*शम्भूक हत्या और हत्यारे राम*
(वाल्मीकि रामायण, उत्तरकांड,)
आपमें से कइयों ने शायद पहली बार शंबूक वध का यह प्रसंग पढ़ा होगा क्योंकि रामायण और क़ुरआन कौन पढ़ता है? फ़ेसबुक और ट्विटर पर एक-दूसरे को गालियां देने में कोई किसी से कम नहीं लेकिन अपने या दूसरों के धर्मग्रंथों में क्या लिखा है, यह पढ़ने का किसी के पास वक़्त ही कहां है!
ख़ैर, मैंने भी हाल ही में वाल्मीकि रामायण में यह अंश पढ़ा। शंबूक वध के बारे में जानता तो किशोरावस्था से था, लेकिन रामायण में इसका कैसा वर्णन किया गया है, यह हाल-हाल में जाना और पढ़कर आंखों के सामने यही दृश्य उभरा कि कोई वधिक किसी निरीह पशु के सिर पर कटार से वार कर रहा है। एक शूद्र सदेह स्वर्ग जाना चाहता था और उसे रोकने के लिए ‘भगवान राम’ ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। क्यों? क्योंकि नारद ने बताया था कि त्रेतायुग में शूद्रों को तप करने का अधिकार नहीं है!
अभी हाल ही में तेलंगाना में नरेश नामक एक दलित युवक की इसलिए हत्या कर दी गई कि वह रेड्डी परिवार की किसी लड़की से प्यार करता था और उससे शादी कर ली थी। सोचें तो राम और लड़की के सवर्ण पिता के आचरण में क्या अंतर है? राम ने शंबूक को इसलिए मारा कि उसे तपस्या का अधिकार नहीं है, यहां लड़की के पिता ने इसलिए दलित युवक को मारा कि उसके अनुसार उसे ऊंची जाति की लड़की से विवाह करने का अधिकार नहीं है। हालांकि ऐसा मामला आपको बहुत मिल जाएगा
फिर से वही सवाल — क्या भगवान भी जातिवादी और पक्षपाती है? क्या वह भी ऊंची और नीची जाति में अंतर करता है? क्या उसकी दया और करुणा सब समृद्ध और सवर्ण जातियों के लिए है? यदि हां तो देश के सवर्ण और समृद्ध लोग अपने भगवान की राह पर चलकर वैसा ही व्यवहार करते हैं तो क्या ग़लत करते हैं? और यदि हां तो दलितों को ऐसे व्यक्ति को अपना आराध्य क्यों मानना चाहिए? दूसरे शब्दों में, यदि राम वास्तव में भगवान हैं और उनके ऐसे कर्म हैं तो दलितों को उनसे प्यार क्यों हो, शिकायत क्यों नहीं? बौद्धिक और संवेदनशील दलित इस प्रसंग के बारे में पढ़ते हुए राम के बारे में कैसा महसूस करते होंगे, यदि इसका एहसास करना है तो एक बार कल्पना कीजिए, जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों पर दनादन गोलियां चलवानेवाले गोरे जनरल डायर की। क्या फ़ीलिंग आई? गुस्सा? नफ़रत? या उससे भी ज़्यादा? बस वैसा ही सोचते हैं दलित राम के प्रति! वे दलित जिन्होंने शंबूक वध के बारे में पढ़ा है।
लेकिन मुझे व्यक्ति या राजा रामचंद्र से कोई नफ़रत या शिकायत नहीं है। मैं राम को उस अंग्रेज़ न्यायाधीश की तरह मानता हूं जिसने भगत सिंह और अन्य को फांसी की सज़ा सुनाई थी, उस भारतीय पुलिसवाले की तरह जिसने अपने गोरे अधिकारी के आदेश पर भारतीयों पर गोली चलाई या डंडे चलाए। जैसे वह न्यायाधीश या पुलिसवाला ब्रिटिश सरकार के अधीन थे और उसी के कानून के तहत निर्णय सुनाया या गोली या लाठी चलाई, वैसे ही राम भी एक वर्णव्यवस्थावादी समाज में ब्राह्मणवादी नियम-विधान के तहत राज कर रहे थे और यदि वह ऐसा नहीं करते तो तत्कालीन ब्राह्मण ‘पतित’ सीता को साथ रखने या शूद्र को तपस्या करने देने के आरोप में राम को ही सत्ता छोड़ने पर बाध्य कर देते।
