Tuesday 25 July 2017

जस्टिस कर्णन

जस्टिस कर्णन और संविधान की रक्षार्थ तत्काल तीन कदम-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
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प्रथम संक्षेप में विषय को समझें :
~~~ जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के जजों सहित अनेक जजों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने और न्यायिक प्रक्रिया में व्याप्त मनमानी और भ्रष्टाचार को उजागर करने के पवित्र मकसद से कानून सम्मत कार्यवाही हेतु प्रधानमंत्री को बाकायदा पत्र लिखा। जिस पर प्रधानमंत्री ने कोई एक्शन नहीं लिया। बल्कि इसके विपरीत अपनी पदीय हैसियत और न्यायिक शक्तियों का अपने हित में दुरूपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के कथित आरोपी जजों ने जस्टिस कर्णन के न्यायिक और प्रशासनिक अधिकार छीन लिये। जस्टिस कर्णन को न्यायिक अवमानना का नोटिस जारी करके सुप्रीम कोर्ट में पेश होने को निर्देशित करके सार्वजनिक रूप से अपमानित किया। अंततः जस्टिस कर्णन को दोषी मानकर 6 माह की सजा सुना दी। जबकि जिन जजों के खिलाफ कथित आरोप थे, उनको इस बारे में सुनवाई करने और सजा सुनाने का कोई कानूनी हक नहीं था। बल्कि ऐसा करना प्राकृतिक न्याय के सार्वभौमिक सिद्धांत का खुला उल्लंघन है। सबसे दुखद पहलु इस दौरान प्रधानमंत्री मौन साधे रहे। यह केवल एक दलित जज के उत्पीड़न का ही मामला नहीं है, बल्कि यह संविधान, न्याय और लोकतंत्र को चौराहे पर फांसी चढाने का मामला है। अतः देश के प्रत्येक इंसाफ पसन्द व्यक्ति को इसकी गम्भीरता को समझकर, इस मनमानी और अन्याय का कड़ा विरोध करना ही होगा।

रिव्यू पिटीशन आत्महत्या करने जैसा

~~~~~~~अनेक विद्वानों का मत है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को कुछ समय तक टालने के लिये सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रिव्यू पिटीशन दायर की जाये। मुझ डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' का मत- जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के जिन जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगाये हैं, उन्होंने आरोपी होकर भी खुद ही खुद के मामले में मनमाना निर्णय किया है, उनके समक्ष रिव्यू पिटीशन दायर करने का सीधा अर्थ होगा, उनकी न्यायिक ऑथोरिटी/अधिकारिता को स्वीकारोक्ति, जो आत्महत्या करने के समान है?

आखिर किया क्या जाये?

~~~~~लोकतंत्र में एकजुट जनता की ताकत के सामने झुकना सत्ता की मजबूरी है। आज देश के प्रधानमंत्री की मौन स्वीकृति से जस्टिस कर्णन को जेल भेजने के आदेश हुए हैं। यदि देश के इंसाफ पसन्द लोग इस मनमानी को तमाशबीन बनकर देखते रहे तो आने वाला कल अंधकारमय होगा और प्रत्येक इन्साफ की आवाज़ को कुचल दिया जाएगा। अतः इन असामान्य और गम्भीर हालातों में निम्न कदम उठाने चाहिये :-

1-राष्ट्रपति आदेश को तत्काल स्टे/स्थगित करें : स्वयं संज्ञान लेकर खुद राष्ट्रपति संविधान और न्याय की रक्षार्थ सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को तत्काल स्टे/स्थगित करें। अन्यथा लोकतंत्र के प्रहरी सभी वर्तमान और पूर्व सांसदों तथा विधायकों को विवश किया जावे कि देश के राष्ट्रपति के समक्ष इस मुद्दे को रख कर और हस्तक्षेप करवाके सुप्रीम कोर्ट के अवैधानिक आदेश को तत्काल स्टे/स्थगित करें।


2-इन्साफ पसन्द प्रत्येक नागरिक राष्ट्रपति को निम्न मेल, फेक्स और पत्र लिखें/भेजें :


