1. ऋग्वेद में श्लोक 10 में लिखा है कि हम(वैदिक ब्राह्मण ) उत्तर ध्रुव से आये हुए लोगहै। जब आर्य व् अनार्यो का युद्ध हुआ ।
2. The Arctic Home At The Vedasबालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारालिखी पुस्तक में मानते है कि हम बाहर आए हुएलोग है ।
3. जवाहर लाल नेहरु ने (बाबर के वंशज फिरकश्मीरी पंडित बने) उनकी किताब Discoveryof India में लिखा है कि हम मध्य एशिया सेआये हुए लोग है। यह बात कभी भूलना नहीचाहिए। ऐसे 30 पत्र इंदिरा जी को लिखे जबवो होस्टल में पढ़ रही थी।
4. वोल्गा टू गंगा में “राहुलसांस्कृतयान” (केदारनाथ के पाण्डेय ब्राहम्ण)ने लिखा है कि हम बाहर से आये हुए लोग हैऔर यह भी बताया की वोल्गा से गंगा तट(भारत) कैसे आए।
5. विनायक सावरकर ने (ब्राम्हण) सहासोनरी पाने “इस मराठी किताब में लिखाकी हम भारत के बाहर से आये लोग है।
6. इक़बाल “काश्मीरी पंडित ” ने भी जिसने“सारे जहा से अच्छा” गीत लिखा था कि हमबाहर से आए हुए लोग है।
7. राजा राम मोहन राय ने इग्लेंड में जाकरअपने भाषणों में बोला था कि आज मै मेरी पितृभूमि यानि अपने घर वापस आया हूँ।
8. मोहन दास करम चन्द गांधी (वेश्य) ने1894 में दक्षिणी अफ्रीका के विधान सभा मेंलिखे एक पत्र के अनुसार हम भारतीय होने केसाथ साथ युरोशियन है हमारी नस्ल एक ही हैइसलिए अग्रेज शासक से अच्छे बर्ताव कीअपेक्षा रखते है।
9. ब्रह्म समाज के नेता सुब चन्द्र सेन ने 1877में कलकत्ता की एक सभा में कहा था किअंग्रेजो के आने से हम सदियों से बिछड़े चचेरेभाइयों का (आर्य ब्रह्मण और अंग्रेज) पुनर्मिलन हुआ है।इस सन्दर्भ में अमेरिका के Salt lake Cityस्थित युताहा विश्वविधालय (University ofUtaha’ USA) के मानव वंश विभाग केवैज्ञानिक माइकल बमशाद और आंध्र प्रदेश केविश्व विद्यापीठ विशाखा पट्टनम केAnthropology विभाग के वैज्ञानिकों द्वारासयुक्त तरीको से 1995 से 2001 तक लगातार 6 साल तक भारत के विविध जाति-धर्मो औरविदेशी देश के लोगो के खून पर किये गये DNAके परिक्षण
Sunday, 1 January 2017
व्यक्ति के शिक्षा का स्तर
किसी भी व्यक्ति के शिक्षा का स्तर इससे भी पता नहीं चलता कि उसने कितनी किताबें पढ़ी हैं।
किसी भी व्यक्ति के शिक्षा का स्तर इससे पता चलता है कि उसने कितनी स्वतंत्र सोच विकसित की है। व्यक्ति चाहे कितनी भी डिग्रियां प्राप्त कर ले, अगर वह अपनी सोच को विकसित नहीं कर पाया तो इसका कोई मतलब नही है कि वो कितना पढ़ा है।
अगर आपने स्कूल में पढ़ा, रावण के दस सिर थे और आपने मान लिया तो आपकी शिक्षा का कोई मतलब नहीं है। आपकी शिक्षा का मतलब तब है, जब आपने उस पर सवाल उठा दिया कि ऐसा कैसे संभव है? आपकी शिक्षा का पता तब चलता है, जब आपके यहाँ किसी बच्चे ने जन्म लिया और आप उसका नाम रखवाने के लिए ब्राह्मण के पास चल दिए। इससे पता चलता है कि आपने सिर्फ किताबें पढ़ी हैं लेकिन शिक्षित नहीं हुए। आपकी शिक्षा का पता तब चलता है, जब आप मृतक को स्वर्ग का टिकट दिलाने के यज्ञ और हवन करवाते हैं। स्वतंत्र सोच का विकास करना ही शिक्षा है। ये शिक्षा नहीं है कि आपको बता दिया कि हरिश्चन्द्र एक सत्यवादी राजा था और आपने मान लिया। बल्कि शिक्षा ये है कि आपने सवाल उठा दिया कि वह राजा सत्यवादी कैसे हो सकता है? जिसने सिर्फ एक सपने के आधार पर अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को दान दे दिया। ये सत्यवादिता नहीं बल्कि मूर्खता है। शिक्षा ये है कि आपने सवाल कर दिया कि अपनी पत्नी बच्चे को बेचने वाला कोई भी आदमी सत्यवादी कैसे हो सकता है?
मूर्खता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि हम 15 - 20 साल पढ़ाई में ख़त्म करने के बाद एक पाँचवी फेल ब्राह्मण से सलाह लेते हैं।
कि हमको क्या करना चाहिए या क्या नही करना चाहिए?