दूसरे शब्दों में राम नामक यदि कोई राजा किसी काल में रहे होंगे और उन्होंने वह सब किया होगा जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण या अन्य रामकथाओं में है तो उन्होंने अपने समय और समाज की मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार ही आचरण किया है चाहे वह सीता का त्याग हो या शंबूक का वध। मैं रामायण को एक ऐसी पुस्तक के रूप में ग्रहण करता हूं जो अपने समय की सामाजिक-राजनीतिक-धार्मिक व्यवस्था के बारे में बताती है। वही बात जो मैंने क़ुरआन के बारे में कही थी कि वह अपने समय में प्रचलित प्रथाओं और परंपराओं को बयां करती है।
जैसे रामायण के शंबूक प्रकरण में स्वयं ‘भगवान राम’ द्वारा कही गई बातों और किए गए आचरण को हम ईश्वरीय मार्गदर्शन मानकर आज किसी दलित को पढ़ने-लिखने, आगे बढ़ने या मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने से नहीं रोकते (हालांकि एक बड़ा और ताकतवर सवर्ण तबका उनसे वैसा ही भेदभाव आज भी कर रहा है, लेकिन परिवर्तन यह हुआ है कि अब उसका प्रतिकार भी देखने को मिल रहा है),
तो यह है मनुवादी दलितों के भगवान् कि करतुत!!!
विडियो देखें राम के द्वारा शम्भूक वध 👇🏾👇🏾👇🏾👆🏻👆🏻👆🏻
लंका मे जब लक्ष्मण को शक्तिबाण लगा तब उनके प्राण बचाने के लिये सुषेन वैद्य के कहने पर हनुमान जी "संजीवनी बूटी" लेने #द्रोणागिरि पर्वत की ओर उड़े! लंका से द्रोणागिरि पर्वत की दूरी लगभग 3 हजार किमी० है!
हनुमान जी आधी रात को उड़े थे और रास्ते मे थोड़ा समय #कालनेमी ने बर्बाद किया, लौटते समय #भरत ने भी बाण मारकर कुछ समय नष्ट किया!
हनुमान जी ने आने--जाने मे 6 हजार किमी० की यात्रा की, अगर ऐसा माना जाये कि उन्हे छः घन्टे लगे तब भी औसत चाल हुयी एक हजार किमी० प्रति घंटा,
अब पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 13 करोड़ 80 लाख किमी० है, तो हनुमान को बचपन मे कितना दिन लगेगा सूर्य तक पहुँचने मे,और फिर वापस पृथ्वी पर आने मे।
तुलसीदास जी फेकने मे तो आप माहिर थे, अब जरा यह भी बताओ कि जो हनुमान जवानी मे हजार किमी० प्रति घंटा की चाल से उड़े, तो बचपन मे किस चाल से सूर्य की तरफ उड़े थे!
बाबा तुलसी का झूठ देखो कि लिखते है कि हनुमान सूर्य को निगलकर धरती पर वापस आकर बैठे थे और देवतागण विनती कर रहे थे कि सूर्य को बाहर निकालो! सूर्य, पृथ्वी से दर्जनो लाख गुना बड़ा है और उसे खाकर हनुमान जी पृथ्वी पर ही बैठे थे!
दूसरी बात कोई भी बन्दर अगर केला भी खाता है तो उसे चबाकर खाता है, और हनुमान सूर्य को बिना चबाये ही निगल गये फिर देवताओं के कहने पर उसी स्थिति मे बाहर भी निकाल दिया!
भला यह सम्भव है कि जो चीज मुँह से खायी जाये उसे मुँह से ही सही-सलामत वापस भी निकाल दिया जाये!