जस्टिस कर्णन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के जिन जजों ने सजा सुनाई है, उनके विरुद्ध जस्टिस कर्णन ने भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोप लगाए हैं। इस कारण उनको जस्टिस कर्णन के विरुद्ध किसी प्रकार की न्यायिक/कानूनी सुनवाई करने का कानूनी या नैतिक हक नहीं है। अतः सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस कर्णन के खिलाफ न्यायिक अवमानना के आरोप में सुनायी गयी सजा को तत्काल स्थगित किया जाये। साथ इस मामले में प्रधानमंत्री की चुप्पी और सुप्रीम कोर्ट की मनमानी के पीछे अंतर्निहित कारणों की जांच के लिये, सिविल सोसायटी की देखरेख में एक उच्च अधिकार प्राप्त जांच कमेटी गठित की जाये।


3-यदि उक्त कार्यवाही के बाद भी संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति की ओर से कोई न्यायसंगत कदम नहीं उठाया जावे, तो जस्टिस कर्णन के पक्ष में देश के इंसाफ पसन्द लोगों को जेल भरो आंदोलन के लिये तैयार रहना होगा।


~~ हम में से जो लोग संविधान, लोकतंत्र, बराबरी और इंसाफ की बातें तो करते हैं, लेकिन इस अवसर पर यदि चुप्पी साधे रहे तो फिर हमें सीधे तौर पर गुलामी को अंगीकार कर लेना चाहिये।





सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आरक्षित वर्ग में नौकरी के संबंध में एक अहम फैसला सुनाया। एक मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को आरक्षित वर्ग में ही नौकरी मिलेगी।_


यह गैर अजा, गैर जजा के लिए आरक्षण है. बहुत आसान है समझना. यों समझिए - रेल में एक डब्बा महिलाओं के लिए आरक्षित होता है, अब अगर कोई कहे कि महिलाओं को सिर्फ उनके आरक्षित डब्बे में ही सीट मिलेगी, शेष ग्यारह डब्बों में नहीं तो इसका अर्थ यह हुआ कि आपने उन्हें एक डब्बे में सीमित करके ग्यारह डब्बे पुरुषों के लिए आरक्षित कर दिए.

जहां भी आप आरक्षित वर्ग का कट ऑफ, सामान्य वर्ग से ऊपर पाएं, जान लें कि यह गैर आरक्षित ( सवर्ण ) वर्ग ने आरक्षण पाया है. यही नहीं, यदि आरक्षित वर्ग में ऐसे प्रत्याशी हैं जिनके मार्क्स, गैर आरक्षित वर्ग के न्यूनतम प्राप्तांक से ज्यादा हैं तो भी किसी न किसी आरक्षित वर्ग के प्रत्याशी का हक़ किसी गैर आरक्षित ने मारा है.
माननीय न्यायाधीश महोदय देश की जनता को बतलाइये कि क्या मेट्रो में महिलाएं सिर्फ आरक्षित बोगी में ही बैठ सकती हैं? पंच की कुर्सी पर बैठे हैं और कहते हैं पंच 'परमेश्वर' होता है। अपनी परंपरागत सोच से नहीं, विवेक से संविधान-सम्मत निर्णय लीजिए , नहीं तो जानते ही हैं यह पब्लिक है!!!! और हां, दलित, पिछड़े और आदिवासी सांसदों जागो, क्यों अपनी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए जमात की हत्या करवा रहे हो।
तो क्या यह ऊंच कही जाने वाली जातियों के लिए 50.5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है..?
पत्रकार के मुताबिक यह सुप्रीम कोर्ट का नया 'फैसला' है कि जो आरक्षित हैं, वे अगर आरक्षण कोटे में आवेदन करते हैं तो उन्हें केवल आरक्षण कोटे में ही नौकरी मिलेगी..!
यानी आरक्षण कोटे में आवेदन करने वाला कोई एससी-एसटी या ओबीसी किसी प्रतियोगिता में अगर किसी सवर्ण उम्मीदवार के बराबर या उससे ज्यादा नंबर लाता है तो भी उसकी बहाली 'जेनरल' कोटे में नहीं होगी..! यह इस रिपोर्ट में दर्ज है!
हां मेरिट... हां मेरिट की ब्राह्मण परिभाषा.!
अगर यह खबर इसी रूप में सही है तो अब व्यवहार में यह होगा कि 50.5 प्रतिशत पदों पर सवर्ण जातियों के लिए आरक्षण होगा!
पत्रकार की मानें तो सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शायद यही स्थापित हुआ है कि 'जेनरल' मतलब ब्राह्मण जाति-व्यवस्था में ऊंच कही जाने वाली जातियां..!
इसका जो मतलब मुझे समझ में आ रहा है, उसके मुताबिक यह एक भयानक फैसला है और अब देखना है कि सामाजिक न्याय की राजनीति करने वालों से लेकर सामाजिक न्याय को एक जरूरी अधिकार मानने वाले एससी-एसटी, ओबीसी और सवर्ण पृष्ठभूमि के लोगों के बीच तूफान खड़ा होता है या नहीं..!
