग्रवाल, शर्मा, शुक्ला के जूतों के शोरूम में जाते हैं तब वहाँ कभी नहीं कहते कि अरे मोची जूते दिखाओ, अरे चमार उस जूते की कीमत कितनी है। जबकि ये लोग हमें अधिकारी होने पर भी ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं।


😢😫अगर आप लोग अपना धर्म बदलने से अभी भी डर रहे हैं तो अच्छे तरीके से रहिए, अच्छा खाइए, अच्छा पीएं (दारू नहीं), बहुत अच्छी पढ़ाई करें, अच्छी बातचीत की शैली अपनाई है और फिर भी अगर आपको कोई चमार , चूढा, अहीर कहता है तो आप उसको महा चमार , चूढा, अहिर कह कर पुकार सकते हैं।


👊अगर कोई कहे, "अरे चूढा-चमार के क्या कर रहा है?"

आप उत्तर दे सकते हैं, "अरे महा चूढा,महा चमार! अंधा है क्या? दिख नहीं रहा।" वह थोड़ा गरम जरूर होगा लेकिन वहां से भाग जाएगा। जैसे के साथ तैसा करने की हिम्मत करनी होगी।

🐝जयभीम, जय संविधान📘                  

4 comments:

  1. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से बौद्ध धर्मांतरण करने का रास्ता साफ़ हो गया है । अब कोई भी शेड्यूल कास्ट का व्यक्ति अपनी जाती समेत बौद्ध धर्मांतरण कर सकते हैं । जो लोग पहले से बौद्ध हैं उन्हें अब आवेदन फ़ॉर्म मे हिन्दू-महार, चमार, मांग आदि ..लिखकर जाति प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता नही हैं । वे आवेदन फ़ॉर्म के धर्म कॉलम मे बुद्धिस्ट और जाति के कॉलम मे शेड्यूल कास्ट लिस्ट मे आनेवाली अपनी जाती महार, चमार, मांग आदि ..... लिखकर क्लिअर कट जाति प्रमाण पत्र ले सकते हैं । इसके बाद आप बौद्ध भी बने रहेंगे और आप को केंद्र और राज्य सरकार के आरक्षण का फ़ायदा पहले जैसा ही मिलते रहेगा।
    1956 के बाद हमारे समाज को लीड करनेवाले प्रथम बौद्ध बनेने का सम्मान पात्र माहाराष्ट्र के बौद्ध धर्मीयों मे ही यदि दुविधा हो तो धर्मांतरण का काम आगे कैसे बढ़ सकता है ? बौद्ध धर्मांतरण करें तो कैसे करें ? आरक्षण जाने का डर और धर्मांतरण या आरक्षण ऐसे दुविधा में फँसे हमारे लोगों के मन मे आज भी बौद्ध धर्मांतरण करने के प्रती डर है । लेकिन अब हमें डरने की आवश्यकता नही है।
    भारत सिविल अपील की सुप्रीम कोर्ट नहीं। की 4870 2015
    मोहम्मद। Sadique
    v / s
    दरबार सिंह गुरु
    "अनुसूचित जाति व्यक्ति अन्य धर्म में परिवर्तित अभी भी अपने अनुसूचित जाति का दर्जा बरकरार रखती है।"
    यह 1108 अनुसूचित जाति और लगभग 22 करोड़ के पास कुल एकजुट करने के लिए केवल अवधारणा है। भारत में अलग धार्मिक छाता में।
    धन्यवाद और सादर,
    सुमित Pachkhande
    वकील
    भारत के सर्वोच्च न्यायालय
    भीड़: - 08585961232

    मेरी सभी से विनंती है की इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा प्रसारीत करे ताकी ज्यादा से ज्यादा बहुजनो को इसका लाभ मिल सके|
    9822741455

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  2. मंदिर में घुस गया दलित, सवर्णों ने पिटाई कर दे दी अपवित्र करने की सजा http://www.nationaldastak.com/country-news/dalit-beaten-for-enter-in-temple/