तुलसी बाबा झूठ की झड़ी!!!!
मनुवाद के झुठ ओर पाखंड जिन पर हम आँख बंद करके विशवास् कर लेते हैं।
आईये जानते है कुछ ऐसे ही झुठी कहानियों को।
1- जब हनुमान जी ने सूर्य को अपने मुह में दबा लिया था तब सिर्फ भारत में अंधेरा हुआ था या पूरे विश्व में।
2- कृष्ण जी की गेंद यमुना में कैसे डूब गई जबकि दुनिया की कोई गेंद पानी में नही डूब सकती।
3- कहा जाता है कि भारत में 33 करोड़ देवी देवता हैं जबकि उस समय भारत की कुल जनसंख्या भी 33 करोड़ नही थी।
4- भारत के अलावा और किसी देश में इन 33 करोड़ देवताओ में से सिर्फ भगवान बुद्ध के अलावा किसी देवताओ को नही पूजा जाता।
5- आरक्षण से पहले इनके बंदर भी उड़ते थे , ओर न जाने किस किस विधि से बच्चों का जन्म हो जाता था, परंतु जबसे आरक्षण लागू हुआ है इनके सारे आविष्कार बन्द हो गए।
6- जब एक व्यक्ति का खून दूसरे व्यक्ति को बिना ग्रुप मिलाये हुए नही दिया जा सकता क्योंकि अगर A positive वाले व्यक्ति को सिर्फ आ positive वाले व्यक्ति का खून दिया जा सकता है अगर दूसरा खून दिया गया तो उस व्यक्ति की मौत हो सकती है। फिर इंसान के शरीर पर हाथी की गर्दन कैसे फिट हो गयी।
7- 33 करोड़ देवी देवताओं के होते हुए भी भारत हजारों साल कैसे गुलाम हो गया।
8- कोई भी देवता किसी शुद्र के घर पर पैदा क्यों नही हुआ।
9- इतने सारे देवी देवताओं के होते हुए भी शुद्र का विकास क्यों नही हुआ। उनके साथ भेदभाव क्यो हुआ।
जागो और जगाओ साथियों
https://surendrakannouji143.blogspot.in/2017/06/blog-post_69.html?m=1] is good,have a look at it!
(वाल्मीकि रामायण, उत्तरकांड,)
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ख़ैर, मैंने भी हाल ही में वाल्मीकि रामायण में यह अंश पढ़ा। शंबूक वध के बारे में जानता तो किशोरावस्था से था, लेकिन रामायण में इसका कैसा वर्णन किया गया है, यह हाल-हाल में जाना और पढ़कर आंखों के सामने यही दृश्य उभरा कि कोई वधिक किसी निरीह पशु के सिर पर कटार से वार कर रहा है। एक शूद्र सदेह स्वर्ग जाना चाहता था और उसे रोकने के लिए ‘भगवान राम’ ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। क्यों? क्योंकि नारद ने बताया था कि त्रेतायुग में शूद्रों को तप करने का अधिकार नहीं है!