सवर्ण मीडिया की ह*री की एक बानगी देखिये
सुप्रीम कोर्ट ने कहा :
" याचिकाकर्ता ने उम्र सीमा में छूट लेकर OBC श्रेणी में आवेदन किया था। उसने साक्षात्कार भी OBC श्रेणी में दिया। इसलिए वह सामान्य श्रेणी में नियुक्ति के अधिकार का दवा नहीं कर सकती। "
-सुप्रीम कोर्ट
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अब पत्रकार ने इसकी कैसे व्याख्या की ये देखिये :
"कोर्ट ने कहा कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार को आरक्षित वर्ग में ही नौकरी मिलेगी, चाहे उसने सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों से ज्यादा अंक क्यों न हासिल किए हों।"
अब इस बात को मीडिया ने 'उम्र सीमा में छूट' वाली बात गोल करके सनसनीखेज़ बना दिया और ऐसा लगने लगा जैसे यह कहा गया है कि अब अनारक्षित वर्ग में आरक्षित वर्ग वाले नहीं जा सकते।
इस धूर्तता से बेवज़ह का हंगामा खड़ा करने की कोशिश है।
जबकि नियम अभी भी वही है जो पहले थे।
श्रेयत बौद्ध लिख रहे हैं...
भारत में माननीय सर्वोच्च न्यायालय को आरक्षण के विषय में इस तरह का दुराभाव भरा निर्णय देकर क्या और किस तरह की सामाजिक समानता का ढोंग फैलाया जा रहा है।
जनसंख्या के अनुपात में SC/ST/OBC की संख्या लगभग 90% है, और सुप्रीम कोर्ट की सीलिंग के अनुसार अधिकतम आरक्षण 50% ही दिया जा सकता है।
तो सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद जो छात्र अधिक नंबर लाने के बाद सामान्य वर्ग में चले जाते थे, अब उनका चयन अपने ही वर्ग में होगा।
माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 10% सामान्य वर्गों को अघोषित 50% आरक्षण दे दिया गया है, और SC/ST/OBC 90% लोगों को 50% घोषित आरक्षण दिया जायेगा।
हमें अपने जनप्रतिनिधियों से स्वयं जवाब पूछना होगा की आप कुछ करेंगे या हमें ही शोषणकारी व्यवस्था को ध्वस्त करना होगा।

साथियों मैं आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हूँ, अभी नहीं तो कभी नहीं..!!                   




 कूछ दलित मित्र यह कह रहे कि 20 जून 2017 को पूर्व हाई कोर्ट जज श्री कर्णन का गिरफ्तार होना, भारतीय इतिहास में दुर्भग्यपूर्ण माना जायेगा क्योंकि इस प्रकरण में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जिस तरह से संविधान को दर-किनार करके सिटींग जज को 6 महीने जेल की सजा सुनादी और जैसे ही उनका कार्यकाल पूरा हुआ उनको एक अपराधी की तरह जेल भेज दिया।
क्या वे बुद्धिजीवी दलित बंधु यह बता पाएँगे कि जस्टिस कर्णन ने आजतक कितने OBC अथवा SC/ST का भला किया जो उनके गिरफ्तारी पर इतनी आवाज़ बुलंद कर रहे ?

आपको याद है अथवा नही फ़िर भी मै बता देना चाहता हूँ की महाराष्ट्र के एकमात्र बचे कद्दावर OBC नेता छगन भुजबल को पिछले एक वर्षों से बगैर दोषसिद्दी के जेल मे रखा गया है और उनका इसमे दो ही कसूर था 
1) महाराष्ट्र भवन जोकि दिल्ली मे बनी उसमे RSS के नेताओ को छोड़कर OBC और दलितों के मसीहा की मूर्तियाँ उन्होने अपने कार्यकाल मे लगवाई l
2)  शिवसेना को इन्होने सिर्फ और सिर्फ OBC के आरक्षण व उनके हक के लिये हुए मतभेद मे छोड़ा और एनसीपी मे शामिल होकर जबरदस्त सीटे जितवाकर कॉंग्रेस संग सरकार बनवाने मे भरपूर सहयोग किया l

अब आप बताईये कि छगन भुजबल जैसे वंचित वर्ग के नेताओ के इतने उल्लेखनीय कार्यों के वावजूद आपने उनके खिलाफ हुए अथवा हो रहे षडयंत्र के खिलाफ कितनी बार आवाज़ बुलंद की ?

ताली एक हाथ से आप बजाएंगे या दोनो हाथो से ?
जिसने कूछ नही किया उसे इतना समर्थन और जो उल्लेखनीय कार्य कर गया उसके बारे मे एक भी शब्द नही ?

इतना भेदभाव क्यों भाई ?

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