मतलब आप इंजिनियर वकील डॉक्टर IAS IPS PCS नेता अभिनेता बनकर भी इस लायक नही हुए कि अपना निर्णय खुद ले सकें।
आपमें इतनी क्षमता विकसित नही हुई जितनी एक पांचवी फेल ब्राह्मण में । आप पंद्रह बीस लाख खर्च करके भी ये किसी ब्राह्मण से पूछते हैं कि घर कब बनाना है ?
आप दिमाग से पैदल हैं जो अपने घर का निर्माण करने का निर्णय भी खुद नही कर सकते ?
पूछा ब्राह्मण से घर कब बनेगा?
और जब घर बनवाने की बारी आई, तब भी शुरुआत करने वो पाँचवी फेल ब्राह्मण ही आएगा ।
बच्चा आपने पैदा कर लिया लेकिन पंद्रह बीस साल खर्च करने के बाद भी आप इतना नही सीख पाए कि अपने बच्चों का नाम भी खुद रख पायें ।
बच्चा आपका है या पांचवी फेल ब्राह्मण का?
अब बात शादी की आई तो ये भी तय आप नही कर सकते कि आप शादी कब करोगे ?
आपको शादी कब करनी है ये भी एक पांचवी फेल ब्राह्मण बताएगा?
आपको लड़की / लड़का पसंद है, आपके परिवार वालों को भी पसंद है लेकिन एक पांचवी फेल ब्राह्मण ने कह दिया कि इससे शादी करना अच्छा नही होगा तो आप पंद्रह बीस साल खर्च करके भी उस पांचवी फेल ब्राह्मण से तुच्छ ही साबित हुए ।
आप जीवन भर पाँचवी फेल ब्राह्मणों के आगे झुकते रहे लेकिन जब मरोगे तब भी ये ही पांचवी फेल ब्राह्मण तय करेगा कि आपको मरना कैसे है ?
गीता सुनकर, रामायण सुनकर या सत्यनारायण की कथा सुनकर?
अब इससे ज्यादा मूर्खता के प्रमाण और क्या दूं ?
लगता है हम और आप बीमार हैं ब्राह्मणवाद से।
जय भीम।
राजनैतिक हरिजन नेता
राजनैतिक हरिजन नेता .....
1952 मे प्रथम चुनाव में जब बाबासाहेब चुनाव हारे और होलकर जीता ! तब होलकर बाबासाहेब से मिलने जाता हैं और कहता हैं बाबासाहेब में चुनाव जीता हू आज मुझे खुशी महसूस होती हैं |तब बाबासाहेब कहते हैं ,अब तुम जीत तो गए पर तुम्हारा कार्य क्या रहेंगा ? तुम क्या करोगे ? तब होलकर कहता हैं वह तो मेरी पार्टी कहेगी वो करुंगा |
तब बाबासाहेब कहते हैं तुम जनरल सीट से जीते हो?तो वह कहता है डॉ साहब आरक्षित सीट से जीते है ! बाबासाहेब वह तो आपही मेहरबानी से संविधान में दिए गए राजनेतिक रिजर्वेशन से जीता हूँ और साहेब उन्हें चाय पिलाते हैं और भेज देते हैं |
बाद में बाबासाहेब हसते हैं तो नानकचंद्र रत्तू पुछते आप हस क्यु रहें थे ? तब बाबासाहेब कहते हैं होल्कर अपने समाज के प्रतिनिधि के बजाय वे पार्टियों के हरिजन बन गए हैं ( हरिजन ) मतलब नाजायज ओलाद
आज हमारे समाज के जनप्रतिनिधि विधायक,सांसद खासकर बीजेपी कोंग्रेस वाले समाज के नहीं रहकर ब्राह्मणवादी पार्टियों की नाजायज औलाद बन चुके हैं | यह बात 1952 में बाबासाहेब ने कह दी थी जो आजतक सार्थक सिद्ध हो रही है ।
1952 मे प्रथम चुनाव में जब बाबासाहेब चुनाव हारे और होलकर जीता ! तब होलकर बाबासाहेब से मिलने जाता हैं और कहता हैं बाबासाहेब में चुनाव जीता हू आज मुझे खुशी महसूस होती हैं |तब बाबासाहेब कहते हैं ,अब तुम जीत तो गए पर तुम्हारा कार्य क्या रहेंगा ? तुम क्या करोगे ? तब होलकर कहता हैं वह तो मेरी पार्टी कहेगी वो करुंगा |
तब बाबासाहेब कहते हैं तुम जनरल सीट से जीते हो?तो वह कहता है डॉ साहब आरक्षित सीट से जीते है ! बाबासाहेब वह तो आपही मेहरबानी से संविधान में दिए गए राजनेतिक रिजर्वेशन से जीता हूँ और साहेब उन्हें चाय पिलाते हैं और भेज देते हैं |
बाद में बाबासाहेब हसते हैं तो नानकचंद्र रत्तू पुछते आप हस क्यु रहें थे ? तब बाबासाहेब कहते हैं होल्कर अपने समाज के प्रतिनिधि के बजाय वे पार्टियों के हरिजन बन गए हैं ( हरिजन ) मतलब नाजायज ओलाद
आज हमारे समाज के जनप्रतिनिधि विधायक,सांसद खासकर बीजेपी कोंग्रेस वाले समाज के नहीं रहकर ब्राह्मणवादी पार्टियों की नाजायज औलाद बन चुके हैं | यह बात 1952 में बाबासाहेब ने कह दी थी जो आजतक सार्थक सिद्ध हो रही है ।
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