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  3. Democracy, Media perceptions and transforming media.
    डेमोक्रैसी में मीडिया को मिशन के रूप में गरीबी, भुखमरी, प्राकृतिक आपदा, सरकारी योजनाओं, वैज्ञानिक सोंच इत्यादि मिशन के लिये इसे चौथे पिलर का रूप दिया गया था।
    जिस तरह शिक्षा एवं स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये अपना सबकुछ त्याग, बिना शादी किये, जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत हो एक मिशन बना क्रिस्चियन मिशनरी काम कर रही है, इसी एथिक्स की अपेक्षा हमारे मीडिया से भी की गयी थी कि ये जनअकाँछाओं को मिशनरी के जैसे पूरी करेगी।
    पर, भारतीय मीडिया इसके उलट एथीकलेस बिजिनेस बन गयी है, जो अरबों कमा रही है, पिछड़े दलित का एंट्री बन्द कर पेड न्यूज एवं एडिटोरियलाइजिंग ऑफ न्यूज कर रही है।
    कुंडली, यन्त्र, प्रवचन, निर्मल बाबा जैसों का समागम ग़ैरवैज्ञानिक, भ्रामक एवं अनेकों घटिया प्रोडक्ट का जबरदस्त प्रचार कर परशेप्शन बनवा देती है। चीन, पाकिस्तान, मुस्लिम आतंकवाद एवं धर्म का हउआ खड़ा कर मुदा को डाइवर्ट कर दी जा रही है।
    क्या यही मीडिया का मिशन है, यही समाज के प्रति समर्पण एवं त्याग है? क्या इसी के लिये इसे लाइसेन्स दे कर चौथा खम्भा बनाया गया है?
    अब तो भारतीय मीडिया फेक न्यूज दे कर एवं भ्रामक परसेप्शन बनवा खास राजनैतिक विरादरी को विलन बना रही है। जैसे कन्हैया को देशद्रोही, केजरीवाल को फटा ढोल, राहुल को पप्पू एवं लालुजी को गौ मां विरोधी एवं भ्रस्टाचारी का तमगा दे कर सवर्ण परस्त पार्टी को वोट ट्रांसफर करवा दे रही है।
    क्या इसी मिशन के लिये इसे लोकतंत्र का चौथा पिलर कहा गया है? अभी जाति के इमोशनल बाइंडिंग पर मीडिया परशेप्शन भारी पड़ रहा है। मीडिया बिल्कुल ही अनइथिकल बिजिनेस कर भारतीय लोकतांत्रिक ढाँचे को ध्वस्त कर दी है।
    जिस तरह भारतीय न्यायपालिका ज्यूडिशियल एक्टिविज्म, डिक्टेटरशिप, अडवेंचरिज्म से आगे बढ़ ज्यूडिशियल रोमांटिसिज्म के डोमेन में प्रवेश कर भारतीय डेमोक्रैसी से रोमांस कर रही है।
    वास्तव में, भारतीय मीडिया अंधविश्वास बढ़ा कर स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी, भुखमरी इत्यादि मिशन त्याग एथिकलेश बिजिनेस, पेड न्यूज, फेक न्यूज से आगे बढ़कर भ्रामक परशेप्शन के दौर में पहुंचकर वर्तमान को बर्वाद कर, आने वाले भविष्य के लिये खतरा पैदा कर दिया है।
    डॉ निराला

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  4. ========= भारत का अर्थ ==========
    ..... मेरे आत्मीय बंधुओं , आप सभी को यथोचित अभिवादन ...
    ..... हिन्दुस्तान का नाम ' भारत ' क्यों पड़ा , और ' भारत ' शब्द का अर्थ क्या है ?
    ..... ' भा ' शब्द का अर्थ है , प्रकाश या तेज अर्थात ज्ञान , और ' रत ' शब्द का अर्थ है 'प्रेमी ' या ' लगा हुआ ' . इस प्रकार जो ज्ञान का प्रेमी है , या ज्ञान में लगा हुआ है , वह " भारत " कहा जाता है .....जैसे कार्य रत , अर्थात कार्य में लगा हुआ ....

    ..... ऐसे देश का नाम ' भारत ' पड़ा यह सर्वथा उचित ही है .
    ..... कालान्तर में यहीं पर ' भरत ' नाम के एक प्रतापी राजा हुए जिससे लोगों की यह धारणा बन गयी कि उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम ' भारत ' रखा गया . यही नहीं भारत के रहने वालों को ' भरत वंशी ' भी कहा जाने लगा .
    ..... किन्तु मूलत: ' भारत ' शब्द से तात्पर्य है ' ज्ञानोपासक ' .....

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