अभी हाल ही में तेलंगाना में नरेश नामक एक दलित युवक की इसलिए हत्या कर दी गई कि वह रेड्डी परिवार की किसी लड़की से प्यार करता था और उससे शादी कर ली थी। सोचें तो राम और लड़की के सवर्ण पिता के आचरण में क्या अंतर है? राम ने शंबूक को इसलिए मारा कि उसे तपस्या का अधिकार नहीं है, यहां लड़की के पिता ने इसलिए दलित युवक को मारा कि उसके अनुसार उसे ऊंची जाति की लड़की से विवाह करने का अधिकार नहीं है। हालांकि ऐसा मामला आपको बहुत मिल जाएगा
फिर से वही सवाल — क्या भगवान भी जातिवादी और पक्षपाती है? क्या वह भी ऊंची और नीची जाति में अंतर करता है? क्या उसकी दया और करुणा सब समृद्ध और सवर्ण जातियों के लिए है? यदि हां तो देश के सवर्ण और समृद्ध लोग अपने भगवान की राह पर चलकर वैसा ही व्यवहार करते हैं तो क्या ग़लत करते हैं? और यदि हां तो दलितों को ऐसे व्यक्ति को अपना आराध्य क्यों मानना चाहिए? दूसरे शब्दों में, यदि राम वास्तव में भगवान हैं और उनके ऐसे कर्म हैं तो दलितों को उनसे प्यार क्यों हो, शिकायत क्यों नहीं? बौद्धिक और संवेदनशील दलित इस प्रसंग के बारे में पढ़ते हुए राम के बारे में कैसा महसूस करते होंगे, यदि इसका एहसास करना है तो एक बार कल्पना कीजिए, जलियांवाला बाग में निहत्थे भारतीयों पर दनादन गोलियां चलवानेवाले गोरे जनरल डायर की। क्या फ़ीलिंग आई? गुस्सा? नफ़रत? या उससे भी ज़्यादा? बस वैसा ही सोचते हैं दलित राम के प्रति! वे दलित जिन्होंने शंबूक वध के बारे में पढ़ा है।
लेकिन मुझे व्यक्ति या राजा रामचंद्र से कोई नफ़रत या शिकायत नहीं है। मैं राम को उस अंग्रेज़ न्यायाधीश की तरह मानता हूं जिसने भगत सिंह और अन्य को फांसी की सज़ा सुनाई थी, उस भारतीय पुलिसवाले की तरह जिसने अपने गोरे अधिकारी के आदेश पर भारतीयों पर गोली चलाई या डंडे चलाए। जैसे वह न्यायाधीश या पुलिसवाला ब्रिटिश सरकार के अधीन थे और उसी के कानून के तहत निर्णय सुनाया या गोली या लाठी चलाई, वैसे ही राम भी एक वर्णव्यवस्थावादी समाज में ब्राह्मणवादी नियम-विधान के तहत राज कर रहे थे और यदि वह ऐसा नहीं करते तो तत्कालीन ब्राह्मण ‘पतित’ सीता को साथ रखने या शूद्र को तपस्या करने देने के आरोप में राम को ही सत्ता छोड़ने पर बाध्य कर देते।
दूसरे शब्दों में राम नामक यदि कोई राजा किसी काल में रहे होंगे और उन्होंने वह सब किया होगा जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण या अन्य रामकथाओं में है तो उन्होंने अपने समय और समाज की मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार ही आचरण किया है चाहे वह सीता का त्याग हो या शंबूक का वध। मैं रामायण को एक ऐसी पुस्तक के रूप में ग्रहण करता हूं जो अपने समय की सामाजिक-राजनीतिक-धार्मिक व्यवस्था के बारे में बताती है। वही बात जो मैंने क़ुरआन के बारे में कही थी कि वह अपने समय में प्रचलित प्रथाओं और परंपराओं को बयां करती है।
जैसे रामायण के शंबूक प्रकरण में स्वयं ‘भगवान राम’ द्वारा कही गई बातों और किए गए आचरण को हम ईश्वरीय मार्गदर्शन मानकर आज किसी दलित को पढ़ने-लिखने, आगे बढ़ने या मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने से नहीं रोकते (हालांकि एक बड़ा और ताकतवर सवर्ण तबका उनसे वैसा ही भेदभाव आज भी कर रहा है, लेकिन परिवर्तन यह हुआ है कि अब उसका प्रतिकार भी देखने को मिल रहा है),
तो यह है मनुवादी दलितों के भगवान् कि करतुत!!!
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लंका मे जब लक्ष्मण को शक्तिबाण लगा तब उनके प्राण बचाने के लिये सुषेन वैद्य के कहने पर हनुमान जी "संजीवनी बूटी" लेने #द्रोणागिरि पर्वत की ओर उड़े! लंका से द्रोणागिरि पर्वत की दूरी लगभग 3 हजार किमी० है!
हनुमान जी आधी रात को उड़े थे और रास्ते मे थोड़ा समय #कालनेमी ने बर्बाद किया, लौटते समय #भरत ने भी बाण मारकर कुछ समय नष्ट किया!
हनुमान जी ने आने--जाने मे 6 हजार किमी० की यात्रा की, अगर ऐसा माना जाये कि उन्हे छः घन्टे लगे तब भी औसत चाल हुयी एक हजार किमी० प्रति घंटा,
अब पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 13 करोड़ 80 लाख किमी० है, तो हनुमान को बचपन मे कितना दिन लगेगा सूर्य तक पहुँचने मे,और फिर वापस पृथ्वी पर आने मे।
तुलसीदास जी फेकने मे तो आप माहिर थे, अब जरा यह भी बताओ कि जो हनुमान जवानी मे हजार किमी० प्रति घंटा की चाल से उड़े, तो बचपन मे किस चाल से सूर्य की तरफ उड़े थे!
बाबा तुलसी का झूठ देखो कि लिखते है कि हनुमान सूर्य को निगलकर धरती पर वापस आकर बैठे थे और देवतागण विनती कर रहे थे कि सूर्य को बाहर निकालो! सूर्य, पृथ्वी से दर्जनो लाख गुना बड़ा है और उसे खाकर हनुमान जी पृथ्वी पर ही बैठे थे!
दूसरी बात कोई भी बन्दर अगर केला भी खाता है तो उसे चबाकर खाता है, और हनुमान सूर्य को बिना चबाये ही निगल गये फिर देवताओं के कहने पर उसी स्थिति मे बाहर भी निकाल दिया!
भला यह सम्भव है कि जो चीज मुँह से खायी जाये उसे मुँह से ही सही-सलामत वापस भी निकाल दिया जाये!
तुलसी बाबा झूठ की झड़ी!!!!
मनुवाद के झुठ ओर पाखंड जिन पर हम आँख बंद करके विशवास् कर लेते हैं।
आईये जानते है कुछ ऐसे ही झुठी कहानियों को।
1- जब हनुमान जी ने सूर्य को अपने मुह में दबा लिया था तब सिर्फ भारत में अंधेरा हुआ था या पूरे विश्व में।
2- कृष्ण जी की गेंद यमुना में कैसे डूब गई जबकि दुनिया की कोई गेंद पानी में नही डूब सकती।
3- कहा जाता है कि भारत में 33 करोड़ देवी देवता हैं जबकि उस समय भारत की कुल जनसंख्या भी 33 करोड़ नही थी।
4- भारत के अलावा और किसी देश में इन 33 करोड़ देवताओ में से सिर्फ भगवान बुद्ध के अलावा किसी देवताओ को नही पूजा जाता।
5- आरक्षण से पहले इनके बंदर भी उड़ते थे , ओर न जाने किस किस विधि से बच्चों का जन्म हो जाता था, परंतु जबसे आरक्षण लागू हुआ है इनके सारे आविष्कार बन्द हो गए।
6- जब एक व्यक्ति का खून दूसरे व्यक्ति को बिना ग्रुप मिलाये हुए नही दिया जा सकता क्योंकि अगर A positive वाले व्यक्ति को सिर्फ आ positive वाले व्यक्ति का खून दिया जा सकता है अगर दूसरा खून दिया गया तो उस व्यक्ति की मौत हो सकती है। फिर इंसान के शरीर पर हाथी की गर्दन कैसे फिट हो गयी।
7- 33 करोड़ देवी देवताओं के होते हुए भी भारत हजारों साल कैसे गुलाम हो गया।
8- कोई भी देवता किसी शुद्र के घर पर पैदा क्यों नही हुआ।
9- इतने सारे देवी देवताओं के होते हुए भी शुद्र का विकास क्यों नही हुआ। उनके साथ भेदभाव क्यो हुआ।
जागो और जगाओ साथियों
https://surendrakannouji143.blogspot.in/2017/06/blog-post_69.html?m=1] is good,have a look at it!
गन्दी रामायण
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